Monday, February 6, 2023

अंतिम कविता

 



आज ये अंतिम  मेरी कविता है ,

आज ना खुश दिखती सविता है ,

अंशुमाली निरंकुश रहता मिला ,

अंशु का दिल फिर क्योंना खिला  ,,

रजनीश को देख बंद आँखे हुई ,

आलोक से बेपरवाह दुनिया हुई ,

जी लेने की चाह बस सबमे दिखी,

चौपायो की बेहतर किस्मत लिखी  ,

जाने हम कैसे मनुष्य बन ही  गए  ,

बैठे जिस जगह वो और मैले हो गए ,

कहते है फर्जी सब करते है बात,

लाया  ना ठेका कोई अपने साथ ,

गाँधी भगत थे  आये यही बताने

दुनिया बनाओ सुंदर इसे ही जताने ,

मिली क्या उनको फासी और गोली ,

आलोक अब क्यों करते हो ठिठोली ,

आदमी अगर सच आदमी ही होता ,

जंगल जानवर धरा से यू ना खोता ,

अब तो नदी , जमीं सब रो रहे है ,

देखते नही सब अब ख़त्म हो रहे है ,

बनेगा फिर कौन राम की विरासत  ,

स्वयं हो गया आदमी एक आफत ,

पहले बताओ इनको जीवन का अर्थ ,

सामने खड़ा ही अस्तित्व का अनर्थ ,

जानते नही ये अब किधर जा रहे है ,

सुबह भी हो रही है इनके लिए तदर्थ ..

आइये हम पहले मनुष्य होने का मतलब समझे और यह जाने कि सिर्फ हमारे दुनिया में रहने का कोई फायदा  नही अगर जंगल, जानवर , नदी नाले सब ख़त्म हो गए

आलोक चांटिया

No comments:

Post a Comment