Wednesday, September 6, 2023

अंधेरे को अपना ही समझो। poem by Alok chantia

 आज का दिन अंधेरे के, 

साथ पूरा हो रहा है ,

अंधेरे से गुजर कर ही ,

दूसरे दिन का सवेरा हो रहा है,

 इतना अजीब है जीवन का ,

यह खेल आलोक ,

कितनी भी कोशिश कर लो,

अंधेरा जीवन का हिस्सा हो रहा है,

 न जाने फिर क्यों ,

घबरा जाते हैं लोग अंधेरों से,

 जब अंधेरे के पार ही ,

सूरज पूरब का हो रहा है ,

घबराकर आंख बंद मत करो,

अंधेरे में आसमान रंगीन हो रहा है,

 तारे भी नाच उठे हैं अनवरत,

अंधेरे को देख देखकर,

 सवेरे ने जो छीना था टिमटिमाना,

 अब उनका हो रहा है ,

मान भी लो अंधेरों में ,

तुम्हारी सांसे पूरी हुई है ,

गर्भ के उस पार देखो ,

किलकारी का बसेरा हो रहा है, 

 सुंदर सपने भी आंखों के,

 बंद होने पर आते हैं ,

नींद मत समझो इन्हें सुंदर रास्तों पर, 

 ये तो कल का सवेरा हो रहा है।

 आलोक चांटिया



जिस दिन हम अंधेरे के दर्शन को समझ जाएंगे हमारे बहुत से संकट दर्द अवसाद वैसे ही समाप्त हो जाएंगे

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