Friday, September 11, 2020

क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल.............BY ALOK CHANTIA

 क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल ,

कोई तो है जो सब सहता मुझको ,

तुम इल्जाम न लगाओ दिल का ,

धड़कन खुद दौड़ती रहती हर पल ,

मै तो सिर्फ अपनी जिन्दगी जिया ,

तुम खुद ही चली थी मेरे संग कल ,

अब जब बाँहों में समेटा आलोक मैंने, 

जिन्दगी सिमट गयी मौत के पल में ............................जीवन के साथ साथ मौत चलती है पर एक बार मौत जब अपनी जिन्दगी जीने के लिए अंगड़ाई लेती है तो जिन्दगी खुद से ऊब जाती है ...............यानि जब भी आप से कोई ऊब जाये तो समझ लीजिये मौत और जिन्दगी का खेल शुरू हो गया ...............चाहे वह संबंधो का खेल हो या फिर सांसो का ..............

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