Saturday, June 16, 2012

vikas???????????????????

विकास का भारत ???????????????
सड़क के किनारे ,
भारत माँ चिथड़ो में लिपटी ,
इक्कीसवीं सदीं में ,
जा रहे देश को ,
दे रही चुनौती ,
खाने को न रोटी ,
पहनने को न धोती ,
है तो उसके हाथ में ,
कटोरा वहीं ,
जिसके आलोक में ,
झलकती है प्रगति की ,
पोथी सभी ,
किन्तु हर वर्ष होता है ,
ब्योरो का विकास ,
हमने इतनो को बांटी रोटी ,
और कितनो को आवास ,
लेकिन आज भी है उसे ,
अपने कटोरे से ही आस ,
जो शाम को जुटाएगा ,
एक सूखी रोटी और ,
तन को चिथड़ी धोती ,
पर लाल किले से आएगी ,
यही एक आवाज़ ,
हमने इस वर्ष किया ,
चाहुमुखीं विकास ,
हमने इस वर्ष किया ,
चाहुमुखीं  विकास ............................ देश में फैली गरीबी के बीच न जने कितने कटोरे से ही अपना जीवन चला रहे है जब कि देश के नेता विकास का ढिंढोरा पीट रहे है .क्या आप को ऐसा भारत नही दिखाई दिया ...डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Wednesday, June 13, 2012

yaad

मेरी आवाज अब कुछ दूर जाती नही है ,
क्या मेरे देश को मेरी याद आती नही है ,
बंद सलाखों में उम्र भर जिन्दगी तेरे लिए ,
माँ के आँचल की खुशबु सांसे पाती नही है .......................................आज भी पाकिस्तान में बंद देश के जवानों क मेरा शत शत नमन .कितने बेबस है हम की सरकार उनके लिए कुछ नही कर रहीजिनका कसूर सिर्फ इस देश से प्रेम था .................देश की इसी अनदेखी ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया .........अखिल भारतीय अधिकार संगठन .......सुप्रभात

andhera hamara swabhav hai

अंतस के तमस में ही दिल चल पाता है ,
गर्भ के अंधकार से जन्म कोई पाता है
नींद भी आती स्वप्न भी आते रातो में ,
कालिमा से निकल सूर्य पूरब में आता है ............................
अंधकार हमारा स्वाभाव है और प्रकाश हमारा प्रयास ....कोई भी दीपक अँधेरा नही फैलाता पर  दीपक के बुझते  ही  अँधेरा खुद फ़ैल जाता है ..अणि हमको अच्छे समाज से लिए निर्माण  करना है क्यों की गलत समाज तो हमेशा से ही है .......................शुभ रात्रि अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Tuesday, June 12, 2012

jindgi na milegi dobara

कितनी सुबह कितनी बार आएगी ,
और तुमको  सोते से जगा पायेगी ,
पश्चिम को कोसना छोड़ दे आलोक ,
जिन्दगी आदमी फिर बन न पाएगी ...................... हम जो भी कर रहे है उसमे रोज यह सोचिये कि खाना , कपडा , प्रजनन , और आवास कि व्यवस्था ( जानवर भी करते है ) के अलावा दूसरो के लिए हम कितना जी पा रहे है ( जानवर दूसरो के लिए नही जीते है और अपने सामने शेर को शिकार करता देखते है पर खुद को बचाने में लगे रहते है ) यही अधिकारों कि रक्षा का मूल मन्त्र है ....सुप्रभात , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

aalok milta nhi baar baar

करोडो तारे मिलकर सूरज नही बन पाते है ,
हर रात में सुबह के ही तस्सवुर आते है ,
तुम भी बन कर देखो तारो से इतर जीवन ,
ये मौके बार बार आलोक मिल नही पाते है | ...............................शुभ रात्रि या हम मानव होने का पूरा मतलब समझ रहे है ??????????? खाना तो चीटी भी कल की चिंता में बटोरती है | अपना घोसला तो चिडिया भी बनाती है | अपने बच्चो की रक्षा और उन्हें पैतरेबाजी तो हर जानवर सिखाता है | फिर हम मानव क्यों है ???????????? थोडा यही सोचते हुए सोइए आज ......अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Monday, June 11, 2012

roshni ki talash

कितना हैरान मिला खुद में आदमी ,
न जाने क्या तलाशता मिला आदमी ,
एक टुकड़ा रौशनी ढूंढता जिन्दगी में ,
अँधेरे से गुजरता रहा आलोक आदमी .. ,,,,,,,,,,,,,जि.....................न्दिगी.......................ऐसा क्यों हुआ कि आदमी अपने ही जीवन को टुकड़ा करके खुद में खो रहा है ......वह यह जान ही नही पा कि वह जानवर नही आदमी बना था पर वह हर बात पर कहता है कि कि हमारे साथ थोड़ी न ऐसा हो रहा ....................जब सब सह रहे है तो मै क्यों बोलू ?????????? क्या आपके मन में ऐसा कभी आया तो बदलिए अपने को .........अपने अधिकार के लिए जियिए...........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

kutta aur aadmi

आदमी को आदमी की तलाश है ,,
हर तरफ झूठ फरेब का कयास है ,
घरो में रखने लगे है कुत्ते अब लोग ,
दरवाजे पर एक भूखा खड़ा हताश है ................... क्या हम बदलने लगे है ? क्या आदमी को आदमी से ज्यादा भरोसा जानवर आर हो गया है ? तो फिर मानव क सर्वोत्तम कौन और क्यों कहेगा ....आइये सोने से पहले थोडा सोचे..........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, June 10, 2012

जीने की चाहत जगा दी तुमने ,
जीने की आहट बता दी तुमने ,
तुमको राम रहीम में बाट लिया ,
ऐसे क्यों हमको बर्बाद किया तुमने ............................जरूरत है कि हम खुद सोच कर देखे कि हमने जमीं को कितना बेहतर आज तक बनाया है ..................सुप्रभात अखिल भारतीय अधिकार संगठन

dojkh

आदमी कहकर भी सुकून नही पाता है ,
और जानवर खामोश ही जी जाता है ,
कितना फर्क किया है  या अल्लाह मेरे
इन्सान जमी को दोजख बना जाता है ,.........................सोचिये और सो जाइये कही सुकून  की तलाश  में

Saturday, June 9, 2012

aadmi

इतने अशुभ से होकर गुजरता है आदमी ,
कि रात व दिन को शुभ कहता है आदमी ,
ना जाने क्यों डरा डरा सा खड़ा है आदमी ,
जानवरों से ज्यादा बेबस हो गया आदमी .............................. क्या आपको शुभ रात्रि कहू????????????// अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Friday, June 8, 2012

kaun mere pas hai

क्यों मन इतना उदास है ,
कौन है जिससे आस है ,
हर कोई जीता अपने लिए ,
फिर कौन जो मेरे पास है ..................................

Thursday, June 7, 2012

ali kli

अलि कली का सुंदर खेल चला ,
सूरज फिर आज पूरब से मिला ,
हम कुछ अच्छा कर ले आलोक ,
पग बढ़े ऐसा ही सोच मन खिला ...................सुप्रभात

Wednesday, June 6, 2012

roshni

कैसे कह दूँ सुबह मुझे मयस्सर ना हुई ,
कई कह दूँ पूरब आफ़ताब की ना हुई ,
पर ना जाने क्यों मन में बादल छाये ,
रौशनी तो दिखी पर कही रौशनी ना हुई .................................सुप्रभात, अखिल  भारतीय अधिकार संगठन

phul nikla

रात दिन की तरह रिश्ता कुछ ऐसे चला ,
कही रौशनी तो कही फिर अँधेरा मिला
सूरज से दूर हुए तो चाँद हसता ही मिला ,
गुलाब न सही रात में कोई फूल था खिला ...................
हर समय की अपनी रंगत है और उसी के कारण हम न जाने क्या क्या इन आँखों से देखते है पर कुछ इसको दर्द समझ लेते है और उछ इसको जीवन का रंग कह कर इसी की  खुशबू बन जाते है , क्या आप अपने लिए ऐसा सोचते है ??? शुभ रात्रि , अखिल भारतीय अधिकार संगठन , डॉ आलोक चान्टिया

Tuesday, June 5, 2012

bataya na kro.............

मेरी मोह्हबत को यूँ  न जाया करो ,
समय को मेरे यूँ बहाया ना करो ,
एक पल जो जिया सौ बरस की तरफ ,
सौ बार दिन भर में बताया ना करो

subah

मेरे वजूद का अक्स रौशनी में मिला ,
रात भी आई थी तो क्यों   करू गिला ,
थोडा आराम ही पा गया फिर जिस्म ,
कुछ कम नही सुबह का ये सिलसिला ...................... बिना रात के आये आप सुबह का दीदार सोच भी नही सकते और यही कारण है कि हम सब को अपने अधिकारों के लिए सोचना चाहिए , हमारे जीवन की कमी ही हमें अधिकारों के प्रति और जागरूक बनती है , डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

vishwa paryavaran divas

मुझे काट कर दरवाजो में महफूज हो गए ,
मेरी ही छावं  में लेट सुकून से सो गए ,
जला कर मुझे खुद  को जिन्दा रखते हो ,
देखो दरख्त बिना कितने तन्हा हो गए ................
आप अपने पुरे जीवन में उतनी अक्सिजन का प्रयोग करते है जितनी दो पेड़ अपने पुरे जीवन में निकालते है तो क्यों नही इस सबसे आसन से ऋण को पर्थिवी पर जिन्दा रहते हुए ही उतर दीजिये और अपने आस पास दो पेड़ लगा दीजिये ....अखिल भारतीय अधिकार संगठन विश्व पर्यावरण दिवस पर आप से बस यही जाग्रति की उम्मीद करता है ....शुभ रात्रि

Monday, June 4, 2012

badal ka jajba

दरख्तों के आस पास आँचल का एहसास है ,
जमीं में उलझी शबनम में ओठो की प्यास है ,
कोई बढ़कर हवाओ की तरह ही लिपट जाये ,
आफताब से प्यार में जैसे बादल के जज्बात है .........................
हर विपरीत परिस्थिति में जीवन से मोह्हबत करना आना चाहिए वरना बादल की क्या मजाल कि वो अपने प्रेम की बहो में सूरज को समेटने की गुस्ताखी करे | यही है आपके अधिकारों के जागने का मन्त्र , अखिल भारतीय अधिकार संगठन .........सुप्रभात

jaldi kyo nhi aate

सरकते काले आंचल से बंद आंखे ,
चांदी से बदन की पूरब की बाते ,
न जाने क्यों सुरूर में रही साँसे ,
आलोक तुम जल्दी क्यों नही आते ....................शुभ रात्रि

raat shubh ho

उसकी पदचाप सुन अनसुना कर दिया ,
मोह्हबत को रात ने फना कर दिया ,
ला पिला दे साकी अब नींद का पैमाना
ख्वाब ने दुनिया से बेगाना बना दिया ..........शुभ रात्रि , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Sunday, June 3, 2012

subah

लेकर आरजू अहिस्ता आफताब निकला ,
करके रास्ते गुलाबी सफ़र पर निकला ,
हर कोई नहा लिया उसके इस जोश से ,
अँधेरे को छोड़ जमीं से एक बीज निकला ......................इंतज़ार न कीजिये और सूरज के साथ अपने जीवन के अधिकार के लिए लड़िये और अगर चाहिए तो इस नेक कम में अखिल भारतीय अधिकार संगठन का रुख करिए ............सुप्रभात

andhera rha is makan me

तू सब्र ना देख अब मेरे ही इम्तिहान में ,
कोई और नही मेरा अब इस जहान में ,
माना हर किसी को आरजू आलोक की ,
पर हमेशा अँधेरा ही रहा इस मकान में ,..................शुभ रात्रि

Saturday, June 2, 2012

mera jatan

रात कुछ इस कदर खौफ जदा रही ,
कि ओस की बूंदे पूरे दौर फ़िदा रही ,
जिन्दगी मेरी चली तिनका तिनका ,
जब तक पूरब भी मुझसे जुदा रही ............... रोशनी का मज़ा इसी में है कि हर तरह रोशनी हो पर न जाने कितने कोने इन्दगी के अधिकारों के आभाव में अंधरे में रह जातेहै ओस की बूंद की तरह बस हम रात की तरह जीने की कोशिस करते है और उसी कोशिश में एक साथ आपका अखिल भारतीय अधिकार संगठन भी निभाता है , आपको सुप्रभात

shubh ratri

जिन्दगी मेरी बेजार होती रही ,
साँसे उनकी रात भर रोती रही ,
न जाने उस काली रात में क्या ,
पूरब आलोक पे निसार होती रही ................ पर हर किसी के लिए पूरब का अपना मतलब है और अपनी हसी है और ऐसी हसी में आपके अधिकार का अगर सरुर हो तो अखिल भारतीय अधिकार  संगठन तो आपके इर्द गिद तो होगा ही .............शुभ रात्रि