Monday, September 11, 2023

समय एक सा नहीं by Alok chantia

 सोचता हूँ कितना समय ,

कब कहां और क्यों खो गया ?

देखता हूँ अब समुंदर ,

कुछ और ज्यादा उठ गया !

कुछ और खारा हो गया ,

 जिंदगी से दूर हो गयाl

सोचता हूँ समय को ,

लेकर मैं क्यों न चल सका ?

देखता हूँ बाल सारे ,

काले मैं न रख सका l

बिना छड़ी  ना चल सका, 

समय मेरे लिए नहीं रुकाl

सोचता हूँ और कितना, 

समय अब मुट्ठी  में है ?

देखता हूँ जो कल हसे थे , 

दिलों में मेरे बसे थे l

सपने लिए थे वो ,

आज चिताओं पर सोए हैं ,

या मिटटी में खोए हैं l

पूछता हूँ खुद से यही ,

क्यों नहीं समझा समय ?

जानते थे जब सभी ,

एक सा रहता नहीं समय l

 डॉआलोक चांटिया

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