Wednesday, September 23, 2020
वो हमें जिन्दगी जीना सीखा रहे थे ,
जिन्दगी में जितने मिले..........................ALOK CHANTIA
जिन्दगी में जितने मिले ,
सभी वफ़ा करके ही गए ,
मैं हर पल साथ रहा सबके ,
और बेवफा सा होता गया ,
जिन्दगी को कभी कहो तो ,
क्या उसने वफ़ा की है कभी ,
मौत ही दामन के साथ रही ,
लोग उससे ही दूर रह गए .
Tuesday, September 22, 2020
Monday, September 21, 2020
Saturday, September 19, 2020
Wednesday, September 16, 2020
Sunday, September 13, 2020
जिन्दगी में सब कुछ खोकर ...................alok chantia
जिन्दगी में सब कुछ खोकर
जिया नहीं मैं कभी भी रोकर
हिम्मत नही है बुझ दिलो में
मिलूँगा मैं राणा ही बनकर
Friday, September 11, 2020
एक सा रहता नहीं समय...............BY ALOK CHANTIA
सोचता हूँ कितना समय
कब कहा और क्यों खो गया ,
देखता हूँ अब समुंदर ,
कुछ और ज्यादा उठ गया
कुछ और खारा हो गया ,
सोचता हूँ समय को
लेकर मैं क्यों न चल सका
देखता हूँ बाल सारे
काले मैं न रख सका
बिना छड़ी मैं ना चल सका
सोचता हूँ और कितना
समय अब मुट्ठी में है ,
देखता हूँ जो कल हसे थे ,
सपने लिए थे वो ,
वो आज चिता पर है
या मिटटी में है ,
पूछता हूँ खुद से यही
क्यों नहीं समझा समय
जानते थे जब कभी ,
एक सा रहता नहीं समय ,
क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल.............BY ALOK CHANTIA
क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल ,
कोई तो है जो सब सहता मुझको ,
तुम इल्जाम न लगाओ दिल का ,
धड़कन खुद दौड़ती रहती हर पल ,
मै तो सिर्फ अपनी जिन्दगी जिया ,
तुम खुद ही चली थी मेरे संग कल ,
अब जब बाँहों में समेटा आलोक मैंने,
जिन्दगी सिमट गयी मौत के पल में ............................जीवन के साथ साथ मौत चलती है पर एक बार मौत जब अपनी जिन्दगी जीने के लिए अंगड़ाई लेती है तो जिन्दगी खुद से ऊब जाती है ...............यानि जब भी आप से कोई ऊब जाये तो समझ लीजिये मौत और जिन्दगी का खेल शुरू हो गया ...............चाहे वह संबंधो का खेल हो या फिर सांसो का ..............
Saturday, September 5, 2020
मैं जिंदगी को रहा खोजता ,
मैं जिंदगी को रहा खोजता ,
और जिंदगी मुझको ,
न मौत मिली मुझको ,
ना मिली ही उसको ,
दर दर यूँ ही भटकते रहे ,
न कभी आस जगी मन में ,
ना प्यास बुझी मेरी
और न कभी तेरी ,
कोई तो नहीं जो मिलाता,
कहा जाना है बताता ,
ना कभी पूछा मैंने
न कभी बताया उसने .
कितनी तड़प है लगती ,
हूँ उसका जो टूटा हिस्सा ,
तेरा नाम आत्मा है ,
कहा खुद को परमात्मा उसने .....
आलोक चांटिया
दर्द कुरेद कुरेद कर मेरा
दर्द कुरेद कुरेद कर मेरा ,
बीज कौन सा बो तुम रहे हो ,
बहते आंसू को नीर समझ ,
पाप कौन सा धो तुम रहे हो ,
पथराई आँखों में झाँको तुम ,
हीरा कोईअब खो तुम रहे हो ,
मै क्यों तम से भागूं अब तो ,
अंतस में दिल जी तो रहे हो ,
आलोक जो खोया तो क्या ,
सपनो का यौवन जी तो रहे हो
अब मन न दुनिया में रहता ,
जी जी कर तुम मर तो रहे हो ,
किसे सुनाऊ सौ बाते दर्द की ,
सब में खुद को ही देख रहे हो ,
आज मिले वो बनाने वाला जो ,
पूछूं खेल कौन सा खेल रहे हो ,
मै भी तो था कुछ पल धरा का ,
धर धर के क्यों कुचल रहे हो ,
तोड़ के मेरे हर एक सपने को ,
दिल को दर्पण सा छोड़ रहे हो ,
बटोर नही पाउँगा अब ये सब ,
हर टुकड़े क्यों फिर जोड़ रहे हो ,.................................किसी के साथ रहना और उसका साथ छोड़ देना सबसे आसन काम है ........पर आज मुझे वह हिरन का झुण्ड याद आ रहा है जिनको दूर से देखने पर एक बड़ा समूह सा लगता है ..पर एक शेर( दुःख या समस्या ) के आने पर हिरन के अकेले होने की कलई खुल जाती है , बहुत से लोग कहेंगे की आप तो लिख कर बता लेते है पर वो क्या करे जो सिर्फ घुट घुट कर जी रहे है ........................
जब मेरी जिंदगी थमी
जब मेरी जिंदगी थमी ,
सोचा छोड़ दू अब जमीं ,
न पूछो कितनी भीड़ जमी ,
शायद आज संस्कृति की ,
यही कहानी शेष बची थी,
क्या इसी खातिर भगवन ,
ने मानव और मानव ने ,
संस्कृति की बिसात रची थी ............
क्या आप औरत का मतलब जानते है ???
Tuesday, September 1, 2020
क्या कहूँ क्या जीवन मेरा.................by alok chantia
क्या कहूँ क्या जीवन मेरा ,
मौत से बेहतर क्या जानूँ,
छोड़ गए जो मुझे अकेला ,
उनको मानव मैं क्यों मानूं ,
जो कहते थे लोग सभी ,
सुख के सब साथी होते है ,
वही खड़े अक्सर बाजार में ,
मेरे सुख के खरीददार होते है ,
कोई फर्क नहीं मुझे अँधेरे का ,
सपने सुन्दर तब ही आते है ,
कोई ताज महल होता तामीर है ,
आलोक से दूर जब जाते है ,
मेरे गरीबी के जलते दीपक ,
तुमको ख़ुशी दीपावली सी देंगे ,
मेरे फटे हाल कपडे के सपने ,
उचे लोग अब फैशन में लेंगे ,
फिर छूट रही है ऊँगली तेरी ,
मुट्ठी में रेत की तरह आज ,
सिलवटें, मसले हुए फूल ,
ना जानेंगे रात का राज ,
अँधेरा तो फिर हुआ बहुत है ,
दायरों में रिश्तो के लेकिन ,
पर एक रिश्ता फिर उभरा ,
मेरी बर्बादी से तेरा मुमकिन ...........
पता नहीं क्या लिखता रहा कभी समझ में आये तो मुझे समजाहिएगा जरूर क्योकि आज आदमी से ज्यादा बर्बादी का खेल कोई नहीं खेल रहा एक पागल कुत्ता भी नहीं एक जहरीला सांप भी नहीं .......
न जाने क्यों,,,,,,,,,,,,,by alok chantia
न जाने क्यों ,
जीवन मुझे महसूस
नहीं होता |
दिन भी होता है
रात भी होती है पर ,
महसूस नही होता|,
एक सन्नाटे सा
फैलता पसरता ,
रोज हर तरह |
एक शोर सा ,
होता अंदर जैसे,
हो कोई विरह |
सांस का होना गर ,
जीवन है आलोक ,
तो चलती क्यों नही| ,
मौत का किलोल ,
सुनती भी नहीं ,
क्यों ढंग से सही |,
मानव तो वो भी ,
जो मारते मानव को ,
हर दिन हर रात |
कहते दानव क्यों ,
नहीं उनको कभी ,
करते सच्ची बात |
Sunday, August 30, 2020
Saturday, August 29, 2020
न जाने कितनी आँखे रोती रही...........by alok chantia
न जाने कितनी आँखे रोती रही ,
और मौत मेरे संग सोती रही ,
कब पसंद आई मोहब्बत उनको ,
तन्हाई कमरे में अब होती रही ,
कितने बेदर्दी से निकाला घर से ,
सांस न जाने कहाँ खोती रही ,
मेरी प्रेम कहानी का अंत देखो ,
मौत जल कर जिन्दगी ढोती रही ,
मेरी राख को भी नदी में बहा कर ,
मिटटी में कोई बीज फिर बोती रही,
ये क्या आलोक को सिला मिला उनसे ,
मौत को देख उनकी मौत होती रही
मैंने अपनी आंखें................by alok chantia
मैंने अपनी आंखें
क्या बंद कर ली
लोग मुझे फिर से
उस मिट्टी में समाई हुई
असीमित ऊर्जा सर्जन की
शक्ति से मिलाने चल दिए
देखिए तो सही कैसे
अपने चार कंधों पर लिए
मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा
फिर भी सच मानो
लौट कर आऊंगा क्योंकि
यह मिट्टी ही मेरे तन को
बनाती है बिगड़ती है
मिलाती है जलाती है
इसीलिए कैसे कहूं तुम
आज मुझे फिर से
वही ले जा रहे हो
जिसके कारण से मिलने के
बाद मेरे इस नश्वर शरीर को
इस दुनिया में पा रहे हो
कितना खुश नसीब हूं मैं
आज मैं फिर उस मिट्टी से
मिल पा रहा हूं
ए दुनिया वालों अब मैं
फिर अपनी सच्ची मोहब्बत के
पास आलोक जा रहा हूं
आलोक चांटिया