Saturday, August 29, 2020

आंसू .........

 आंसू .........

आंसुओ को सिर्फ ,

दर्द हम कैसे कहे ,

कल तक जो अंदर रहे ,

वही आज दुनिया में बहे ,

सूखी सी जिंदगी से निकल ,

किसी सूखी जमी को ,

गीला कर गए ,

मन भारी भी होता रहा,

पर नमी पाकर ,

किसी में नयी कहानी ,

बसने  लगी आकर ,

कोपल फूटी , 

किसी को छाया मिली ,

किसी  बेज़ार जिंदगी में,

एक ठंडी हवा सी चली ,

दर्द का सबब ही नहीं ,

मेरे आंसू आलोक ,

इस पानी में भी जिंदगी ,

लेती है किसी को रोक .........

आंसू कही दर्द तो किसी के लिए सहानुभूति बन कर आते है और फिर शुरू होती जिंदगी की एक नयी कहानी आलोक चांटिया

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 30 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर

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