Saturday, September 5, 2020

मैं जिंदगी को रहा खोजता ,

 मैं जिंदगी को रहा  खोजता ,

और जिंदगी मुझको ,

न मौत मिली मुझको ,

ना मिली ही उसको ,

दर दर यूँ ही भटकते रहे ,

न कभी आस जगी मन में ,

ना प्यास बुझी मेरी

और न कभी तेरी ,

कोई तो नहीं जो मिलाता,

कहा जाना है बताता ,

ना कभी पूछा मैंने

न कभी बताया उसने .

कितनी तड़प है लगती ,

हूँ उसका जो टूटा हिस्सा ,

तेरा नाम आत्मा है ,

कहा खुद को  परमात्मा उसने .....

आलोक चांटिया

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