Monday, August 28, 2023

दर्द

 दर्द

आज फिर क्यों आँखे नम है ,

भीड़ में कोई चेहरा कम है ,

कितना भीगा आलोक से जीवन ,

फिर भी अंतस में क्यों तम है ,

रोज नींद कहकर क्यों सुलाती ,

मौत बता तुझको क्या गम है ,

कल तक दो जीवन जो साथ रहे ,

ठहाको में उनके भी सम है ,

कहा छीन कर ले गई आज तू ,

जब दो शरीर में एक ही हम है ,

इतना सन्नाटा उसको क्यों पाकर ,

लाश को पा मौत अब गई थम हैl आलोक चांटिया

Sunday, August 27, 2023

क्या जीवन नाटक है

 अब मैं पौधा ,

नहीं रहा हूँ , 

अब मुझे जब ,

जहा चाहे उठाना ,

बैठना आसान ,

नहीं रहा है ,

अब मैं दरख्त ,

बन गया हूँ ,

जो छाया दे ,

सकता है , ईंधन ,

भी दे सकता है ,

मुझ पर न जाने ,

कितने आशियाने ,

बन गए है ,

पर अब मैं हिल ,

नहीं सकता ,

मैं किसी से खुद ,

मिल नहीं सकता ,

ठंडी हवा देकर ,

सुकून दे सकता हूँ, ,

आपके लिए जल ,

भी सकता हूँ , 

सब कुछ अच्छा कर,

मैं कुल्हाड़ी से ,

कभी कभी आरे से ,

कट भी सकता हूँ ,

खुद को बर्बाद कर, 

आपके घर की ,

चौखट बन सकता हूँ ,

कितना बेबस आलोक ,

दरख्त बन कर भी ,

लोग टहनी तक ले जाते ,

ऐसे जी कर भी  ..............

जीवन में समय की कीमत को समझिए क्योकि वही आपके जीवन में दोबारा नहीं आता है ...

आलोक चांटिया

Saturday, August 26, 2023

बेमेल विवाह

 बेमेल विवाह .........

अक्सर कोमल सी ,

लताये ही ,

उम्र दराज़ पेड़ों ,

से लिपट जाती है ,

न जाने क्यों उनमे ,

उचाई छूने की ,

ललक जग जाती है ,

पर उम्र की मार से ,

बूढ़ा पेड़ क्या गिरा ,

कोई नन्ही सी कोपल ,

नाजुक सी लता भी ,

 खाक में मिल जाती है ............, आलोक चांटिया

बेमेल विवाह रोकिये .लड़की सिर्फ दूसरो के सुख के लिए अपने को महसूस करके के लिए भी पैदा हुई है

Friday, August 25, 2023

विश्व महिला समानता दिवस

 औरत कैसी भी ........




मैं मानता हूँ ,

और जानता भी हूँ ,

कि सारी औरतें ,

एक जैसी नहीं होती ,

पर रेगिस्तान में ,

कैक्टस भी लोगो ,

के काम आते है ,

जब हम तिल तिल ,

करके मरते है ,

पानी की बून्द को ,

तरसते है तब ,

इन्ही को हम अपने ,

सबसे करीब पाते है ,

उन्ही कांटो में सरसता ,

और जिंदगी के लिए ,

पानी पाते है |

औरत ने ही सब कुछ दिया

भला कहां कह पाते हैं?


औरत कैसी भी हो पर उसका सार निर्माण ही है ............. आलोक चांटिया

Thursday, August 24, 2023

आंसुओं का दर्द

 आंसू .........

आंसुओ को सिर्फ ,

दर्द हम कैसे कहे ?

कल तक जो अंदर रहे ,

वही आज दुनिया में बहे l

सूखी सी जिंदगी से निकल , 

बिल्कुल ना थे  विकलl

किसी सूखी जमी को ,

सपने दिखाए कैसा था कल l

मन भारी भी होता रहा, 

ऐसी नमी पाकर l

किसी में नयी कहानी ,

बसने  लगी आकर l

कोपल फूटी , 

किसी को छाया मिली l

किसी  बेज़ार जिंदगी में,

एक ठंडी हवा सी चली l

दर्द का सबब ही नहीं ,

मेरे आंसू आलोक l

इस पानी में भी जिंदगी ,

लेती है किसी को रोक .........

आंसू कही दर्द तो किसी के लिए सहानुभूति बन कर आते है और फिर शुरू होती जिंदगी की एक नयी कहानी आलोक चांटिया

Wednesday, August 23, 2023

औरत और नदी

 जो मुझे मैला ,

करते रहे हर पल ,

वो भी जब डुबकी ,

लगाते है मुझमे ,

मैं उनके दामन,

को ही उजला बनाती हूँ ,

कीचड़ तो मेरी जिंदगी ,

का हिस्सा बन गया ,

उसी को लपेट सब , 

जिंदगी पाते है ,

कभी नदी में रहकर ,

कभी गर्भ में रहकर ,

पर अक्सर ही ,

हम कभी नदी तो ,

कभी औरत के पास ,

खुद के लिए आते है |..................

डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

हम हमेशा सच को स्वीकारने से क्यों भागते है

Sunday, August 20, 2023

तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ ,

 तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ ,

 समंदर की लहरों सा विचिलित खुद को ही पाता हूँ ,

निरे शाम में डूबे शून्य को पश्चिम तक ले जाता हूँ ,

भोर की लाली पूरब की खातिर भी मैं  ले आता हूँ ,

पर जाने क्यों मन का आंगन सूना सूना नहाता है ,

पंखुडिया से सजे सेज तन मन  को कहा सुहाता है ,

तुम नीर भरी दुःख की बदरी मै बदरी ने नाता हूँ ,

तेरे जाने की बात को सुन  कफ़न बना मै जाता हूँ ,

एक दिन न जाने क्यों आने का मन फिर करेगा ,

पर क्या जाने भगवन मेरे दिल उसका कब हरेगा ,

मौत यही नाम है उसका आलोक के साथ मिली है ,

जिन्दगी की तन्हाई से अब तो साँसों का तार तरेगा ,................................जितना पशुओ का समूह एक साथ दिखाई देता है और जब कोई हिंसक पशु आक्रमण करता है तो सब अपनी जान बचने में लगे रहते है .वैसे ही आज के दौर में मनुष्य देखने में सबके साथ है पर अपनी जिन्दगी की हिंसक ( भूख , प्यास , महंगाई , बेरोजगारी , आतंकवाद ) स्थिति आने पर वह बिलकुल ही अकेला होता है ...................सच में मनुष्य एक सामजिक जानवर से ऊपर नही .....................