Saturday, January 25, 2020

ज्यो ज्यो रात बीत रही है

ज्यो ज्यो रात बीत रही है ,
मुझको ही जीत रही है ,
१९५० की वो रात भी थी ,
जो अब सबका गीत रही है ,
बाज़ार में खड़े हम सब है ,
झंडे की ये रीत कैसी रही है ...........................आइये बाज़ार में रिश्तो को समझने के प्रयास में देश के रिश्ते को समझते हुए बाज़ार में अपने देश की शान को प्रतिबिंबित करने वाले को झंडे को खरीद में आपको क्यों शर्म  आने लगी ..............................आखिर मेरे इस प्रयास को आप ??????????????????????????????????कहेंगे ही ..............शायद भारतीय जो है हम और आप

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