Friday, December 12, 2014

मुझे भी ...........


मुझे भी जीने दो ...........

कूड़े की गर्मी से ,
जाड़े की रात ,
जा रही है ,
पुल पर सिमटे ,
सिकुड़ी आँख ,
जाग रही है ,
कमरे के अंदर ,
लिहाफ में सिमटी ,
सर्द सी ठिठुरन ,
दरवाजे पर कोई ,
अपने हिस्से की ,
सांस मांग रही है ,
याद करना अपनी ,
माँ का ठण्ड में ,
पानी में काम करना ,
खुली हवा में आज ,
जब तुम्हारी ऊँगली ,
जमी जा रही है ,
क्यों नहीं दर्द ,
किसी का किसी को ,
आज सर्द आलोक ,
जिंदगी क्यों सभी की ,
बर्फ सी बनती ,
पिघलती जा रही है ...................
आप अपने उन कपड़ों को उन गरीबों को दे दीजिये जो इस सर्दी के कारण मर जाते है हो सकता है आपके बेकार कपडे उनको अगली सर्दी देखने का मौका दे , क्या आप ऐसे मानवता के कार्य नहीं करना चाहेंगे ??????? विश्व के कुल गरीबों के २५% सिर्फ आप के देश में रहते है इस लिए ये मत कहिये कि ढूँढू कहाँ ?????? अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Thursday, December 11, 2014

रोटी

घर के बाहर ,
अक्सर दो चार ,
रोटी फेंकी जाती है ,
कभी उसको ,
गाय कहती है ,
कभी कुत्ते खाते,
मिल जाते है ,
घर के बाहर ,
खड़ा एक भूखा ,
आदमी भूख की ,
गुहार लगाता है ,
उसे झिड़की ,दुत्कार ,
नसीहत मिलती है ,
पर वो घर की ,
रोटी नहीं पाता है .....................जब आपके पास रोज घर के बाहर फेकने के लिए रोटी है तो क्यों नहीं रोज दो तजि रोटी किसी भूखे को खिलाना शुरू कर देते है क्या मानवता का ये काम आपको पसंद नहीं कब तक गाय और कुत्तो को रोटी खिलाएंगे , ये मत कहियेगा जानवर वफादार होता है , आप बस घर के बाहर पड़ी रोटी पर सोचिये ...........अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Tuesday, December 9, 2014

कैसा मानव और कैसा मानवाधिकार

अखिल भारतीय अधिकार संगठन विश्व मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर ये विचार करना जरुरी है कि क्यों मानव को अधिकारों की जरूरत पड़ी क्या वो भटक गया है .हम किस मानव के अधिकारों के लिए चिंतित है.............
मानव ..........
कही कुछ आदमी ,
मिल जाये तो ,
मिला देना मुझ से ,
दो पैरों पर ,
चलने वाले क्या ,
मिट गए जमी से ,
जीते रहते ,
खुद की खातिर ,
जैसे गाय और भालू ,
रात और दिन ,
बस खटते रहते,
भूख कहाँ मिटा लूँ ,
कभी तो निकलो ,
अपने घर से ,
चीख किसी की सुनकर ,
कुचल जाएगी पर ,
निकलती चीटीं ,
हौसला मौत का चुनकर ,
राम कृष्णा ,
ईसा, मूसा की बातें ,
क्या कहूँ किसी से ,
चल पड़े जो ,
इनके रास्तों पर ,
ढूंढो उसे कही से ,
मिल जाये कही ,
जो कुछ आदमी ,
जरा मिला दो मुझ से ,
जो फैलाये आलोक ,
अँधेरा करें दूर ,
मानव अधिकार उन्ही से .......................क्या आप ऐसे आदमी बनने की कोशिश करेंगे ???????????????///////,
 

Monday, December 8, 2014

मानव कौन हो तुम

चारों तरफ मोती ,
बिखरे रहे मैं ही ,
पपीहा न बन पाया ,
स्वाति को न देख ,
और न समझ पाया ,
मानव बन कर ,,
भला मैंने क्या पाया ?
ना नीर क्षीर ,
को हंस सा कभी ,
अलग ही कर पाया ,
ना चींटी , कौवों ,
की तरह ही ,
ना ही श्वानों की ,
तरह भी ,
संकट में क्यों नहीं ,
कंधे से कन्धा मिला ,
लड़ क्यों ना पाया ,
मैंने मानव बन ,
क्यों नहीं पाया ?
सोचता हूँ अक्सर ,
मानव सियार क्यों ,
नहीं कहलाया ,
हिंसक शेर , भालू ,
विषधर क्यों ,
नहीं कहलाया ?
अपनों के बीच ,
रहकर उनको ही ,
खंजर मार देने के ,
गुण में कही मानव ,
जानवरों से इतर ,
मानव तो नहीं कहलाया ............मुझे नहीं मालूम कि क्यों मनुष्य है हम और किसके लिए है हम कोई कि अगर आपको जरूरत है है तो तो आप किसी मनुष्य के बारे में जानने की कोशिश करते भी है कि वो जिन्दा है या मर गया वरना आप किसी दूसरे मनुष्य में अपना मतलब ढूंढने लगे रहते है | मैं भी इसका हिस्सा हूँ मैं किसी को दोष नही दे रहा बस समझना चाहता हूँ कि जानवर के गुण तो हमें पता है पर हम!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!आज मैं पूरी तरह स्वस्थ हो गया थोड़े घाव है जो एक दो दिन में भर जायेंगे

Saturday, November 15, 2014

मेरा मन कही लगता नहीं

मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं ,
चुप चाप सब हैं जी रहे ,
सच का बाजार चलता नहीं ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं .......1
मैं चाह कर भी हार हूँ ,
जीवन नहीं करार हूँ ,
आलोक मार्ग दर्शक नहीं ,
अंधेरों का मैं प्यार हूँ ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं ..........२
रोटी पाने की बस होड़ हैं ,
भ्रष्टाचार क्यों बेजोड़ हैं ,
ये भाई बहनों के देश में ,
सहमा क्यों हर मोड़ हैं ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं .........३
घर ही नहीं देश टूट रहा है ,
विश्वास,भी अब छूट रहा है,
मारना है जब सच जानते हो ,
मन फिर क्यों घुट रहा हैं ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं ............४
जीवन में जब हम सिर्फ रोटी तक रह जाते है तो देश , समाज, और घर सब टूट जाते है ......अखिल भारतीय अधिकार संगठन 

Saturday, November 1, 2014

shrm kaha gayi

एक पूँछ उठाये ,
कुत्ते को देख ,
मैंने लाल पीले ,
होते हुए कहा ,
क्या तुम्हे शर्म ,
नही आती है ,
कुत्ते ने बड़े ही ,
शालीनता से ,
कहा कि आदमी ,
के साथ रहने ,
वाले के पास शर्म ,
रह कहा जाती है .........

Monday, October 27, 2014

जीवन का अर्थ

जानता हूँ मौत मेरे ,
इर्द ही है  घूम रही ,
चल जिंदगी तुझे कोई ,
फिर मिल जाये सही ,
रास्ते होते नही खुद ,
बनाये जाते यहाँ ,
खीच ले एक बार फिर ,
आज फिर जाता कहाँ,
श्वानों के शोर से ,
गज कभी डरता नहीं ,
गीदड़ों के बीच में ,
वीर कभी मरता नहीं ,
सीपियों के बीच में ही ,
मोती की पहचान है ,
स्वाति की ओज से ,
नहीं कोई अनजान है ,
मुस्कराता गुलाब देखो,
काँटों के बीच रह कर ,
जी कर एक बार देखो ,
झूठो के बीच रह कर ,
कर्ण हरिश्चंद्र सब यही ,
सच के खातिर जी गए ,
जो जिया न्याय को ,
नाम उसी के रह गए ...................राम , कर्ण , हरीश चन्द्र राणा प्रताप कुछ ऐसे नाम है जिनके जीवन में हमेशा सुख बना रहता है अगर वो अपने जीवन को उस तरह से चलते जैसा झूठे फरेबी , मक्कार , असत्य पर चलने वाले चाहते थे पर ऐसा ना करके ही उन्होंने समाज और उसका अर्थ हमारे सामने रखा , शिक्षकों से अपील है कि वेतन भोगी से ज्यादा एक ऐसी रास्ते का निर्माण करें जिससे आने वाली पीढ़ी एक और उन्नत सामज को बनाने में योगदान कर सके

कैसा जीवन

तोड़ कर मुस्कराहट
का एक गुच्छा ,
काश मैं तुझको ला,
के दे पाता,
बदहवास सी होती ,
जिंदगी को कोई ,
तिनके का सहारा ,
करा पाता,
बहती ना अंतस ,
की जिन्दा कहानी ,
जो तूने हर रात ,
बुनी  थी कि ,एक राजा ,
था एक रानी ,
चांदनी सी पसरती ,
झींगुरों के गान में ,
नीरवता को समेटे ,
तिमिर किसी प्रान में ,
सिर्फ शेष अब रह गया ,
समय का वो उजास ,
गुजरे जिनमे थे कभी ,
सिंदूरी से प्रकाश ,
लगता है हो कही यही ,
पर सच ये भ्रम है ,
आने जाने का यहाँ ,
ना जाने कैसा क्रम है ...................जीवन और मौत दोनों एक मात्र सच है

Tuesday, October 21, 2014

कहा आ गए हम

मर जाने पर तो ,
जान भी लेते है ,
लोग की सामने वाले ,
घर में रहता था कौन ,
जिन्दा रहने पर,
सामने रहता है ,
कौन सुनकर साध ,
लेते है मौन ,
क्यों बना रहे है हम ,
मौत से रिश्तों को ,
जानने का सिलसिला ,
जिन्दा रहने पर ,
कितना अकेला रहा ,
आदमी उसे क्या मिला ?
कभी मुड़ कर देख ,
लिया करो उसका भी ,
घर जो तुम्हारा नहीं ,
देखती है आँखे आरजू से ,
जो आदमी है सिर्फ ,
रिश्तों में हमारा नहीं .................आज हम क्यों नहीं आदमी के लिए खड़े होते है बल्कि हम उसके लिए पूछते है यार ये जो मरा कौन था या फिर लाश घाट पर कब पहुंचेगी ? या हम उसके लिए क्यों कुछ करें ????? ,

Tuesday, September 2, 2014

सोचो और सोचो

जाने के आसरे बैठे क्यों हो ,
क्यों आये हो ये भी सोचो ,
क्या दिया है इस दुनिया को ,
कभी तन्हाई में ये भी सोचो ,
जिसको करके तुम खुश हुए ,
ये सब तो है कौन न करता ,
मानव होकर दिया क्या तुमने,
मुट्ठी में है रेत तो सोचो ,
अगर नहीं कोई फर्क चौपाये से ,
दो हाथ मिले क्यों सोचो ,
जी लो एक बार उसके खातिर ,
भगवन को एक बार तो सोचो ,
कितना दीन हीन हुआ वो है ,
उसकी बेबसी को भी तो सोचो ,
क्या कहे अब सब मिटा कर ,
मानव कैसे ले अवतार वो सोचो .........
ऊपर वाला क्या खुश है मानव को बना कर


Monday, September 1, 2014

कैसी है जिंदगी मेरी तेरे हाथ में

क्या कहूँ क्या जीवन मेरा ,
मौत से बेहतर से क्या जानूँ,
छोड़ गए जो मुझे अकेला ,
उनको मानव मैं क्यों मानूं ,
जो कहते थे लोग सभी ,
सुख के सब साथी होते है ,
वही अक्सर  बाजार में खड़े ,
मेरे सुख के खरीददार होते है ,
मुझे कोई फर्क नहीं अँधेरे का ,
सपने तभी सुन्दर आते है ,
कोई ताज महल तामीर होता ,
जब आलोक से दूर जाते है ,
मेरे गरीबी के जलते दीपक ,
तुमको दीपावली ख़ुशी देंगे ,
मेरे फटे हाल कपडे के सपने ,
उचे लोग फैशन में लेंगे  ,
फिर छूट रही है ऊँगली ,
मुट्ठी में रेत की तरह आज ,
सिलवटें, मसले हुए फूल ,
ना जानेंगे  रात का राज  ,
अब अँधेरा तो बहुत है ,
रिश्तो के दायरों में लेकिन ,
पर एक रिश्ता फिर उभरा ,
मेरी बर्बादी से तेरा मुमकिन ...........
पता नहीं क्या लिखता रहा कभी समझ में आये तो मुझे समजाहिएगा जरूर क्योकि आज आदमी से ज्यादा बर्बादी का खेल कोई नहीं खेल रहा एक पागल कुत्ता भी नहीं एक जहरीला सांप भी नहीं .......

Thursday, August 28, 2014

समय में मैं

अब मैं पौधा ,
नहीं रहा हूँ ,
अब मुझे जब ,
जहा चाहे उठाना ,
बैठना आसान ,
नहीं रहा है ,
अब मैं दरख्त ,
बन गया हूँ ,
जो छाया दे ,
सकता है , ईंधन ,
भी दे सकता है ,
मुझ पर न जाने ,
कितने आशियाने ,
बन गए है ,
पर अब मैं हिल ,
नहीं सकता ,
मैं किसी से खुद ,
मिल नहीं सकता ,
ठंडी हवा देकर ,
सुकून दे सकता हूँ, ,
आपके लिए जल ,
भी सकता हूँ ,
सब कुछ अच्छा कर,
मैं कुल्हाड़ी से ,
कभी कभी आरे से ,
कट भी सकता हूँ ,
खुद को बर्बाद कर,
आपके घर की ,
चौखट बन सकता हूँ ,
कितना बेबस आलोक ,
दरख्त बन कर भी ,
लोग टहनी ले जाते ,
क्या मिला जी कर भी ..............
जीवन में समय की कीमत को समझिए क्योकि वही आपके जीवन में दोबारा नहीं आता है ...

Wednesday, August 27, 2014

लड़की का मन और तन है

बेमेल विवाह .........
अक्सर कोमल सी ,
लताये ही ,
उम्र दराज़ पेड़ों ,
से लिपट जाती है ,
न जाने क्यों उनमे ,
उचाई छूने की ,
ललक जग जाती है ,
पर उम्र की मार से ,
बूढ़ा पेड़ क्या गिरा ,
कोई नन्ही सी कोपल ,
नाजुक सी लता भी ,
 खाक में मिल जाती है ............,

बेमेल विवाह रोकिये .लड़की सिर्फ दूसरो के सुख के लिए अपने को महसूस करके के लिए भी पैदा हुई है

Tuesday, August 26, 2014

सिर्फ औरत हूँ मैं

औरत कैसी भी ........

मैं मानता हूँ ,
और जानता भी हूँ ,
कि सारी औरतें ,
एक जैसी नहीं होती ,
पर रेगिस्तान में ,
कैक्टस भी लोगो ,
के काम आते है ,
जब हम तिल तिल ,
करके मरते है ,
पानी की बून्द को ,
तरसते है तब ,
इन्ही को हम अपने ,
सबसे करीब पाते है ,
उन्ही कांटो में सरसता ,
और जिंदगी के लिए ,
पानी पाते है |
औरत कैसी भी हो पर उसका सार निर्माण ही है .............

Monday, August 25, 2014

आंसू

आंसू .........
आंसुओ को सिर्फ ,
दर्द हम कैसे कहे ,
कल तक जो अंदर रहे ,
वही आज दुनिया में बहे ,
सूखी सी जिंदगी से निकल ,
किसी सूखी जमी को ,
गीला कर गए ,
मन भारी भी होता रहा,
पर नमी पाकर ,
किसी में नयी कहानी ,
बसने  लगी आकर ,
कोपल फूटी ,
किसी को छाया मिली ,
किसी  बेज़ार जिंदगी में,
एक ठंडी हवा सी चली ,
दर्द का सबब ही नहीं ,
मेरे आंसू आलोक ,
इस पानी में भी जिंदगी ,
लेती है किसी को रोक .........
आंसू कही दर्द तो किसी के लिए सहानुभूति बन कर आते है और फिर शुरू होती जिंदगी की एक नयी कहानी


Sunday, August 24, 2014

मेरी चादर मैली है

जो मुझे मैला ,
करते रहे हर पल ,
वो भी जब डुबकी ,
लगाते है मुझमे ,
मैं उनके दामन,
को ही उजला बनाती हूँ ,
कीचड़ तो मेरी जिंदगी ,
का हिस्सा बन गया ,
उसी को लपेट सब ,
जिंदगी पाते है ,
कभी नदी में रहकर ,
कभी गर्भ में रहकर ,
पर अक्सर ही ,
हम कभी नदी तो ,
कभी औरत के पास ,
खुद के लिए आते है |..................
हम हमेशा सच को स्वीकारने से क्यों भागते है

Saturday, August 23, 2014

जीवन किसका

मेरा भी रोने को ,
मन करता है
मेरा भी सोने को ,
मन करता है ,
पर हर कंधे ,
गीले होते है ,
हर चादर मैले ,
ही होते है ,
मेरा भी जीने का ,
मन करता है ,
मेरा भी पीने को ,
मन करता है ,
पर जिन्दा लाशों ,
का काफिला मिलता है ,
पानी की जगह बस,
खून ही मिलता है |
मुझे क्यों अँधेरा ,
ही मिलता है ,
मुझमे  क्यों सपना ,
एक चलता है ,
क्यों नहीं कभी आलोक ,
आँगन में खिलता है ,
क्यों नही एक सच ,
सांसो को मिलता है ...............
जीवन में सभी के लिए एक जैसी स्थिति नही है , इस लिए जीवन को अपने तरह से जियो ( अखल भारतीय अधिकार संगठन )

Wednesday, July 30, 2014

खुद में ही मैं रहता हूँ

तन्हाई जब ,
दर्द से मिलती है ,
ये मत पूछो रात भर ,
क्या बात चलती है ,
दीवारों के पीछे कुछ ,
नंगे होते बेशर्म सच ,
साकी सी आँखे ,
बार बार मचलती है ,
शब्दों की खुद की ,
न सुनने की आदत ,
दिल की आवाज बस ,
हर रात ही सुनती है ,
तारों के साथ गुजरी ,
लम्हों में सांसो के बाद ,
सुबह की आहट आलोक ,
क्यों मुझको खलती है ,
अकेले में अकेले का ,
एहसास जब मिलता है ,
जिंदगी क्या बताऊँ ,
तू कैसे संग चलती है

Monday, July 28, 2014

जिंदगी को समझो

जब भी जिंदगी में ,
मौत को पाते है ,
आँखों से आंसू ,
बेपनाह निकल आते है ,
जिन्दा रहने की ,
कितनी तमन्ना थी ,
मौत आने से पहले ,
समझ कहा पाते है .................जब मौत आपको दर्द देती है तो फिर जिन्दा रहने पर भी क्यों आंसू बहते हो

Sunday, July 27, 2014

क्यों कहते हो मनुष्य खुद को

मौत मेरी हो रही है ,
रोये तुम जा रहे हो ,
दुनिया से जो जा रहा हूँ ,
पहुँचाने तुम आ रहे हो ,
दर्द की इन्तहा पा चुप ,
तुम बिलखते जा रहे हो ,
काश यही हमदर्दी दिखाते ,
तो हम दुनिया से क्यों जाते ,
जिन्दा के लिए वक्त नहीं ,
मरने पर कहा से पाते ,
सच किसे समझूँ आलोक ,
जब जिन्दा था या अब ,
मौत पर हुजूम साथ में है ,
पर अकेला जिन्दा था तब ...............
जानवरों की तरह जीने वालो से निवेदन है कि जब जिन्दा मनुष्य तुमसे सहायता की दरकार करें तो मौश्य की तरह व्यवहार कीजिये ना की जंगल के उन जानवरों के समूहों की तरह जो अपने साथी को शेर द्वारा मारे जाने को देखते रहते है और घास चरते रहते है .क्या कहने के लिए मनुष्य कहते है अपने को ..................क्षमा अगर किसी को बुरा लगे 

Thursday, July 17, 2014

चूहे और आदमी


चूहे की भूल ..........
ग़ुरबत में कोई मुरव्वत नहीं होती है  ,
रोटी की तलाश हर किसी को होती है ,
मैं भी एक रोटी तलाशता  हूँ हर दिन ,
बनाता भी दो अपने लिए  रोज रात ,
पर कमरे का चूहा पूछता है एक बात ,
क्या आज भी मेरा हिस्सा नहीं है ,
मैंने भी तो तुम पर भरोसा किया ,
रात दिन तुम्हारे  इर्द गिर्द जिया ,
कितना खाऊंगा एक टुकड़ा ही तो ,
उसके लिए भी तुमने मुझे जहर दिया ,
आदमी तुम कितने गरीब हो ,
रिश्तो के तो पूरे रकीब हो ,
जब मुझे एक टुकड़ा नहीं खिला सके ,
अपने कमरे में मुझे बसा ना सके ,
तो भला उन मानुस का क्या होगा ,
जो तेरी जिंदगी में यही  कही होगा ,
कितना हिसाब लगाते होगे रोटी का ,
जहर क्या मोल है उसकी भी रोटी का ,
मैं जानता नहीं गर्रीबी क्या होती है ,
चूहा हूँ बताओ आदमियत क्या होती है ..........
,


Wednesday, July 16, 2014

किसको कहते तुम इश्क़ है

विरह वेदना  का प्रलाप ,
आज मैं सुनकर आया हूँ ,
सर पटक पटक का रो रहा ,
मुट्ठी में राख ही पाया हूँ ,
भ्रम इश्क़ का क्यों उसे था ,
तन की चाहत जब रही उम्र भर ,
अश्को का सैलाब फिर क्यों है ,
जब जिया न उसको कभी जी भर .........
शुभ रात्रि
 ,

Tuesday, July 15, 2014

तुमने तो इतने पत्थर भी नही मारे

तुमने इतने पत्थर भी नहीं मारे ,
जितने जख्म हुए है मुझको ,
मेरे वजूद का लगता है कोई ,
और भी है आलोक कातिल ,
मैंने कोई नहीं की जद्दो जहद ,
जितना मैं हमेशा अकेला रहा ,
कौन साथ चल रहा है ,
उसकी आहट भी है बातिल ...शुभ रात्रि

Wednesday, June 18, 2014

जीवन किसके साथ

ना जाने लोग कैसे कैसे
भ्रम पाल लेते है ,
कुत्ते की जगह अक्सर ,
आदमी पाल लेते है ,
धोखे खाने के लिए ही ,
रिश्ते जिए जाते है ,
बंद घर में भी जब तब ,
साँप चले आते है,
न चाह कर भी  रोज ,
जानवर में हम जीते है ,
कुछ जीवन कुतर देते है ,
कुछ कीचड़ छोड़ जाते है ...................
कभी आप को सिर्फ निखालिस आदमी मिला जो गंगा सा निर्मल हो ..........या फिर जानवर

Thursday, June 12, 2014

तेरा फरेब

मैं जानता हूँ फितरत
क्या है मेरी खातिर ,
हम उम्र भर जिंदगी ,
के लिए वफ़ा करते है ,
और फिर मौत के लिए ,
मर लिया करते है ,
फिर तुम क्यों मारते हो ,
खंजर पीठ मेरे पीछे ,
 दिल में आकर रह लो ,
धड़कन के पीछे पीछे ,
तुम्हे एतबार नहीं है ,
खुद अपने पैतरे पर ,
हस कर जो मुझसे मिलते ,
राज करते दिल पर ,
मैं जानता था फितरत ,
तेरी लूटने की कबसे ,
ये जिंदगी भी रहती ,
ये लाश कहती है तुझसे .....................
धोखा मत दीजिये क्योकि जीवन अनमोल है किसी को मार कर आप सिर्फ अपने जानवर होने का सबूत देते है

आंसू को क्या मिला

जो आँखे बही ,
कुछ बाते कही ,
मौन के शब्द ,
है दिल स्तब्ध ,
नीरवता की लय ,
ये कैसी पराजय ,
मन है अशांत ,
जैसे गहरा प्रशांत
हिमालय से ऊचे ,
जमीन  के नीचे ,
तड़प है ये कैसी ,
अँधेरे के जैसी ,
समुद्र सिमट आया ,
पा आँख का साया ,
 थे बादल से  सपने ,
हुए ना आज अपने ,
बरसे तो खूब बरसे ,
सन्नाटो के डर से ,
क्यों अकेली आत्मा ,
पूछती परमात्मा ,
कसूर क्या है मेरा ,
चाहा सच का बसेरा ,
रावणो की लंका ,
क्यों न हो आशंका ,
तार तार है सीता ,
 है मन भी आज रीता ,
जब मिला न सहारा ,
तो सब कुछ था हारा,
ज्वार भाटा सा आया ,
जब आँखों का साथ पाया ,
सच निकल पड़ा बूंदबन कर ,
दुनिया के सामने तन कर ,
रोया जब झूठ ही पाया ,
आँखों के हिस्से क्या आया ,
खारा पानी , दर्द ,खुली पलके ,
क्या पाया जिंदगी यूँ जलके ................
जिंदगी में सब सच सामने आता है तो आंसू काफी काम आते है पर आंसू को खुद क्या मिलता है



 ,

Wednesday, June 11, 2014

जिंदगी और मौत

जिंदगी तलाश रहा हूँ ,
तेरे पास आ रहा हूँ ,
कितना सफर है लम्बा ,
न जान पा रहा हूँ ,
कभी धूप की है गर्मी ,
कभी धूप है सुहाती ,
कभी खुद में सिमट कर ,
कभी खुद से बिखर कर ,
बस दौड़ा जा रहा हूँ ,
कभी पास तू है लगती ,
कभी दूर तक न दिखती ,
हर रात रहती आशा ,
साँसों की बन परिभाषा ,
जब खुल कर गगन में ,
उड़ कर जा रहा हूँ ,
तू चील की नजरों से ,
मुझे खोजे जा रही है ,
ये मिलन अधूरा कैसा,
ये सफर कुछ है ऐसा ,
कितना तड़पी जिंदगी है ,
मौत ये कैसी बंदगी है ,
सब जीते आलोक में है ,
अब अँधेरे के लोक में है ,
अब घोसला है खाली,
ये दोनों का मिलन है ,
है जिंदगी एक धोखा ,
ये मौत का जतन है .............
जिंदगी किसी की नहीं पर हम उसे न जाने कितने जतन से जीते है अगर मौत का एहसास कर ले तो कोई क्यों लालच करें ................,
,

Tuesday, June 10, 2014

इनको मनुष्य कब समझोगे

कमरो में पैसो से ,
ठंढी हवा आज पैसे से ,
मिलती है ,
पर झोपडी में किलकारी ,
गर्म हवाओ में ,
झुलसती है ,
सुना तुमने भी है ,
पैसा बहुत कुछ है पर ,
सब कुछ नहीं
भूखे को रोटी मिलती ,
नंगो को कपडा ,
पर सांस तो नहीं ,
गर्मी में जी कर लोग
स्वर्ग नरक का अर्थ ,
जान रहे है ,
नंगे पैरो से सड़क पर ,
दौड़ते जीवन इसे ,
नसीब मान रहे है ,
अपनी सूखी, झूठी रोटी ,
देकर पुण्य का अर्थ ,
पा रहे है लोग  ,
पानी को तरसते ओठ ,
गरीबी और पानी का ,
क्या सिर्फ संजोग
मानिये न मानिये आलोक ,
हवा पानी रौशनी ,
पैसे के सब गुलाम है ,
भूख , प्यास , गर्मी से  ,
बिलबिलाते कीड़े से ,
आदमी गरीबी के नाम है ...........................सोचिये और अपने सुख से थोड़ा सुख उन्हें भी दीजिये जो आपकी ही तरह इस दुनिया में मनुष्य बन कर आये है और आप उनको ??????

Thursday, May 29, 2014

कितना समझते हो

मेरे कमरे में पड़ी ,
बेतरतीब तमाम चीज़ो से ,
मेरे जिंदगी की ,
कहानी समझना चाहते हो ,
क्या सन्नाटो में फैली ,
उन तस्वीरो को देखने भी ,
एक पल के  लिए ,
हकीकत में आते हो ,
दीवारों के अंदर भी ,
कितनी आसानी से साँसों को ,
अपनी सांसो के लिए ,
महसूस कर लेते हो ,
कभी उस मासूम को ,
अपनी तरह ही ,
आदम  मान लेने की जुगत ,
में भी दिखाई देते हो ,
कैसे पढ़ पाओगे कमरे में ,
मेरी जिंदगी की कहानी ,
बेतरतीब किया जिसने ,
उसका नाम भी ले पाते हो .................
कितना आसान है की हम कह दे हम से पूछो वो कैसी है पर कीटनाकठिन है कि हम मान पाये कि उसको इस हाल में पहुचने में हम कितना जिम्मेदार है , औरत को सही अर्थो में सामान समझ कर समझिए

क्या मैं भी मनुष्य !!

मेरे जिंदगी में आँधियाँ ,
तेरे जूनून से कुछ कही
कम नहीं ,
जी कर तो मरते है सभी ,
मर मर कर जीने का
दम तुममे नहीं ,
तुम्हे बोल कर जताने ,
बताने की आदत सी है ,
सभी को ,
पर मेरी ख़ामोशी चूड़ियों ,
पायल से सुनने की है ,
सभी को ,
रेत सी  जिंदगी में ,
पानी सा फैलने की तमन्ना ,
किनारे खड़े होकर भीगने ,
की आदत सभी को है ,
मत कहना औरत वरना ,
कई उँगलियाँ उठ जाएँगी ,
जिंदगी कह कर सांस लेने ,
आरजू सभी को  है .......आज एक लड़की ने समाज का जो चित्र अपने साथ हुई आप बीती के साथ सुनाई उन्ही को शब्दों से आपके सामने रख रहा हूँ ...आइये कुछ देर और सोचे ???????

Wednesday, May 28, 2014

मानो तो गंगा मानो

देखिये ये माँ नही ,
गंगा है ,
और सोचिये आदमी ,
कितना नंगा है ,
रोज तन मन को ,
गुमराह कराती ,
घुंघरुओं की आवाज ,
में समाती देश की ,
लज्जा की तरह ,
तुम क्यों आदमी पर ,
भरोसा कर आ गयी ,
इन फितरती लोगो ,
से देखो क्या पा गयी ,
कल तक तेरे आँचल,
से अमृत पीते थे ,
मरते दम तक तेरी ,
बून्द से जीते थे ,
पर आज तुम खुद ,
अपने में लाचार हो ,
फिर भी उसकी पहचान ,
और एक प्रचार हो ,
एक बार तू सोच जरा ,
कब तक यहा नारी ,
भावना में लुटती रहेगी,
कहलाएगी माँ गंगा ,
खुद जीने को तरसती रहेगी .........................हमें अपनी कथनी करनी में अंतर करना होगा तभी जीवन और नारी के हर स्वरुप को  पारदर्शी हम बना पाएंगे ............... ,

Tuesday, May 27, 2014

कुछ तो शर्म ???????/

हौसला नहीं मुझ में ये ,
हौसला पश्तो से पूछिये ,
जिन्होंने बनायीं डगर ,
उन्ही का रास्ता रोक लीजिये ,
द्रौपदी का चीर हरण कर ,
सत्ता को भोग लीजिये ,
जिन्होंने चुने रास्ते सच ,
उन्हें जंगल भेज दीजिये ,
कैसे कहेंगे चार चोर ,
चोरी ही किया  कीजिये ,
लूट कर हर लाज को ,
बस लाश दिया कीजिये ,
पीट कर हर शाम को ,
खामोश रात बस लीजिये ,
आलोक बेनकाब सरेआम ,
अँधेरे में शर्म तो कीजिये ,..............पता नहीं क्या कहने के लिए लिखता चला गया .......
,


Sunday, May 25, 2014

कड़वा सच

मेरा गुनाह सिर्फ इतना रहा ,
मैं हिमालय से निकल पड़ी ,
निर्मल , बेदाग जिंदगी लेकर ,
पर तुम्हे कहा पसंद ,
सच्चाई और अपने रास्ते.
लो अब तो खुश हो लो ,
मैं तुम जैसी हो गयी ,
मेरी पारदर्शी जिंदगी ,
अब तो मैली सी हो गयी ..................
अगर आप एक सच बन कर जिन चाहते है तो दुनिया के मैले लोग आपको अपने खातिर वैसा ही बना डालेंगे जैसे वो है और देखिये न पुरुष अपने लिए नारी को उसके स्तर से गिरता है और खुश होता है क्योकि अब उससे ज्यादा नारी मैली कहलाती है ...........

Saturday, May 24, 2014

नारी का सच

आज लोग क्यों मुझे
मुझे आवारा कह गए ,
जमीन के टुकड़े बस ,
बंजर से अब रह गए ,
न बो सका एक बीज ,
न की कोई ही तरतीब.
पसीने का एक कतरा,
भी नही बहाया मैंने ,
न तो मैं कभी थका,
और ना ही उतरी थकान ,
आलोक कैसे चुनता अँधेरा ,
कैसे होता सृजन महान ,
मुझे आवारा कह कर ,
क्यों बादल बना रहे हो ,
धरती की अस्मिता को ,
घाव सा हरा कर रहे हो,
कहते क्यों नहीं तुम्हे ,
अपने सुख की आदत है ,
तुम्हारी ख़ुशी के लिए ,
जमी की आज शहादत है ,
जी लेने दो हर टुकड़े को ,
वही सच्ची इबादत है ..............पता नहीं क्यों मानव ने संस्कृति बनाने के बाद एक अजीब सी फितरत पाल ली कि अगर लड़का लड़की साथ में है तो सिर्फ एक ही काम होगा या फिर लड़की का मतलब ही सिर्फ एक ही है अगर आप अकेले है तो आप से कोई जरूर पूछ लेगा क्या भाई ???????????कोई मिली नहीं क्या ? अगर किसी के साथ है तो और भाई आज कल तो आपके बड़े मजे है शायद इसी मानसिकता के लिए हमने संस्कृति बनाई ....सोचियेगा जरूर

Friday, May 23, 2014

नीर की पीर

आँखों के बादल से ,
निकल कुछ बून्द ,
दौड़ पड़ी कपोल ,
तन की धरती पर ,
किसी के मन में ,
हरियाली फैली तो ,
कोई दलदल में डूबा ,
अविरल धारा देख किसी ,
दिल का सब्र था उबा ,
खारा पानी आया कैसे ,
समुद्र कहाँ से टूटा,
नैनो की गहराई में ,
कौन रत्न है छूटा ,
छिपा बादलों में सूरज ,
आलोक नीर ने लूटा ,
....................जब भी दुनिया को पानी की जरूरत हुई है तो आलोक को बादलों में छिपाना पड़ा है या फिर धरती की अतल गहराई के अंधकार से उसे निकलना पड़ा है पर आज दुनिया अँधेरे में नही रहना चाहती इसी लिए उसके आँखों में पानी नहीं रह गया है जब भी कोई रॉय है तो आप मान लीजिये कि उसने मान लिया है कोई सच्चाई ( आलोक ) उसके भीतर छिपा है

Thursday, May 22, 2014

जिंदगी

ये धूप सी फैली जिंदगी ,
काश समेट लेता आँखों में ,
शायद अपनी बाँहों में ,
दुनिया को देखने की आरजू ,
हर आँखों में उम्र भर जैसे ,
क्या है इन सांसो की राहों में ,
सब ने एक टुकड़ा थाम लिया .
अपना समय काटने के लिए ,
मैं क्यों इतना बेचैन सा रहा ,
क्या यहाँ कुछ पाने के लिए,
निकल लो तुम भी कभी ,
मुझे एक दिन पागल कह कर
जिंदगी कही तुम उबी तो नहीं ,
मुझे ही आज मौत कह कर,
जिंदगी एक बार धूप सी आओ ,
मुझे नही सबको भिगो जाओ ,
आँखों के अँधेरे  में डूबे सपने ,
कभी तो आलोक में दिखाओ

..................जिंदगी को हर पल महसूस कीजिये क्योकि यही एक ऐसी धरोहर है जो आपके पास कब तक है आप बता नहीं सकते ये जिंदगी लक्ष्मी से भी ज्यादा चंचल है



Sunday, April 6, 2014

लड़की

लड़की ................

किलकारी न सुनी जिन्होंने ,
बजी ना द्वार शहनाई ,
एकाकी सा जीवन जीकर ,
दुर्गा महिषा सुर पायी ,
क्यों नहीं देवी से हट कर ,
सिर्फ औरत ही वो बन पायी ,
राग रागिनी अंक शायनी,
क्यों समय की हुई भरपाई .
एक चुटकी सिंदूर पाप का ,
आंसू दीवारो में भी पायी ,
लड़की को सुनकर खुश कौन ,
घर में बोझ की परछाई ,
आलोक नही उसके जीवन में ,
लड़की तू कैसी परिभाषा लायी

Tuesday, March 11, 2014

जिंदगी

जिंदगी .......
ये बात ही अजीब थी ,
कहते है वो करीब थी ,
चली गयी मैं आज भी ,
मुर्दे का वो नसीब  थी ,
चलती रही उम्र भर ,
पर हुई वो रकीब थी ,
जिंदगी चली ही गयी ,
मौत की ही वो हबीब थी ,
अँधेरे में रह कर ही वो  ,
आलोक से मिली थी ,
दुनिया कहते है किसे  ,
यही उसकी अदीब थी

Saturday, March 8, 2014

रोटी कि लालच और औरत का गौरव

डर गया चंद नौकरी से ,
मैं ही  वो आलोक हूँ ,
जानवरों के बीच बैठा ,
मैं खुद अभिशाप हूँ ,
विश्वास न हो तो पूछो ,
उन बेटी के दलालो से ,
जिनके घर बच रहे है ,
मालिको के हालो से ,
कहते झुक क्यों ना जाते ,
जीवन सुख से कट जायेगा ,
कैसे कहूं इन श्वानो से ,
मानव कौन कहने आएगा ,
कब तक बचाओगे रावण को ,
सीता का हक़ जमीन पायेगा ,
काट डालो उन हाथो को ,
जो लड़की पर उठ जायेगा ,
कभी खुद न देखना बेटी अपनी ,
उसका दिल सिहर जायेगा ,
आलोक तो जी गया अँधेरे में ,
पर तू मुट्ठी में क्या पायेगा  ,....................लड़की और औरत के साथ होने वाली हिंसा के बाद उनके शोषण से क्या मिल रहा है देश के सफेदपोशो को , जागो और खुद की बेटी को सामने रखकर शर्म करो अपने कृत्य पर , आज मन बहुत दुखी है काश ????????????????????


Friday, March 7, 2014

औऱत और महिला दिवस

मैं  जन्मा या अजन्मा ,
यह निर्णय तेरा होगा ,
औरत सोच के देख जरा ,
तुझमे साहस कितना होगा ,
हर कदम उम्र पुरषो के नीचे ,
तेरा क्षमा सहन कितना होगा ,
तुझ पर कह डाली पोथी सारी,
शून्य में फिर भी रहना होगा ,
कहती दुनिया कल दिन है तेरा .
फिर भी डर कर रहना होगा ,
आलोक ढूंढती आँखे अबभी है ,
अँधेरा खुद तुझे पीना होगा ,
माँ बहन शब्द दम तोड़ चुके ,
हव्वा आदम की होना होगा ,
भूल न जाना, है दर्द अंतहीन,
बेशर्मो संग ही रहना होगा ,
दुनिया में खुद आने के खातिर,
माँ माँ इनको ही कहना होगा ,
शत शत वंदन तेरे हर रूप को ,
ये प्रेम किसी से कहना होगा ..................
अजीब लगता है जब यह लाइन लिख रहा हूँ क्योकि औरत के लिए हमारी कथनी करनी अलग है और कल हर कोई छाती पीट पीट कर महिला दिवस पर पाने गले को बुलंद करेगा .....पर शत शत अभिनन्दन उस हर महिला को जो चुपचाप पुरुष को जैम से मृत्यु तक साथ देकर गुमनामी में मर जाती है .............





Tuesday, March 4, 2014

paisa hi sab kuchh hai

मैं पैसे के पीछे भाग रहा था ,
हर पल जैसे भाग रहा था ,
रात रात क्यों जाग रहा था ,
पैसा फिर भी भाग रहा था ,
वो पीछे पीछे कभी मैं आगे ,
कभी वो आगे हम अभागे ,
मैं दौड़ता रहा वो दौड़ाता रहा ,
न वो रुका न मैं ही रुका ,
पर अब न वो भाग रहा था ,
और ना ही अब जाग रहा था ,
बाल सफ़ेद थे , सफ़ेद था चेहरा ,
नहीं कही था जीवन का सेहरा ,
रंग बिरंगे कपडे सफ़ेद हो ,
थक गए थे कुछ लोग रो रो ,
अब पैसा खड़ा श्मशान में ,
मेरे जल जाने  की मांग में ,
क्यों कहते हो कुछ नहीं है ,
पैसे से ही सब जीते शान में ,
क्या मिल जायेगा आलोक ,
अँधेरे के सिवा सब है दाम में ....................

delf finance teacher ko samarpit

देश भर में स्ववित्तपोषित शिक्षको को समर्पित जो सरकार  द्वारा शोषण का शिकार है ................
वो नोंच लेते है कफ़न मेरा ,
अपने बच्चो को पहनाने को ,
खाली थाली हमको मिलती ,
रोटी उनको मिलती खाने को ,
बूंद बूंद कर हम संजोते ,
वो रोज ही जाते मैखाने को ,
कल गरीब था आज भी है ,
शिक्षक तार तार जी जाने को ,
फैलेगा क्या आलोक कभी ,
या अँधेरा ही है आने को .................

Monday, February 17, 2014

ye hai desh ka sach .vote do khud ko maro mt

हम लोग ज्यादातर यह कहने में नहीं चूकते कि आपको लोगो कि पहचान है फिर आप गरीब होकर भी , अपनी जरुरतो में मन मार कर जी लेने वाले आप क्यों ऐसे लोगो को चुनते है जिनके पास इतना है कि एक कस्बे के सरे लोगो को सालो खाना खिलाया जा सकता है | अपने घर में तो आप कहने से नहीं चूकते ही उड़ो मत मालूम है बहुत पैसा कमा लिया हा पर उन नेताओ से कब पूछेंगे कि इतना पैसा कहा से ला रहे हो हम दो जून की रोटी कूदो में तलाशते है और तुम माल पुआ सड़क पर फेक देते हो !!! तुम्हारे दिल में क्यों नहीं हमारे लिए दर्द है ??और अगर आपको ये सब समझ में आ रहा हो तो इस बार देश को अपने तरह का नेता दीजिये जिसे अभावो का दर्द हो .क्या इस बार आप बुद्धि की परीक्षा देंगे ना .................

Friday, February 14, 2014

यह फ़ोटो  मैंने अहमदनगर महाराष्ट्र में खिची थी .जरा सोचिये क्या पथरीली सड़को पर सो रहा यह व्यक्ति भारतीय अन्हि और अगर इसे जानवरो की तरह सड़क पर ही सोना है तो हम नेता चुन कर किस लिए संसद में भेजते है ?????? क्या आपको अपने मत में खोट नहीं दिखायी देता ??? क्या ऐसे ही सड़को पर जीने की आरजू रख कर हम देश के नेता को ५ साल के लिए संसद में भेजते है ??? अगर नहीं तो चुनिए अपने मतो से एक बेहतर नेता जिसको पथरीली सड़को पर सोने का दर्द हो , क्या आप इस बार अपना विवेक और राष्ट्र को सामने रख कर मत दान करेंगे >>>>>>>>>>>>>

Thursday, February 13, 2014

आप और ये देश

अकसर आप इस बात पर सीना ठोकते है कि ये देश आपका है और बहार से आये लोगो ने इस पर राज किया पर क्या आप खुद इस देश में किरायेदार बन कर नही रह रहे है ??? मत ऐसे देते है जैसे घर के बहार खड़े भिखारी को जल्दी से निकल कर एक रुपये पर धीरे धीरे वो भिखारी भी अमीर हो जाता है और देश की बागडोर भी उन लोगो के हाथ में चली जाती है जिनको सिर्फ इस लिए नेता बना देते है क्योकि उन्होंने वर्षो से एक पार्टी ज्वाइन करके आपके आगे हाथ जोड़े है | क्या मिला आपको पढ़ कर जब आप पढ़ कर खुद को नीचा करने में लगे रहते है और अपनी म्हणत से कम म्हणत करने वाले को यह देश दे देते है | अपने मत का स्वयं इतना अपमान ना करिये और बनाइये देश उनके साथ जो आपको इस देश में महसूस करते हो .धर्म जाती पार्टी नहीं एक समर्पित भारतीय को चुनिए ......अखिल भारतीय अधिकार संगठन

Wednesday, February 12, 2014

यह फ़ोटो मैंने नासिक में खिची है और जरा इस बच्चे के कंधे पर घर के उस भर को महसूस कीजिये और चीखते हुए उन नेताओ की आवाज को सुनिये जो बताते हुए अघा नहीं रहे है की उन्होंने आपको पांच साल में दिया क्या है अगर आपका बच्चा सड़क पर नहीं है तो यह आपका अपना प्रयास है वर्ण नेता के क्या किया है उसे इस बच्चे से महसूस किया जा सकता है ....जागिये और बनाइये एक बेहतर और सबके लिए सम्मान से जीने वाला भारत पर इसके लिए जरुरी है कि आप अपने मतो का प्रयोग करे और मत उसको दे जो राष्ट्र को महसूस कर रहा हो केवल यह कहकर मत न दे कि मैं फलां पार्टी का हूँ और अगर ऐसा कर रहे है तो आप भी भाई भतीजा वाद में उलझे है , सिर्फ देश देखिये और उसकी अस्मिता जो आपके मत से सुरक्षित है ................आइये एक समर्थ देश बनाये 

Monday, February 10, 2014

ये फ़ोटो मैंने लखनऊ से बहराइच जाते हुए झुकिया क्रासिंग के पास के गाओं में एक छोटी सी लड़की को काम करते देख खिची थी .....बस आप सोच कर देखिये कि क्या ये बच्ची इस लिए इस देश में पैदा हुई कि पहली सांस से अंतिम सांस तक काम में झूझती रहे .....क्या आपको अपनी बेटी का ऐसा कष्ट अच्छा लगेगा ??????? तो इस देश को माँ कह कर क्यों उसे ५ साल ऐसे लोगो के हाथ दे देते है जो सिर्फ इसको नोचते है ....इस बार नहीं एक मजबूत राष्ट्र आपके सही मतदान से हो सकता है अपने अधिकार को पहिचाहिए और बनाईये अपनी माँ को अबला से सबला देश की देवी ............
ये देश आपका है  पर आप खुद इस देश में ऐसे रहते है जैसे कोई अप पर दया कर रहा हो टमाटर भी देख कर खरीदने वाले भारतीये एक पल भी यह नही सोचते कि वो किसको यह देश ५ साल के लिए देने जा रहे है आप का अपना खून भी अगर अपराध करने लगता है तो आप उसे घर से निकाल देते है तो जो कोई अपने को पार्टी , धर्म में बांध कर देख रहे है आप देश को ध्यान में रख कर एक अच्छा नेता दीजिये ....मैं भी एक भारतीय हूँ जो आप से बात करना चाहता हूँ क्योकि कहते है कई पर चुप रह जाने से भी सर्वनाश हो जाता है ................अखिल भारतीय अधिकार संगठन जनहित में आपके साथ राष्ट्र निर्माण की मुहीम में .................

Saturday, February 8, 2014

अखिल  भारतीय अधिकार संगठन  आपको जागरूक करने के लिए समर्पित
ये फ़ोटो मैंने पॉलिटेकनिक चौराहे पर खिची जरा सोचिये कि क्या ये माँ भी अपने भीख मांगते बच्चो  के साथ कब मेरी तरह जी पायेगी ...............क्या इसी के लिए हम चुनते है ५ साल के लिए सरकार ??????????????????????????????