Saturday, February 4, 2023

औरत भी आदमी है

 आज मै भी मंदिर मे 

घंटिया बजा आया हूँ ,

भगवान को सोते से 

अभी जगा आया हूँ ,

जब से आप भी 

मेरी तरह सोने लगे है ,

शहर में हर रात कितने

 क़त्ल होने लगे है ,

देखो मांग में सिंदूर भरे

 लटो से गिरती बूंदे,

लेकर सृजन की देवी भी

 पूजा करने आई है ,

फिर भी कल रात

 एक चीख सुनने में आई है ,

शायद दहेज़ ने एक लड़की 

जिन्दा फिर खाई है ,

कितने मन से पुकारा था

 द्रौपदी को याद करके ,

फिर उससे हिस्से में 

 नग्नता की क्यों आई है ,

कितनी ही इंतज़ार में बैठी

 स्वर्ग में बने रिश्तो के,

क्या उनके हाथ में तुमने

 वो रेखा भी बनाई है ,

कुंती की तरह डर से  

सड़क पर पड़े करण के शव ,

क्या माँ बन ने का अधिकार 

वो खुद पाई ले है ,

भगवान अब आलोक की

  विनती बस इतनी तुमसे ,

अब रात में फिर कभी ना 

सो जाना मनुष्य की तरह ,

दिन के उजालो में तुमपर 

जीने वालो को बता दो ,

औरत भी साँस लेती है 

ठीक तुम्हारी  हमारी तरह ।


आलोक चांटिया

.आपको ऐसा लगता है कि मै रात दिन कविता कहानी लिखता हूँ तो ऐसा नही है ....बस कुछ देर इस बात के एहसास में कि मनुष्य होने का मतलब समझ लू आपके साथ अपनी दो लीनो के साथ आ जाता हूँ और आप में ही वो भगवान पता हूँ जिस से मै अभी विनती कर रहा था ..............आज का दिन आप सभी के लिए सुभ हो ऐसी कि कल्पना अखिल भारतीय अधिकार संगठन की है .....

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