Saturday, November 15, 2014

मेरा मन कही लगता नहीं

मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं ,
चुप चाप सब हैं जी रहे ,
सच का बाजार चलता नहीं ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं .......1
मैं चाह कर भी हार हूँ ,
जीवन नहीं करार हूँ ,
आलोक मार्ग दर्शक नहीं ,
अंधेरों का मैं प्यार हूँ ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं ..........२
रोटी पाने की बस होड़ हैं ,
भ्रष्टाचार क्यों बेजोड़ हैं ,
ये भाई बहनों के देश में ,
सहमा क्यों हर मोड़ हैं ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं .........३
घर ही नहीं देश टूट रहा है ,
विश्वास,भी अब छूट रहा है,
मारना है जब सच जानते हो ,
मन फिर क्यों घुट रहा हैं ,
मेरा मन कही लगता नहीं ,
ये वतन क्यों जगता नहीं ............४
जीवन में जब हम सिर्फ रोटी तक रह जाते है तो देश , समाज, और घर सब टूट जाते है ......अखिल भारतीय अधिकार संगठन 

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