अक्सर लोग शब्दों को ,
तोड़कर नहीं देखते ,
यहां तक कि उसे थोड़ा सा,
मोड़ कर भी नहीं देखते,
ना जाने कितनी अनंत,
ऊर्जा लिए हुए वह आता है,
रिश्तो के अनंत बंधनों में,
हर किसी को पाता है ,
जिसके लायक जितना,
अर्थ समेटे रहता,
उतनी बातें चुप ,
रहकर भी वह कहता,
शब्दों की यह गहरी माया ,
अनंत से लेकर ब्रह्मांड के भीतर,
जो भी जब भी समझ है पाया,
शब्दों से आलिंगन करके,
वह जीवन को जीते हैं पाया।
वह जीवन को जीते हैं पाया।
आलोक चांटिया
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