अब इस कदर हम अपनी खुशी दुनिया को दिखाने लगे हैं
अगर खरीदी है एक भी बनियान तो उसे सोशल मीडिया को बताने लगे हैं
अब नहीं रह गई है जिंदगी में दुख की कोई एक कतरन भी
बूढ़े मां बाप को किसी वृद्धा आश्रम में जाकर बसाने लगे हैं
अब हर तरफ है खुद को दिखाने की एक ऐसी जद्दोजहद
जिंदगी से ज्यादा एक फोटो में खुद को दिखाने लगे हैं
एकपल मे नाप लेते हैं हम किसी की भी इस जिंदगी का पैमाना
अब हम दर्द के दरिया को भी खुशियों की बिसात पर बिछाने लगे हैं
सोचता रहता हूं आलोक कहां और कब रहता है मुट्ठी में
खुले हाथों को गरीबी का पैमाना बताने लगे हैं
इस चकाचौंध के दायरे में फस कर हम खुद से दूर हो रहे हैं
कस्तूरी बसाकर उसे ढूंढने के रास्ते बताने लगे हैं
थोड़ी देर तो ठहर जाओ उस जंगल की दरख्त की तरह
जो अपनी बाहों में न जाने कितनों के बसेरे बसाने लगे हैं
माना कि कोई जान नहीं पाएगा कितनों को खुशियां बांटी तुमने
तेरे चेहरे का नूर काफी होगा जो तेरी हकीकत बताने लगे हैं
आलोक चाटिया
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