मैंने अपनी आंखें
क्या बंद कर ली
लोग मुझे फिर से
उस मिट्टी में समाई हुई
असीमित ऊर्जा सर्जन की
शक्ति से मिलाने चल दिए
देखिए तो सही कैसे
अपने चार कंधों पर लिए
मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा
फिर भी सच मानो
लौट कर आऊंगा क्योंकि
यह मिट्टी ही मेरे तन को
बनाती है बिगड़ती है
मिलाती है जलाती है
इसीलिए कैसे कहूं तुम
आज मुझे फिर से
वही ले जा रहे हो
जिसके कारण से मिलने के
बाद मेरे इस नश्वर शरीर को
इस दुनिया में पा रहे हो
कितना खुश नसीब हूं मैं
आज मैं फिर उस मिट्टी से
मिल पा रहा हूं
ए दुनिया वालों अब मैं
फिर अपनी सच्ची मोहब्बत के
पास आलोक जा रहा हूं
आलोक चांटिया
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