Monday, January 8, 2024

लड़की होने का एहसास

 पेट में लात ,

खा कर मैंने ,

माँ होने का ,

एहसास पाया है ,

बचपन की गलियां ,

छोड़ कर मेरा ,

पत्नी नाम आया है,

कलाई में राखी ,

पर राख हुई फिर भी ,

मेरी ही काया है ,

कैसे मैं समझू ,

लड़की को दुर्गा ,

लक्ष्मी , सरस्वती ,

या फिर काली ,

लूटते हो लज्जा ,

करते हो व्यभिचार

उत्पीड़न और प्रहार

कहकर उसकी लाली ,

बचपन से कोमल ,

कहकर मुझ मानव को ,

बना कर भला क्या पाए ,

कही हत्या , कही 

बलात्कार कहीं एसिड 

सिर्फ क्यों

मेरे हिस्से लाये ,

सच बताओ और 

सोच कर देखो क्या ,

एक लड़की गर्भ  से ,

कभी बाहर आये ...


लड़की को आज के दौर में किस लिए पैदा होना चाहिए और हम उसके लिए दिल से क्या करना चाहते है , ......मुझे नहीं अपने साथ जुडी किसी भी लड़की के लिए बस सोच भर लीजिये मेरा शब्द सार्थक हो जायेगा ....


आलोक चांटिया

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