Tuesday, September 5, 2023

माना की आज मन हताश है , poem by Alok chantia

 माना की आज मन हताश है ,

पर बंजर में भी एक आस है l

चला कर तो एक बार देख लो ,

अपाहिज में चलने की प्यास है l

कह कर मुझे मरा क्यों हँसते,

यह भी लीला उसकी रास है l

लौट कर आऊंगा या नही मैं ,

क्या पता किसको एहसास है l

लेकिन ये सच कैसे झूठ कहूँ ,

मौत के पार भी कोई प्रकाश है l

आओ बढ़ कर उंगली थाम लो ,

हार कर भी मुझमे उजास हैl

पागल मुझको कहकर खुद ही ,

देखो आज वो किसकी लाश है l

आज कर लो जो मन में है कही ,

जाते हुए न कहना मन निराश है l

सभी को नही मिलता आदमी यहां,

आज जानवरों का यही परिहास है l आलोक चांटिया

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