है दूर बहुत दूर,
सूरज फिर भी,
कोशिश तो करता है l
घर आंगन चौबारे को,
अपनी रोशनी से ,
तो भरता है l
ऐसा नहीं कि पीछे है ,
चांद भी रात की कालिमा को ,
वह अपनी चांदनी से हरता है l
तारे भी टिम टिमा कर ,
एहसास करा जाते हैं l
सुंदरता किसको कहते हैं ,
यह तक बता जाते हैं l
फिर क्यों तुम ,
हारे जा रहे हो ?
अपने अंदर हताशा और,
कमी को पा रहे हो !
सोचो कुछ ना कुछ तो ,
तारे सूरज चांद सा ,
तुम्हें भी होगा जो इस ,
संसार में ,
किसी के काम का तो होगा l
कोशिश तो कर ही डालो ,
यह जानने के लिएl
जीवन कर्म का नाम है ,
यह मानने के लिए l
आलोक चांटिया
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