सूरज उठता है तो रौशनी लाता है
सूरज गिरता है तो अँधेरा पाता है
तुम्हारे ही अंदर है सब कुछ देखो
रत्न के लिए समुंदर में उतरा जाता है
धरती को खोद कर ही दाना आता है
नदी का नाम जमीं का बटवारा पाता है
क्यों निराश हो रहे हो जिन्दगी से
हर रात के बाद पूरब सबेरा लाता है
एक कछुए से हार जाता है खरगोश
निरंतर चलने वाला ही जीत जाता है
एक कदम तो बढ़ाओ हिम्मत करके
एक और एक मिल ग्यारह हो जाता है
समझलोगे जिसदिन जीवन का यह अर्थ
तुम्हारा होना दुनिया में नहीं होगा तदर्थ
आइये आप के अंदर एक बेहतर आदमी खोजा जाए
डॉ आलोक चांटिया
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