Monday, November 18, 2024

जिधर मैं जा रहा हूं,- अखिल भारतीय अधिकार संगठन


 जिधर मैं जा रहा हूं,

 उधर आप भी जा रहे हैं,

 जहां मैं खड़ा हूं,

 वहां आप भी खड़े हैं ,

एक दिन में जिस जगह पर ,

पहुंच जाऊंगा वहां एक दिन ,

आप भी पहुंच जाएंगे ,

बस फर्क इतना है ,

ना आप कह पा रहे हैं ,

ना मैं कह पा रहा हूं ,

आपको भी छलावा पसंद है,

 मुझको भी छलावा पसंद है,

 सच को जीने का हुनर ,

ना आपको आता है ,

ना मुझे आलोक आता है ,

इसीलिए एक दिन जब,

 वह क्षण हमारे जीवन में आता है  ,

आपके भी जीवन में आता है,

 तो हमारी मुट्ठी में सिर्फ अंधेरा ,

खालीपन और रेत का कुछ,

 एहसास रह जाता है 

 ना आप उसे मौत कह पाते हैं ,

ना मैं उसे मौत कह पाता हूं ,

क्योंकि मां के पेट से सिर्फ,

 मैं भी जीवन जीने आता हूं ,

आप भी जीवन जीने आते हैं,

 भला हम सब कब कहां ,

पूरा सच जी पाते हैं ,

मौत को जी पाते हैंl

आलोक चांटिया

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