Friday, January 31, 2020

लपेट कर सांसो को आज तक

लपेट कर सांसो को आज तक ,
बारिश , सर्दी गर्मी में अब तक ,
चल ही तो रहे थे कि सब मिटा ,
जीवन न जाने कहा अब सिमटा,
चाहा बहुत पर अब ऐतबार नहीं ,
समझा एक बार हर बार नहीं ,
मौत ही भली जो अंतहीन रही ,
छुप कर खेली पर अर्थहीन नहीं .............................. क्या आपको नहीं लगता कि मौत को हम सब रोज जीते है और जो जीते है वह है अपनी मौत का वो रास्ता जो हम सबको अनचाहे तरीके से चलना ही है ..................आप क्या जी रहे हैं ????????????????????जीवन ?????????

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