हर दिन मैं सुबह से ही,
सूरज के निकलने का,
इंतजार करता हूं,
उठता हूं बनता हूं,
संवरता हूं बार-बार हर बार ,
पूर्व की तरफ देखता भी हूं,
और एक विश्वास करता हूं,
सूरज आज सिर्फ मेरे लिए निकलेगा,
यही बस एक इंतजार करता हूं,
लोग कहते हैं सूरज निकल आया है,
सूरज चढ़ गया है ,
सूरज डूबने वाला है,
पर मुझे कहीं भी,
सूरज दिखाई नहीं देता ,
मैं तो हर रास्ते पर,
रोशनी का इंतजार करता हूं ,
मैं हरसुबह सूरज का इंतजार करता हूं ,
चाहता हूं अंधेरा मिट जाये,
हर तरफ से पर अंधेरा भी,
कहां समझ पाता है ,
वह तो सूरज से लड़ने चला आता है,
मजबूर कर देता है सूरज को भी,
डूबने के लिए पश्चिम में,
और वह एक दो बार नहीं,
हर बार करता है,
सूरज को छुपाने का प्रयास करता है,
पर पता नहीं क्यों मुझे,
सदैव पूर्व से आशा रहती है,
और अपने सूरज का इंतजार रहता है,
जो कभी नहीं डूबेगा ,
मेरे लिए हर तरफ बस,
अंतस की रोशनी का सूरज,
बाहर के सूरज से लड़ जाएगा,
और एक दिन मेरा अंदर बाहर,
सब यह समझ जाएगा,
मैं समझ जाऊंगा अंधेरा ,
बाहर नहीं मेरे अंदर रहता है,
यह बकवास है कि हर कोई,
पूरब की सूरज को ही सच कहता है,
इसीलिए मैं हर दिन पूर्व की तरफ,
देख कर इंतजार करता हूं,
अपने सूरज के आने का इंतजार करता हूं ,
अपने सूरज के पाने का इंतजार करता हूं l
आलोक चांटिया
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