Friday, September 15, 2023

मिट्टी से जुड़ना सीखो poem by Alok chantia

 अपनी सारी कठोरता ,

अकड़ नीरसता सूखेपन को,

 एक बीज तब समझ पाया,

 जब वह मिट्टी की अतल,

 गहराइयों का स्पर्श और ,

नमी को अपने अंदर समाता पायाl

 मिट्टी ने उसको उसका ,

असली चेहरा दिखाया था,

 कितने सुंदर सुंदर रंग के फूल ,

उसमे छिपे हैं उसको अंकुरण के लिए,

 उत्साहित करके बताया था l

छोटी-छोटी कोमल पत्तियों और,

 फल के साथ दुनिया में,

 वह कितना सम्मान पा सकता है,

 लोगों के कितने करीब आ सकता है?

 बीज को मिट्टी ने अपने ,

संपर्क से यही समझाया था l

ना जाने क्यों मानव ,

इस दर्शन से कोसों दूर जा चुका है l

मिट्टी का शरीर उसका भी है,

 अपने अंदर के बीज को,

 वह न जाने कहां मार चुका है l

मिट्टी चाहती है आज भी,

 अपने शरीर के अंदर उन सारे,

 तत्वों को चुन चुन कर,

 इस दुनिया में निकालना l

जिसके अंदर जियो और,

 जीने दो का सुंदर सार है ,

जानवरों से आदमी को,

 थोड़ा और ऊंचा उठाना l

क्या मानव आज भी अपने ,

शरीर को जानता है ?

मिट्टी का ही है वह भी,

 क्या आलोक यह मानता है !

 आलोक चांटिया

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