सुना आज मैंने है कि,
कुछ बच्चे मर गए हैं ,
अपनी मौत नहीं मरे ,
जिंदा जल गए हैं ,
दौड़ती भागती जिंदगी में,
एक रोटी की तलाश में ,
हम कब अपने पैरों में थम गए हैं,
सुना आज मैंने भी है ,
कुछ बच्चे मर गए हैं ,
मान लिया मरना जीना तो,
ऊपर वाले के हाथ में है,
हम कर भी क्या सकते हैं,
उन्हें जिला तो नहीं देंगे ,
हम कुछ ऐसे ही मोटी ,
चमड़ी के यहां हो गए हैं,
सुना आज मैंने है ,
कुछ बच्चे मर गए हैं ,
कहते तो सभी हैं हम ,
जानवरों से काफी ऊपर उठ गए हैं,
सड़क पर मरे कुत्ते को,
दूसरा कुत्ता सूंघ कर देखता है,
कौवा कांव-कांव करके चिल्लाता है,
पर हम अपनी रफ्तार में,
फिर से निकल गए हैं,
सुना आज मैंने भी है ,
कुछ बच्चे मर गए हैं,
रोज काट काट कर ,
जानवरों को खाने के हम ,
इतने आदी हो गए हैं ,
कि महसूस ही नहीं होता कुछ,
अपने इस दुनिया में खो गए हैं ,
सुना आज मैंने भी है ,
कुछ बच्चे मर गए हैं,
मेरे बच्चे घर में सुरक्षित हैं,
दुनिया जाए भाड़ में ,
हमें क्या पड़ी है ,
क्या सारा ठेका हम ही ने ले रखा है,
इस दर्शन में जी गए हैं,
सुना आज मैंने भी है ,
कुछ बच्चे मर गए हैं ,
सभी के घर में ठहाका लगा ,
खाना बना उत्सव मनाया गया,
शहनाई बजी साहित्य के,
कार्यक्रम लिट़्फेस्ट हो गए हैं,
सुना आज मैंने है ,
कुछ बच्चे मर गए ,
धरती से पानी सूख गया है,
आंखों में आंसू तरस गया है,
हम सन्नाटे आंखों से सब कुछ,
देखने अभ्यस्त हो गए है ,
सुना आज मैंने है ,
कुछ बच्चे मर गए हैंl
आलोक चांटिया
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