आंसू .........
आंसुओ को सिर्फ ,
दर्द हम कैसे कहे ,
कल तक जो अंदर रहे ,
वही आज दुनिया में बहे ,
सूखी सी जिंदगी से निकल ,
किसी सूखी जमी को ,
गीला कर गए ,
मन भारी भी होता रहा,
पर नमी पाकर ,
किसी में नयी कहानी ,
बसने लगी आकर ,
कोपल फूटी ,
किसी को छाया मिली ,
किसी बेज़ार जिंदगी में,
एक ठंडी हवा सी चली ,
दर्द का सबब ही नहीं ,
मेरे आंसू आलोक ,
इस पानी में भी जिंदगी ,
लेती है किसी को रोक .........
आंसू कही दर्द तो किसी के लिए सहानुभूति बन कर आते है और फिर शुरू होती जिंदगी की एक नयी कहानी आलोक चांटिया
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 30 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह
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