Tuesday, September 1, 2020

न जाने क्यों,,,,,,,,,,,,,by alok chantia

न जाने क्यों ,

जीवन मुझे महसूस 

नहीं होता |

दिन भी होता है 

रात भी होती है पर ,

 महसूस नही होता|,

एक सन्नाटे सा 

फैलता पसरता ,

रोज हर तरह |

एक शोर सा ,

होता अंदर जैसे, 

हो कोई विरह |

सांस का होना गर ,

जीवन है आलोक ,

तो चलती क्यों नही| ,

मौत का किलोल ,

सुनती भी नहीं ,

क्यों ढंग से सही |,

मानव तो वो भी ,

जो मारते मानव को ,

हर दिन हर रात |

कहते दानव क्यों ,

नहीं उनको कभी ,

करते सच्ची बात |

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