Wednesday, January 5, 2022

रेत के छोटे-छोटे कणों से बिखरा हूं

 रेत के ,

छोटे छोटे ,

कणों सा ,

बनकर बिखरा हूँ ,

मैं पत्थर ,

अपने जीवन ,

की दुर्दशा से ,

बहुत सिहरा हूँ ,

पर खुश भी हूं संग मैं तेरे ,

अगर रेत बना तो ,

मकान बनाओगे ,

और पत्थर को तो तुम ,

भगवान कहकर ,

मंदिर में सजाओगे ,

क्योंकि तुम मानव हो ,

तुमको टूटने बिखरने को भी, संजोना आता है ,

एक तिनके से ,

घर बनाना आता है ,

थपेड़ों ,अंधेरों ,तूफानों से ,

जीने का तुम्हारा ,

अपना एक सुंदर नाता है

डॉ आलोक चांटिया

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