Friday, January 31, 2020

मै रोया बहुत अपनी जिन्दगी के लिए

मै रोया बहुत अपनी
जिन्दगी के लिए ,
मेरी आंखे भी रोई ,
उसकी बंदगी के लिए ,
जिनको देखा उन्हें ,
पसंद न मुझे देखना ,
जो आये न पसंद कभी ,
वही खड़े पनाह के लिए

लपेट कर सांसो को आज तक

लपेट कर सांसो को आज तक ,
बारिश , सर्दी गर्मी में अब तक ,
चल ही तो रहे थे कि सब मिटा ,
जीवन न जाने कहा अब सिमटा,
चाहा बहुत पर अब ऐतबार नहीं ,
समझा एक बार हर बार नहीं ,
मौत ही भली जो अंतहीन रही ,
छुप कर खेली पर अर्थहीन नहीं .............................. क्या आपको नहीं लगता कि मौत को हम सब रोज जीते है और जो जीते है वह है अपनी मौत का वो रास्ता जो हम सबको अनचाहे तरीके से चलना ही है ..................आप क्या जी रहे हैं ????????????????????जीवन ?????????

Saturday, January 25, 2020

सुबह का सूरज , जब भी आता

सुबह का सूरज ,
जब भी आता ,
विश्वास नया ,
एक जगाता है ,
जीवन जीवन ,
कहती सांसे ,
पग पथ नया ,
कोई पाता है ,
अबकी बार आपको वह तक जाना है जहा आपके मतों से इस देश की तस्वीर बदल सकती है .........आप सभी को  राष्टीय मताधिकार दिवस की शुभकामना .....अखिल भारतीय अधिकार संगठन

ज्यो ज्यो रात बीत रही है

ज्यो ज्यो रात बीत रही है ,
मुझको ही जीत रही है ,
१९५० की वो रात भी थी ,
जो अब सबका गीत रही है ,
बाज़ार में खड़े हम सब है ,
झंडे की ये रीत कैसी रही है ...........................आइये बाज़ार में रिश्तो को समझने के प्रयास में देश के रिश्ते को समझते हुए बाज़ार में अपने देश की शान को प्रतिबिंबित करने वाले को झंडे को खरीद में आपको क्यों शर्म  आने लगी ..............................आखिर मेरे इस प्रयास को आप ??????????????????????????????????कहेंगे ही ..............शायद भारतीय जो है हम और आप

Thursday, January 23, 2020

जो हाथ गुलाब खिला लेते है

जो हाथ गुलाब खिला लेते है ,
वो काँटों को भी जी लेते है
अंधेरो से क्यों डरे वो आलोक ,
जो बाघ के भी दांत गिन लेते है .......अखिल भारतीय अधिकार संगठन उन सब से पूछना चाहता है जो हर सही रास्ते पर चलने वालो को यही समझाता है कि मेरा प्रयास धक् तीन के पात ही है ,
2-
माना की वो मुझको गोली मार देंगे लेकिन ,
उन शब्दों का क्या जो बारूद बन गए है ,
वक्त अब भी है संभल जाओ देश के गद्दारों ,
वरना तुम्हारे सोने के भी ताबूत बन गए है ..........अखिल भारतीय  अधिकार संगठन  का सुप्रभात .....इस आशा के साथ कि अपने मतों से हम भारत कि तस्वीर बदल देंगे ........
3

सच के रास्तो पर वो, इस कदर चलने लगे है

सच के रास्तो पर वो,
इस कदर चलने लगे है,
कि अब वो कह कर,
हर गुनाह करने लगे है-आलोक चान्टिया

दरकती जमी में , पौधे की चाहत ,

दरकती जमी में ,
पौधे की चाहत ,
जिन्दगी की रही ,
एक आँख शायद ,
यह समझ सी गई ,
कुछ ही पल में ,
दर्द देख उसका ,
छलक सी गई ,
आंसू गिर गया ,
उसकी जडो पर ,
पौधा देख बोला ,
खारा ही सही ,
आंख की एक ,
बूंद हिस्से में रही ,
पर पानी तो मिला ,
इस दर्द में कोई ,
अपना तो मिला ,
फूल खिले न खिले ,
पर दिल तो खिला,
जिन्दा रहते में ही ,
एक आंसू तो चला ,
तुम आदमी हो पर ,
मुझ पर क्यों रोये ,
अपनों के लिए तुमने ,
कांटे ही क्यों बोये ,
हसे उनकी बर्बादी पे,
उनके लिए क्यों रहे सोये ,
खारा ही सही उन्हें  भी ,
आँखों में पानी दिखा दो ,
एक बार इस देश को,
जीने का अर्थ सीखा दो ,
अंधेरो से निकाल लो सबको ,
आलोक का भावार्थ बता दो  ............अखिल भारतए अधिकार संगठन ने इस कविता में सिर्फ यही समझाने का प्रयास किया है कि हमको पौधे के सूखने का ख्याल रहता है , दर्द रहता है ..पर जो देश के लोग अशिक्षा , गरीबी, अंधेरो में जी रहे है उनके लिए भी आंख में दर्द होना चाहिए और हमने जिनको देश सौपने का मन बनाया है वो इस तरह के लोग हो जो हमारे जीवन से अँधेरा मिटाए ....इस लिए मतदान करे .अभिमान करे ...मतदान का मान तिरंगे कि शान ....डॉ आलोक चान्टिया

मताधिकार ......मताधिकार

मताधिकार ......मताधिकार
प्रजातंत्र का देखो ये ,
अद्भुत सा हथियार
देश को हम बदल देंगे ,
विकास पे हम फिर चल देंगे ,
 डाल के मत को  बदल डालो
राजनीती इस बार
मताधिकार मताधिकार .....
आप भी आकर मत डालो
हम भी आकर मत डाले
आस पड़ोस से कह दो निकलो,
छोड़ के घर बार ,
मताधिकार ...मताधिकार .....
बूंद बूंद से घट है भरता ,
हर एक मत से समाज है बनता ,
राम राज्य का मत  से कर दो
सपना फिर साकार ...
मताधिकार ..मताधिकार ....
यथा राजा तथा प्रजा ,
यथा भूमि  तथा तोयम
आपका  मत बना देगा
जनता की सरकार
मताधिकार मताधिकार
रचयिता ........डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, January 19, 2020

क्यों जिन्दगी चलती है इस कदर

क्यों जिन्दगी चलती है इस कदर ,
कि कुछ करके भी मौत ही पायी,
और मौत का सब्र भी देखिये जरा ,
पैदा होने के पहले से इंतज़ार में ...............................जिसने सब्र किया वही जीतता है मौत की तरह अंततः

हर दिन मौत और करीब आ जाती है

हर दिन मौत और करीब आ जाती है
ज़िन्दगी खत्म होकर मुकाम पाती है
आलोक चांटिया

कभी कभी मन भी हस लेता है

कभी कभी मन भी हस लेता है ,
कोई ओठो में बस लेता है ,
पर कौन देखता इन आँखों में ,
जो सन्नाटो को भर लेता है ,
हर तरफ हाथो की हल चल ,
कोई पैरो में कुचल लेता है ,
ऐसे तो आलोक है अंधरे में भी ,
पर कौन पश्चिम को वर लेता है ,
चल कर जिन्होंने देखा नंगे पांव ,
वही काँटों से मोहब्बत कर लेता है ,
उनको मालूम है जीवन का मतलब ,
जो एक बार मौत को जी लेता है ,
क्या चलोगी और जिन्दगी यू ही ,
जब मन ओठो का नाम पी लेता है

कितने हताश दिखे तुम



जो मर गए




दर्द में आँखों से जब मोम बहा

दर्द में आँखों से जब मोम बहा ,
तब लगा हांड मांस भी जलता है ,
कुछ लोगो को लगा कि आँसू है ,
किसे बताऊँ ऐसे वो रोज मिलता है@
2
हर कोई  कहता है  बिक जाओ मुझसे
बाजार मे खड़े हर रिश्ते ना जाने कबसे 
आलोक चांटिया

मैं पश्चिम का सूरज हूँ

मैं पश्चिम का सूरज हूँ ,
तुम पूरब के बन जाओ ,
मैं निस्तेज तिमिर का वाहक ,
तुम पथ के दीपक बन  जाओ ,
मैं और तुम दोनों ही रक्तिम ,
अंतर बस इतना पाता हूँ ,
तुम उगने का अर्थ लिए ,
मैं उगने की राह बनता हूँ ...................................उगता और डूबता सूरज दोनों लाल होते है पर दोनों का अर्थ अलग है ....समझिये और कहिये

Wednesday, January 15, 2020

लड़ ...........की.... लड़ ...........के

लड़ ...........की
लड़ ...........के ,
की से के तक ,
लड़ लड़ कर ,
हम क्या कर रहे  है ,
क्या हम जी रहे है ,
या उसको शराब ,
की जगह पी रहे है ,
कितने दुखी दिखे ,
जब उसकी पदचाप ,
गर्भ में सुनी तुमने ,
फिर क्यों लूटा ,
सड़क,बस , शहर ,
हर कही तुमने ,
कैसे मनुष्य हो तुम ,
उस जानवर से बेहतर ,
जो कभी कही भी ,
मादा को नही भरमाता,
न तो माँ कहता ,
ना बहन , पत्नी और ,
प्रेमिका बता कर खुद ,
एक प्रश्न बन आता ,
एक बार तो सोच लो ,
औरत का क्या करना ,
तुमको अपने जीवन में ,
क्यों कि हांड मांस में ,
उसके हिस्से क्यों आती ,
मौतों के तरीके जीवन में .............................जीवन में हम अपने लिए जीवन के सुख तलाशते हा और औरत के लिए मौत के प्रकार ???? क्या ऐसा नहीं है तो फिर औरत प्राक्रतिक तरीके से इतर ज्यादा क्यों मर रही है ??????????????/वह किसी जंगल में रह रही है ?????????????  आलोक  चांटिया

पेट में लात , खा कर मैंने

पेट में लात ,
खा कर मैंने ,
माँ होने का ,
एहसास पाया है ,
बचपन की गलियां ,
छोड़ कर मेरा ,
पत्नी नाम आया है,
कलाई में राखी ,
तुम्हारे मेरे नाम की ,
पर राख हुई फिर भी ,
मेरी ही काया है ,
कैसे मैं समझू ,
लड़की को दुर्गा ,
लक्ष्मी , सरस्वती ,
या फिर काली ,
लूटते हो लज्जा ,
कहकर उसकी लाली ,
बचपन से कोमल ,
कहकर पागल ,
बना कर क्या पाए ,
कही हत्या , कही
बलात्कार सिर्फ
मेरे हिस्से लाये ,
सच बताओ क्या ,
एक लड़की गर्भ  से ,
कभी बाहर आये ........................लड़की को आज के दौर में किस लिए पैदा होना चाहिए और हम उसके लिए दिल से क्या करना चाहते है , ......मुझे नहीं अपने साथ जुडी किसी भी लड़की के लिए बस सोच भर लीजिये मेरा शब्द सार्थक हो जायेगा ...... .अखिल भारतीय अधिकार संगठन

मेरे पास मन है

# mahila
# mahila
मेरे पास मन है ,
पर तुम तन की तलाश ,
में इस लाश में ,
क्या पाओगे और ,
कितने दिन रख ,
पाओगे अपने पास ,
जिन्दा लाश से क्या ,
रख पाओगे कोई आस ,
ये न तो हास और ,
न ही कोई परिहास ,
औरत को तुमने ,
रमणी बनाया ,
और उसके हिस्से ,
नाम भार्या आया ,
रंडी , वेश्या , रखैल
या कुछ और भी ,
कह कर अपने को ,
गिराना चाहते हो ,
तुम क्या वास्तव में ,
किसी लड़की के ,
करीब आना चाहते हो ,.............................. क्या आपको लड़की का कोई नाम रखने में अभी कोई रूचि है .......Dr Alok Chantia ,

क्या मुझको , कोई ले जायेगा

क्या मुझको ,
कोई ले जायेगा ?
कोशिश कर भी लो ,
पर हाथ तेरे या ,
उनके कुछ न आएगा ,
एक गोश्त के कारण,
ही तो भेड़िये,
दौड़ आ जाते है ,
हम चिल्लाते है ,
रोते बिलखते है ,
पर उनके लिए मेरे ,
आंसू ख़ुशी का ,
सबब बन जाते है ,
हमारे आंचल में ,
अंततः ढूध के श्राप ,
और आँखों में दरिंदो ,
के सपने रह जाते है ,
काट कर बिकते गोश्त ,
की दुकानों की तरह ,
जिन्दा लेकर मैं ,
थक रही हूँ अब ,
अपने को लुटते देख ,
ख़ामोशी तेरी होती
मेरे ही सामने जब ,
अब मुझे वहा भेज दो ,
जहाँ से कोई नहीं आता ,
आत्मा बन कर रहूंगी ,
सामने ना सही पर ,
ख़ुशी तो होगी कि,
अब लड़की बन के ,
जमीं पे दुखी न रहूंगी ........................................ लड़की के लिए हम सब कब ऐसा सोचेंगे कि उनको ऐसा लगे कि वह जंगल में नहीं एक मानव की संस्कृति में रहती है जहाँ उनकी इच्छा और गरिमा का ख्याल किया जाता है

मौत की ये , किस दुनिया में

मौत की ये ,
किस दुनिया में ,
रहने लगे ,
अपने में सिमट ,
कर आलोक ,
सब रहने लगे ,
मेरे मरने पर ,
कुछ तो कहेंगे ,
बुरा था या ,
अच्छा कहेंगे ,
पर आज मेरी ,
तन्हाई पर ,
न साथ रहेंगे ,
ना कुछ कहेंगे ,
दुनिया जिसे कहते ,
जादू का खिलौना ,
मिल जाये तो मिटटी ,
खो जाये तो सोना ,
कैसे चलेगा ये ,
एक बार इधर ,
आकर भी ना कोई ,
किसी के साथ चलेंगे ,
बस चार कंधो में ,
हमारे साथ रहेंगे ........................... दुनिया यानि सिर्फ अपने चेहरों की तलाश और अपने में जी जाना .......वही हाड मांस का आदमी कभी हिन्दू तो कभी मुसलमान बन जाता है कभी दलित तो कभी सवर्ण बन जाता है यानि मनुष्य कभी एक सूत्र में पिरो कर न देखा जायेगा ....शत शत अभिनन्दन मानव तुमको निश्चय ही तुम जानवरों से भिन्न हो भिन्न हो .

सूरज के रास्ते में

सूरज के रास्ते में ,
चाँद भी आता है ,
हर सुबह का पथ ,
अंधकार भी पाता है ,
क्यों देखते हो जीवन ,
हर दर्द से दूर ,
कभी कभी दर्द ,
किलकारी के काम आता है .........................क्या आप अपने दर्द में दर्द थोडा  सयम नहीं रखना चाहिए .................हो सकता है कई सवेरा आपका इंतज़ार कर रहा हो ...

मुझे दर्द नहीं अब कि

मुझे दर्द नहीं अब  कि वो हमारे नहीं है
खुशी है कि हम किसी के सहारे नहीं है 
आलोक चांटिया

आओ एक बार , मर कर देखते है

आओ एक बार ,
मर कर देखते है ,
कोई कंकड़ ,
नदी में फेकते है ,
वजूद रहे न ,
रहे बीच में कभी ,
एहसास बढ़ती ,
लहरों में देखते है ,
आओ एक बार ,
मर कर देखते है .........................जीवन में सभी का सम्मान है उसके लिए अपने को रावण मत बनाओ
डॉ आलोक चांटिया

आओ मैं एक कविता लिखूं

आओ मैं एक कविता लिखूं
और तुममे मैं फिर दिखूं ,
कितना अरसा हो गया अब ,
कोई सन्नाटा क्यों आज सहूँ ,
क्या मैं आस पास तुम्हारे रहूँ ,
पर ये सब कैसे उनसे कहूँ ,
जो सिर्फ लूटने घसोटने के लिए ,
भारत अब मैं किस पर हसूँ
खुद पर या उन पर जो लेकर ,
तन, मन धन बता मैं कहा बसूं........
आलोक चांटिया

Thursday, January 2, 2020

चिन्ताओ के , भंवर में फसकर

चिन्ताओ के ,
भंवर में फसकर ,
कौन कहाँ ,
जी पाता है ,
स्वप्निल दुनिया ,
के सपने लेकर ,
हर कोई यहाँ ,
पर आता है ,
मिल जाये सभी ,
कुछ तो अच्छा है ,
खो जाने पर ,
पछताता है ,
जो पाया है ,
कर्म के पथ पर ,
कण कण हर क्षण ,
जाने कब बिक जाता है ,
कब समझा मानव ,
दुसरो के दर्द  को ,
खुद के सुख में ,
हस नहीं  वो पाता है ,
धीरे धीरे सब ,
सपने को खोकर ,
पथराई आँखों से वो  ,
श्मशान तलक ही आता है ,
क्यों न समझा आलोक ,
ये छोटा सा मर्म यहाँ ,
अंधकार को सच समझ ,
उसका कैसा ये नाता है ..........
आलोक चांटिया

क्या हम भूल रहे है है की हम जितने भी सुख के पीछे भाग ले और किसी कुचक्र से उसको पा भी ले पर जाना तो है ही .............हम सब अपने पूर्वज के नाम तक नहीं जानते तो आपके इस कार्यो के लिए कौन आपको याद करने जा रहे है ....अगर् ये  सच है तो आइये थोडा भाई चारा और सुकून को जी ले ....................

Wednesday, January 1, 2020

शुभकामना शुभकामना नए साल का

शुभकामना शुभकामना
नए साल का ,
सब करें सामना |
दुःख में दिखे कोई ,
दर्द को कहे कोई ,
हाथ उसी का ,
तुम थामना ,
शुभकामना शुभकामना .
सन्नाटे से पथ हो ,
रात हो अँधेरी ,
चीख सुनी कोई ,
तो उसे जानना ,
शुभकामना शुभकामना
खुशियों के पल हो ,
खुशियों के कल हो ,
जीवन ही ऐसा ,
तुम फिर बांटना,
शुभ कामना शुभकामना
नए साल का ,
सब करें सामना ....................
अखिल भारतीय  अधिकार संगठन आप सभी को आने वाले चक्रीय समय के प्रतीक नव वर्ष के लिए शुभकामना प्रेषित करता है |.......आपका आलोक चान्टिया

बीत गया जो , वो अतीत हो गया

बीत गया जो ,
वो अतीत हो गया ,
आ रहा जो समय ,
वो प्रतीत हो गया ,
कहते है कह कर ,
इसे नव वर्ष मनाओ ,
हर ओठ का आज ,
यही गीत हो गया ,
किया जो प्रबंधन ,
पल पल का आलोक
देखो वो कैसे अब
सब का मीत हो गया ,
बहको न तुम ,
न बहके ही हम सब ,
प्रगति की कहानी में ,
वही जीत हो गया ,
नव वर्ष  जो लाया ,
वह सन्देश समझ लेना ,
सब को मुस्कराने की ,
देखो रीति बन गया !...अखिल भारतीय अधिकार संगठन नव वर्ष 2019 पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामना प्रेषित करता है .................

जो खुद ही , टूट गया हो

जो खुद ही ,
टूट गया हो ,
अपनों से ,
छूट गया हो ,
उस फूल से ,
क्या भगवान पाओगे ?
अपनी ही ,
कृति को बर्बाद देख ,
तुमसे ही उसकी ,
मौत को देख ,
क्या भगवान से ,
कुछ भी करा पाओगे ?....................हम मनुष्य भी भगवान के प्रतिनिधि है पर क्या उनको तोड़ कर हम उस भगवान तक पहुच पाएंगे ???????????? अगर नहीं तो बदलिए अपने चारो तरफ ........ डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन