Wednesday, September 23, 2020

हर कोई मोहब्बत के बीच ................ALOK CHANTIA


 

मैं भी बेवजह मौत की दौड़ में ...................ALOK CHANTIA


 

प्रेम अँधा होता है गर ये ..................ALOK CHANTIA


 

आसमान की आँख बनकर ..................ALOK CHANTIA


 

मैं जैसे ही आज मुस्कराया ................ALOK CHANTIA


 

वो हमें जिन्दगी जीना सीखा रहे थे ,

वो हमें जिन्दगी जीना सीखा रहे थे ,
हवाओ का रुख मुझे ही  बता रहे थे 
जिसने खेई नाव समुन्द्र के मझधार में ,
उसको ठहरे हुए पानी से डरा रहे थे

जिन्दगी में जितने मिले..........................ALOK CHANTIA

 जिन्दगी में जितने मिले ,

सभी वफ़ा करके ही गए ,

मैं हर पल साथ रहा सबके ,

और बेवफा सा होता गया ,

जिन्दगी को कभी कहो तो ,

क्या उसने वफ़ा की है कभी ,

मौत ही दामन के साथ रही ,

लोग उससे ही दूर रह गए .

Saturday, September 19, 2020

मेरी जिंदगी में अपनी मोहब्बत ...................ALOK CHANTIA


 

कोई नहीं आता समय गुजरने .........................ALOK CHANTIA


 

सच्ची मोहब्बत का सबब ..................ALOK CHANTIA


 

जिंदगी मुकाम पर है .....................alok chantia


 

कौन अपनी नियत बदलना चाहता है ............ALOK CHANTIA


 

मैं से हम तक का सफर ................ALOK CHANTIA


 

टहनी पर खिले फूल .........................ALOK CHANTIA


 

तुम्हे देखकर जब भी..............ALOK CHANTIA


 

रात को देखकर आँख ने भी ............ALOK CHANTIA


 

जीवन तो सिर्फ नव महीने ..................ALOK CHANTIA


 

मेरा चाँद भी मुझे से ......................ALOK CHANTIA


 

Wednesday, September 16, 2020

जिंदगी के मायने बदल गए है ......................ALOK CHANTIA


 

पूछते हो मुझसे आलोक .....................ALOK CHANTIA


 

मुझे तुम्हारे झूठ बोलने पर .......................................ALOK CHANTIA


 

दुनिया से मत कहो ................ALOK CHANTIA


 

धोखा देने का तैरा सबब ..............ALOK CHANTIA


 

रिश्ते को बिस्तर की चादर की तरह .....................ALOK CHANTIA


 

कितना अजीब फरेब है...........................ALOK CHANTIA


 

दर्द से भरे दिल को ...............ALOK CHANTIA


 

सुख की तलाश में अक्सर ..................ALOK CHANTA


 

दुनिया से मत कहो तुम्हे ...............................ALOK CHANTIA


 

समय का जीवन सवारने आलोक ..........................ALOK CHANTIA


 

Friday, September 11, 2020

जिंदगी के रास्ते ज्यों ज्यों ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, आलोक चांटिया


 

दुःख को बचा कर


 

सुबह सूरज के साथ आलोक जब भी. .... आलोक चांटिया


 

पूरब में फैला फिर अँधेरा सा। ........ आलोक चांटिया


 

एक सा रहता नहीं समय...............BY ALOK CHANTIA

सोचता हूँ कितना समय 

कब कहा और क्यों खो गया ,

देखता हूँ अब समुंदर ,

कुछ और ज्यादा उठ गया 

कुछ और खारा हो गया ,

सोचता हूँ समय को 

लेकर मैं क्यों न चल सका 

देखता हूँ बाल सारे 

काले मैं न रख सका 

बिना छड़ी मैं ना चल सका 

सोचता हूँ और कितना 

समय अब मुट्ठी  में है ,

देखता हूँ जो कल हसे थे ,

सपने लिए थे वो ,

वो आज चिता पर है 

या मिटटी में है ,

पूछता हूँ खुद से यही 

क्यों नहीं समझा समय 

जानते थे जब कभी ,

एक सा रहता नहीं समय ,

क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल.............BY ALOK CHANTIA

 क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल ,

कोई तो है जो सब सहता मुझको ,

तुम इल्जाम न लगाओ दिल का ,

धड़कन खुद दौड़ती रहती हर पल ,

मै तो सिर्फ अपनी जिन्दगी जिया ,

तुम खुद ही चली थी मेरे संग कल ,

अब जब बाँहों में समेटा आलोक मैंने, 

जिन्दगी सिमट गयी मौत के पल में ............................जीवन के साथ साथ मौत चलती है पर एक बार मौत जब अपनी जिन्दगी जीने के लिए अंगड़ाई लेती है तो जिन्दगी खुद से ऊब जाती है ...............यानि जब भी आप से कोई ऊब जाये तो समझ लीजिये मौत और जिन्दगी का खेल शुरू हो गया ...............चाहे वह संबंधो का खेल हो या फिर सांसो का ..............

Saturday, September 5, 2020

मैं जिंदगी को रहा खोजता ,

 मैं जिंदगी को रहा  खोजता ,

और जिंदगी मुझको ,

न मौत मिली मुझको ,

ना मिली ही उसको ,

दर दर यूँ ही भटकते रहे ,

न कभी आस जगी मन में ,

ना प्यास बुझी मेरी

और न कभी तेरी ,

कोई तो नहीं जो मिलाता,

कहा जाना है बताता ,

ना कभी पूछा मैंने

न कभी बताया उसने .

कितनी तड़प है लगती ,

हूँ उसका जो टूटा हिस्सा ,

तेरा नाम आत्मा है ,

कहा खुद को  परमात्मा उसने .....

आलोक चांटिया

दर्द कुरेद कुरेद कर मेरा

 दर्द कुरेद कुरेद कर मेरा ,

बीज कौन सा बो तुम रहे हो ,

बहते आंसू  को नीर समझ ,

पाप कौन सा धो तुम रहे हो ,

पथराई आँखों में झाँको तुम ,

हीरा कोईअब खो तुम रहे हो ,

मै क्यों तम से भागूं अब तो ,

अंतस में दिल जी तो रहे हो ,

आलोक जो खोया तो क्या  ,

सपनो का यौवन जी तो रहे हो  

अब मन न दुनिया में रहता ,

जी जी कर तुम मर तो रहे हो ,

किसे सुनाऊ सौ बाते दर्द की ,

सब में खुद को ही देख रहे हो ,

आज मिले वो बनाने वाला जो ,

पूछूं खेल कौन सा खेल रहे हो ,

मै भी तो था कुछ पल धरा का ,

धर धर के क्यों कुचल रहे हो ,

तोड़ के मेरे हर एक सपने को ,

दिल को दर्पण सा छोड़ रहे हो ,

बटोर नही पाउँगा अब ये सब ,

हर टुकड़े क्यों फिर जोड़ रहे हो ,.................................किसी के साथ रहना और उसका साथ छोड़ देना सबसे आसन काम है ........पर आज मुझे वह हिरन का झुण्ड याद आ रहा है जिनको दूर से देखने पर एक बड़ा समूह सा लगता है ..पर एक शेर( दुःख या समस्या ) के आने पर हिरन के अकेले होने की कलई खुल जाती है , बहुत से लोग कहेंगे की आप तो लिख कर बता लेते है पर वो  क्या करे जो सिर्फ घुट घुट कर जी रहे है ........................

जब मेरी जिंदगी थमी

 जब मेरी जिंदगी थमी ,

सोचा छोड़ दू अब जमीं ,

न पूछो कितनी भीड़ जमी ,

शायद आज संस्कृति की ,

यही कहानी शेष बची थी, 

क्या इसी खातिर भगवन ,

ने मानव और मानव ने ,

संस्कृति की बिसात रची थी ............


क्या आप औरत का मतलब जानते है ???

Tuesday, September 1, 2020

मौत का काढ़ा तो ............ BY ALOK CHANTIA


 

जो हस रहा है संग ........BY ALOK CHANTIA


 

क्या कहूँ क्या जीवन मेरा.................by alok chantia

 क्या कहूँ क्या जीवन मेरा ,

मौत से बेहतर क्या जानूँ,

छोड़ गए जो मुझे अकेला ,

उनको मानव मैं क्यों मानूं ,

जो कहते थे लोग सभी ,

सुख के सब साथी होते है ,

वही खड़े अक्सर  बाजार में  ,

मेरे सुख के खरीददार होते है ,

कोई फर्क नहीं मुझे अँधेरे का ,

सपने  सुन्दर तब ही आते है ,

कोई ताज महल होता तामीर है ,

 आलोक से दूर जब जाते है ,

मेरे गरीबी के जलते दीपक ,

तुमको ख़ुशी दीपावली सी देंगे ,

मेरे फटे हाल कपडे के सपने ,

उचे लोग अब  फैशन में लेंगे  ,

फिर छूट रही है ऊँगली तेरी  ,

मुट्ठी में रेत की तरह आज ,

सिलवटें, मसले हुए फूल ,

ना जानेंगे  रात का राज  ,

अँधेरा तो फिर हुआ  बहुत है ,

दायरों में रिश्तो के  लेकिन ,

पर एक रिश्ता फिर उभरा ,

मेरी बर्बादी से तेरा मुमकिन ...........

पता नहीं क्या लिखता रहा कभी समझ में आये तो मुझे समजाहिएगा जरूर क्योकि आज आदमी से ज्यादा बर्बादी का खेल कोई नहीं खेल रहा एक पागल कुत्ता भी नहीं एक जहरीला सांप भी नहीं .......

न जाने क्यों,,,,,,,,,,,,,by alok chantia

न जाने क्यों ,

जीवन मुझे महसूस 

नहीं होता |

दिन भी होता है 

रात भी होती है पर ,

 महसूस नही होता|,

एक सन्नाटे सा 

फैलता पसरता ,

रोज हर तरह |

एक शोर सा ,

होता अंदर जैसे, 

हो कोई विरह |

सांस का होना गर ,

जीवन है आलोक ,

तो चलती क्यों नही| ,

मौत का किलोल ,

सुनती भी नहीं ,

क्यों ढंग से सही |,

मानव तो वो भी ,

जो मारते मानव को ,

हर दिन हर रात |

कहते दानव क्यों ,

नहीं उनको कभी ,

करते सच्ची बात |