सोचता हूँ कितना समय
कब कहा और क्यों खो गया ,
देखता हूँ अब समुंदर ,
कुछ और ज्यादा उठ गया
कुछ और खारा हो गया ,
सोचता हूँ समय को
लेकर मैं क्यों न चल सका
देखता हूँ बाल सारे
काले मैं न रख सका
बिना छड़ी मैं ना चल सका
सोचता हूँ और कितना
समय अब मुट्ठी में है ,
देखता हूँ जो कल हसे थे ,
सपने लिए थे वो ,
वो आज चिता पर है
या मिटटी में है ,
पूछता हूँ खुद से यही
क्यों नहीं समझा समय
जानते थे जब कभी ,
एक सा रहता नहीं समय ,
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