Friday, September 11, 2020

एक सा रहता नहीं समय...............BY ALOK CHANTIA

सोचता हूँ कितना समय 

कब कहा और क्यों खो गया ,

देखता हूँ अब समुंदर ,

कुछ और ज्यादा उठ गया 

कुछ और खारा हो गया ,

सोचता हूँ समय को 

लेकर मैं क्यों न चल सका 

देखता हूँ बाल सारे 

काले मैं न रख सका 

बिना छड़ी मैं ना चल सका 

सोचता हूँ और कितना 

समय अब मुट्ठी  में है ,

देखता हूँ जो कल हसे थे ,

सपने लिए थे वो ,

वो आज चिता पर है 

या मिटटी में है ,

पूछता हूँ खुद से यही 

क्यों नहीं समझा समय 

जानते थे जब कभी ,

एक सा रहता नहीं समय ,

No comments:

Post a Comment