आंसू .........
आंसुओ को सिर्फ ,
दर्द हम कैसे कहे ?
कल तक जो अंदर रहे ,
वही आज दुनिया में बहे l
सूखी सी जिंदगी से निकल ,
बिल्कुल ना थे विकलl
किसी सूखी जमी को ,
सपने दिखाए कैसा था कल l
मन भारी भी होता रहा,
ऐसी नमी पाकर l
किसी में नयी कहानी ,
बसने लगी आकर l
कोपल फूटी ,
किसी को छाया मिली l
किसी बेज़ार जिंदगी में,
एक ठंडी हवा सी चली l
दर्द का सबब ही नहीं ,
मेरे आंसू आलोक l
इस पानी में भी जिंदगी ,
लेती है किसी को रोक .........
आंसू कही दर्द तो किसी के लिए सहानुभूति बन कर आते है और फिर शुरू होती जिंदगी की एक नयी कहानी आलोक चांटिया
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