Saturday, November 16, 2024

सुना आज मैंने भी है कुछ बच्चे मर गए हैं- अखिल भारतीय अधिकार संगठन


 सुना आज मैंने है कि,

कुछ बच्चे मर गए हैं ,

अपनी मौत नहीं मरे ,

जिंदा जल गए हैं ,

दौड़ती भागती जिंदगी में,

 एक रोटी की तलाश में ,

हम कब अपने पैरों में थम गए हैं,

सुना आज मैंने भी है ,

कुछ बच्चे मर गए हैं ,

मान लिया मरना जीना तो,

ऊपर वाले के हाथ में है,

हम कर भी क्या सकते हैं,

उन्हें जिला तो नहीं देंगे ,

हम कुछ ऐसे ही मोटी ,

चमड़ी के यहां हो गए हैं,

सुना आज मैंने है ,

कुछ बच्चे मर गए हैं ,

कहते तो सभी हैं हम ,

जानवरों से काफी ऊपर उठ गए हैं, 

सड़क पर मरे कुत्ते को,

 दूसरा कुत्ता सूंघ कर देखता है,

 कौवा कांव-कांव करके चिल्लाता है, 

पर हम अपनी रफ्तार में,

फिर से निकल गए हैं,

 सुना आज मैंने भी है ,

कुछ बच्चे मर गए हैं,

 रोज काट काट कर ,

जानवरों को खाने के हम ,

इतने आदी हो गए हैं ,

कि महसूस ही नहीं होता कुछ,

 अपने इस दुनिया में खो गए हैं ,

सुना आज मैंने भी है ,

 कुछ बच्चे मर गए हैं,

 मेरे बच्चे घर में सुरक्षित हैं, 

दुनिया जाए भाड़ में ,

हमें क्या पड़ी है ,

क्या सारा ठेका हम ही ने ले रखा है,

 इस दर्शन में जी गए हैं,

 सुना आज मैंने भी है ,

कुछ बच्चे मर गए हैं ,

 सभी के घर में ठहाका लगा ,

खाना बना उत्सव मनाया गया,

 शहनाई बजी साहित्य के,

 कार्यक्रम लिट़्फेस्ट हो गए हैं,

 सुना आज मैंने है ,

कुछ बच्चे मर गए ,

धरती से पानी सूख गया है,

 आंखों में आंसू तरस गया है,

 हम सन्नाटे आंखों से सब कुछ,

 देखने अभ्यस्त हो गए है ,

सुना आज मैंने है ,

कुछ बच्चे मर गए हैंl

आलोक चांटिया

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