Tuesday, November 22, 2022

जीवन का अर्थ कितना तदर्थ

 सूरज उठता है तो रौशनी लाता है

 सूरज गिरता है तो अँधेरा पाता है

 तुम्हारे ही अंदर है सब कुछ देखो

रत्न के लिए समुंदर में उतरा जाता है

 धरती को खोद कर ही दाना आता है 

नदी का नाम जमीं का बटवारा पाता है

 क्यों निराश हो रहे हो जिन्दगी से 

हर रात के बाद पूरब सबेरा लाता है

एक कछुए से हार जाता है  खरगोश

निरंतर चलने वाला ही जीत जाता है

एक कदम तो बढ़ाओ हिम्मत करके

एक और एक मिल ग्यारह हो जाता है

समझलोगे जिसदिन जीवन का यह अर्थ 

तुम्हारा होना दुनिया में नहीं होगा तदर्थ



 आइये आप के अंदर एक बेहतर आदमी खोजा जाए 


डॉ आलोक चांटिया

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