मैं दुखी हूँ या ये नश्वर शरीर ......
नश्वर शरीर प्रसन्न है या मैं .....
इसी लिए लिख डाली ये पंक्तियाँ
कोई मेरे आंसुओ से पूछे ,
वो आज खुश क्यों नहीं है ?
अंतस की दीवार ओट पार,
क्यों उनके वश में नहीं है ?
जो मेरे भीतर रहते थे कभी ,
आज मेरे ही भीतर क्यों नहीं है?
किराये सा अब लगता ये मन ,
मन अब खुद का क्यों नहीं है ?
अंधेरो से लड़ना फितरत हमारी ,
आलोक में क्यों आलोक नही है ?????
ये दुनिया है यहाँ सब अपने लिए आये है आप को तनाव दिया जाना मना हो या न हो जिसे अपने मन की कहनी है वो कहेगा क्योकि जीवन और मृत्यु के बाद आंसू गिराने वाले खुद इस अपने को भूल कर दुसरे के साथ जीने लगते है पता नहीं मनुष्यता क्या है और पशुता क्या है ???? जो भी है पर आज मनुष्यता क्यों नहीं है ??????????????
आपका आलोक चान्टिया
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