हरियाली की चाहत लेकर,
पौधा जो दुनिया में आता है,
मिलती उसको तपन धूप की ,
कभी बिन पानी के रह जाता है ,
दुनिया को सुख देने की चाहत में,
जैसे-जैसे वह बढ़ता जाता है ,
कोई तोड़ता पाती उसकी ,
कोई भूख उसी से मिटाता है ,
अच्छा करने की चाहत का ,
अनूठा फल वह पाता है,
कोई तोड़ता टहनी उसकी,
कोई घर उसी से बनाता है,
किसी के घर में चूल्हा जलता ,
कोई डंडा उसी से बनाता है ,
क्या पाता है दुनिया में आकर ,
एक पौधा यही हमें समझाता है,
अच्छा काम करने वालों को ,
संदेश यही दे जाता है ,
हर दर्द उपेक्षा सहकर तुम भी,
बस रुकना ना चलते जाना ,
पौधे सा जीवन तुम लेकर ,
मुस्कान किसी को बस देते जाना ।
आलोक चांटिया
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