Saturday, November 29, 2025

रिश्ते लौटते नहीं है डॉ आलोक चांटिया रजनीश


 अब विवाह लोग अपने,

घरों से नहीं करते हैं।

सिर्फ और सिर्फ ज्यादातर, 

अपनी दहलीज पर मरते हैं।

क्योंकि विवाह के बाद के,

 संबंध अब स्थिर नहीं होते हैं।

इसीलिए लोग होटल पार्क, 

मैदान गेस्ट हाउस ढूंढ लेते हैं।

संबंध के नाम पर ,

उसी को घर का नाम देते हैं।

संबंध लाख ढूंढने पर फिर,

घर की तरफ लौट ही नहीं पाता है।

क्योंकि संबंधों का दायरा ही अपना,

जन्म घर के द्वारचार से नहीं,

होटल के रिसेप्शन से पाता है।

शहनाई की आवाज भी, 

होटल से आती है ।

सोहर बन्ना की गूंज ,

बड़ी-बड़ी महफिले पाती हैं।

कहां कोई अब,

ढोलक बजाता है ।

कहां घर के आंचल में लिपटी हुई,

औरतें कोई गाना बैठकर गाती हैं।

कहां कोई अपने बेटे बेटी के लिए,

सुंदर से गीत सुनाती हैं।

सब अब किराए के,

लोगों को लेकर चले आते हैं।

संबंध का यही अर्थ,

तो अब हम पाते हैं ।

कोई चाहता तक नहीं है कि,

मांग की लकीरें उसके, 

जीवन के अर्थ को,

दुनिया को बता जाएं ।

सौंदर्य के ललक में कुछ ,

ऐसा चल रहा है ,

कि उर्वशी मेनका भी शरमा जाए।

इसीलिए घरों में कमरे,

कम होने लगे हैं।

होटल और गेस्ट हाउस में, 

कमरों की संख्या बढ़ने लगी है ।

कुछ पल के लिए ही रिश्तेदार ,

रिश्ते चारों तरफ रहे।

तभी अच्छा लगता है ,

अब कोई भला रत जगा में, 

रात-रात कहां जगता है?

संबंध भी आत्मा की तरह, 

कपड़े बदलने वाला एक, 

सिलसिला होता जा रहा है।

आदमी आज फिर संस्कृति से ,

निकल पशु जगत में ,

खोता जा रहा है ।

अब घरों के दरवाजों से, 

विदाई का शोर सुनाई नहीं देता है ।

कोई किसी का हाथ पकड़ कर,

कार पर बिठा लेता है ।

लोग हाथ झाड़ कर फिर, 

अपने घरों को लौट आते हैं।

संबंध जो सड़क पर बनाए गए हैं ,

अब घर तक लौटकर नहीं आते हैं ।

आलोक चांटिया "रजनीश"


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