मैं जा रहा हूं वहां जहां से कोई लौटता नहीं
जो छूट गया उस राहसे कोई गुजरता नहीं
फिर भी हम बटोरते मुट्ठी में ना जाने कितनी खुशियां
मौत से डर कर कोई सांसो को बटोरता नहीं
आलोक चांटिया
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