Wednesday, August 23, 2023

औरत और नदी

 जो मुझे मैला ,

करते रहे हर पल ,

वो भी जब डुबकी ,

लगाते है मुझमे ,

मैं उनके दामन,

को ही उजला बनाती हूँ ,

कीचड़ तो मेरी जिंदगी ,

का हिस्सा बन गया ,

उसी को लपेट सब , 

जिंदगी पाते है ,

कभी नदी में रहकर ,

कभी गर्भ में रहकर ,

पर अक्सर ही ,

हम कभी नदी तो ,

कभी औरत के पास ,

खुद के लिए आते है |..................

डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

हम हमेशा सच को स्वीकारने से क्यों भागते है

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