यह सच है कि,
मैं तुमसे प्रेम करता हूं ,
तुम पर मरता भी हूं ,
चाहता हूं तुमको पाना ,
बार-बार तुम्हारे जीवन में आना,
और कई बार पा भी लेता हूं,
पूरा और पूरा पर अक्सर,
रह जाता हूं अधूरा ,
जब हाथ में रह जाता है,
सिर्फ तुम्हारी एक परछाई,
तुम्हारे जिस्म का गोश्त,
बहता हुआ खून ,
बिखराव बिना सुकून,
और कुछ अस्थियों के टुकड़े,
जिन को जोड़ने की लाख,
कोशिश के बाद एक,
सन्नाटा ही पाता हूं ,
शायद मैं तुम्हारी आत्मा से,
दूर चला जाता हूं ,
प्रेम मैंने किस से किया,
यह कहां जान पाता हूं,
आत्मा का सच,
कहां मान पाता हूं ,
रह जाता हूं सिर्फ,
छोटी बातों में प्यार के ,
क्योंकि प्रेम का सच तो,
उस रूह उसे था जिससे,
मैं दूर था इकरार में ,
इसीलिए आज भी ,
अकेला घूम रहा हूं ,
और तुमको हर गली,
हर दरवाजे पर ढूंढ रहा हूं,
प्रेम की ऐसी ही कहानी,
करोड़ों लोग जी रहे हैं ,
उजाले में रहकर,
अंधेरों को पी रहे हैं
आलोक चांटिया
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