Friday, February 24, 2023

जनजाति

 खुद को मनुष्य ,

समझने का एहसास है ,

और उन्हें अपने से कम ,

जनजाति कहने का प्रयास है ,

ये जिन्दगी का कौन फलसफा ,

हमारा भी कैसा कयास है ,

थारू , भोक्सा , राजी ,भोटिया ,

क्या नाम काफी न था उनका ,

फिर जनजाति नाम है किनका ,

कहते है हम उन्हें चिडिया घर ,

का जानवर नही मानते है ,

पर आज तक उन्हें आदिम ,वनवासी ,

ही क्यों हर कही मानते है ,

न जाने कितने आधुनिको ने ,

रचाई शादी इन्ही आदिम मानव से ,

पर जाने क्यों जब तब लगते ,

 ये मानवशास्त्रियो को दानव से ,

मानवाधिकार का दौर चल रहा है ,

रंग भेद का दम निकल रहा है ,

फिर भी जनजाति का हनन जारी है ,

न जाने  क्या कैसी फितरत हमारी है ,

मानो ना मानो हम दुकान चलाते है ,

इन्ही के नाम पर दुनिया में जाने जाते है ,

पर ओंगे , जारवा  अब नचाये जाते है ,

एक एक रोटी के लिए  वे रोये जाते है ,

शायद मनुष्यता का अनोखा रंग है ,

जनजाति हमारी कमी का ढंग है ,

कोई इन्हें भी दौड़ गले लगा लेता ,

मानव है ये  अब तो बता देता ,

आलोक विचलित है दिल किसे बताऊं ,

काश कभी मै भी इनके काम आऊ!



आप सभी को लग सकता है कि मै आज कल जनजाति पर क्यों लिख रहा हूँ , क्योकि मै आज तक नही जन पाया कि हम लोग इन्ही जनजाति पर बात करके न जाने कितनी सुविधाओ में जी जाते है और  देश की 711 जनजाति में ज्यादातर यह भी नही जानते कि आधुनिकता का मतलब क्या है ?????????????? क्या मानवधिकार उन्हें गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार नही देता है ????????????????? डॉ आलोक चांटिया

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