Wednesday, January 5, 2022

यह सच है कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं.... कविता

 यह सच है कि,

 मैं तुमसे प्रेम करता हूं ,

तुम पर मरता भी हूं ,

चाहता हूं तुमको पाना ,

बार-बार तुम्हारे जीवन में आना, 

और कई बार पा भी लेता हूं,

 पूरा और पूरा पर अक्सर,

 रह जाता हूं अधूरा ,

जब हाथ में रह जाता है,

 सिर्फ तुम्हारी एक परछाई, 

तुम्हारे जिस्म का गोश्त,

 बहता हुआ खून ,

बिखराव बिना सुकून,

और कुछ अस्थियों के टुकड़े,

जिन को जोड़ने की लाख, 

कोशिश के बाद एक,

 सन्नाटा ही पाता हूं ,

शायद मैं तुम्हारी आत्मा से,

 दूर चला जाता हूं ,

प्रेम मैंने किस से किया,

 यह कहां जान पाता हूं,

आत्मा का सच,

 कहां मान पाता हूं ,

रह जाता हूं सिर्फ,

 छोटी बातों में प्यार के ,

क्योंकि प्रेम का सच तो,

 उस रूह उसे था जिससे,

 मैं दूर था इकरार में ,

इसीलिए आज भी ,

अकेला घूम रहा हूं ,

और तुमको हर गली,

 हर दरवाजे पर ढूंढ रहा हूं,

प्रेम की ऐसी ही कहानी,

 करोड़ों लोग जी रहे हैं ,

उजाले में रहकर,

 अंधेरों को पी रहे हैं

आलोक चांटिया

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