जिधर मैं जा रहा हूं,
उधर आप भी जा रहे हैं,
जहां मैं खड़ा हूं,
वहां आप भी खड़े हैं ,
एक दिन में जिस जगह पर ,
पहुंच जाऊंगा वहां एक दिन ,
आप भी पहुंच जाएंगे ,
बस फर्क इतना है ,
ना आप कह पा रहे हैं ,
ना मैं कह पा रहा हूं ,
आपको भी छलावा पसंद है,
मुझको भी छलावा पसंद है,
सच को जीने का हुनर ,
ना आपको आता है ,
ना मुझे आलोक आता है ,
इसीलिए एक दिन जब,
वह क्षण हमारे जीवन में आता है ,
आपके भी जीवन में आता है,
तो हमारी मुट्ठी में सिर्फ अंधेरा ,
खालीपन और रेत का कुछ,
एहसास रह जाता है
ना आप उसे मौत कह पाते हैं ,
ना मैं उसे मौत कह पाता हूं ,
क्योंकि मां के पेट से सिर्फ,
मैं भी जीवन जीने आता हूं ,
आप भी जीवन जीने आते हैं,
भला हम सब कब कहां ,
पूरा सच जी पाते हैं ,
मौत को जी पाते हैंl
आलोक चांटिया
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