Tuesday, November 22, 2022

झूठी खुशियों का दौर

 अब इस कदर हम अपनी खुशी दुनिया को दिखाने लगे हैं 

अगर खरीदी है एक भी बनियान तो उसे सोशल मीडिया को बताने लगे हैं

 अब नहीं रह गई है जिंदगी में दुख की कोई एक कतरन भी

 बूढ़े मां बाप को किसी वृद्धा आश्रम में जाकर बसाने लगे हैं 

अब हर तरफ है खुद को दिखाने की एक ऐसी जद्दोजहद 

जिंदगी से ज्यादा एक फोटो में खुद को दिखाने लगे हैं

 एकपल मे नाप लेते हैं हम किसी की भी इस जिंदगी का पैमाना 

अब हम दर्द के दरिया को भी खुशियों की बिसात पर बिछाने लगे हैं 

सोचता रहता हूं आलोक कहां और कब रहता है मुट्ठी में 

खुले हाथों को गरीबी का पैमाना बताने लगे हैं 

इस चकाचौंध के दायरे में फस कर हम खुद से दूर हो रहे हैं 

कस्तूरी बसाकर उसे ढूंढने के रास्ते बताने लगे हैं 

थोड़ी देर तो ठहर जाओ उस जंगल की दरख्त की तरह 

जो अपनी बाहों में न जाने कितनों के बसेरे बसाने लगे हैं 

माना कि कोई जान नहीं पाएगा कितनों को खुशियां बांटी तुमने

 तेरे चेहरे का नूर काफी होगा जो तेरी हकीकत बताने लगे हैं 


आलोक चाटिया

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