Sunday, August 27, 2023

क्या जीवन नाटक है

 अब मैं पौधा ,

नहीं रहा हूँ , 

अब मुझे जब ,

जहा चाहे उठाना ,

बैठना आसान ,

नहीं रहा है ,

अब मैं दरख्त ,

बन गया हूँ ,

जो छाया दे ,

सकता है , ईंधन ,

भी दे सकता है ,

मुझ पर न जाने ,

कितने आशियाने ,

बन गए है ,

पर अब मैं हिल ,

नहीं सकता ,

मैं किसी से खुद ,

मिल नहीं सकता ,

ठंडी हवा देकर ,

सुकून दे सकता हूँ, ,

आपके लिए जल ,

भी सकता हूँ , 

सब कुछ अच्छा कर,

मैं कुल्हाड़ी से ,

कभी कभी आरे से ,

कट भी सकता हूँ ,

खुद को बर्बाद कर, 

आपके घर की ,

चौखट बन सकता हूँ ,

कितना बेबस आलोक ,

दरख्त बन कर भी ,

लोग टहनी तक ले जाते ,

ऐसे जी कर भी  ..............

जीवन में समय की कीमत को समझिए क्योकि वही आपके जीवन में दोबारा नहीं आता है ...

आलोक चांटिया

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