Saturday, August 29, 2020

.......सब कुछ खोकर भी


 

एक दिन जब जिंदगी .......


 

न जाने कितनी आँखे रोती रही...........by alok chantia

 न जाने कितनी आँखे रोती रही ,

और मौत मेरे संग सोती रही ,

कब पसंद आई मोहब्बत उनको ,

तन्हाई कमरे में अब होती रही ,

कितने बेदर्दी से निकाला घर से ,

सांस न जाने कहाँ खोती रही ,

मेरी प्रेम कहानी का अंत देखो ,

मौत जल कर जिन्दगी ढोती रही ,

मेरी राख को भी नदी में बहा कर ,

मिटटी में कोई बीज फिर बोती रही,

ये क्या आलोक को सिला मिला उनसे ,

मौत को देख उनकी मौत होती रही

मैंने अपनी आंखें................by alok chantia

 मैंने अपनी आंखें

 क्या बंद कर ली 

लोग मुझे फिर से 

उस मिट्टी में समाई हुई 

असीमित ऊर्जा सर्जन की 

शक्ति से मिलाने चल दिए 

देखिए तो सही कैसे 

अपने चार कंधों पर लिए 

मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा 

फिर भी सच मानो 

लौट कर आऊंगा क्योंकि 

यह मिट्टी ही मेरे तन को 

बनाती है बिगड़ती है 

मिलाती है जलाती है 

इसीलिए कैसे कहूं तुम 

आज मुझे फिर से 

वही ले जा रहे हो 

जिसके कारण से मिलने के 

बाद मेरे इस नश्वर शरीर को 

इस दुनिया में पा रहे हो 

कितना खुश नसीब हूं मैं 

आज मैं फिर उस मिट्टी से 

मिल पा रहा हूं 

ए दुनिया वालों अब मैं 

फिर अपनी सच्ची मोहब्बत के

 पास आलोक जा रहा हूं 

आलोक चांटिया

दरख़्त ............BY ALOK CHANTIA


 

बेमेल विवाह .............BY ALOK CHANTIA


 

औरत कैसी भी ...........BY ALOK CHANTIA


 

कौन चाहता है जीवन में ...........BY ALOK CHANTIA


 

आँख को बंद कर मैं .............BY ALOK CHANTIA


 

पानी भी काला दिखा है ..............BY ALOK CHANTIA


 

मैं चाहता था ..................BY ALOK CHANTIA


 

दुखद कभी भी सुखद ............by alok chantia


 

कितनी शिद्दत से इंतज़ार किया तूने मेरा

 कितनी शिद्दत से इंतज़ार किया तूने मेरा ,

देख तेरी खातिर जिन्दगी को छोड़ आया ,

बंद आँखों में है भी तो सिर्फ तस्सवुर तेरा ,

मौत हर शख्स को सुकून तुझमे ही आया ,

अब तो खुश हो जा मै किसी को न देखता ,

हर किसी से दूर सिर्फ तेरा गुलाम बना गया ,

कमरे  में मेरी जगह रहती अब खाली खाली ,

सच मान मैं शमशान में तेरे ही लिए बस गया ....

आंसू .........

 आंसू .........

आंसुओ को सिर्फ ,

दर्द हम कैसे कहे ,

कल तक जो अंदर रहे ,

वही आज दुनिया में बहे ,

सूखी सी जिंदगी से निकल ,

किसी सूखी जमी को ,

गीला कर गए ,

मन भारी भी होता रहा,

पर नमी पाकर ,

किसी में नयी कहानी ,

बसने  लगी आकर ,

कोपल फूटी , 

किसी को छाया मिली ,

किसी  बेज़ार जिंदगी में,

एक ठंडी हवा सी चली ,

दर्द का सबब ही नहीं ,

मेरे आंसू आलोक ,

इस पानी में भी जिंदगी ,

लेती है किसी को रोक .........

आंसू कही दर्द तो किसी के लिए सहानुभूति बन कर आते है और फिर शुरू होती जिंदगी की एक नयी कहानी आलोक चांटिया

Sunday, August 23, 2020

मुर्दों ने पूछा ...................BY ALOK CHANTIA

 

जीने के लिए ये भी BY ALOK CHANTIA

 जीने के लिए ये भी पैदा हुए है क्या इनके लिए देश नहीं है ???????????????

मेरा भी रोने को , 

मन करता है 

मेरा भी सोने को ,

मन करता है ,

पर हर कंधे ,

गीले होते है ,

हर चादर मैले ,

ही होते है ,

मेरा भी जीने का ,

मन करता है ,

मेरा भी पीने को ,

मन करता है ,

पर जिन्दा लाशों ,

का काफिला मिलता है ,

पानी की जगह बस,

खून ही मिलता है |

मुझे क्यों अँधेरा ,

ही मिलता है ,

मुझमे  क्यों सपना ,

एक चलता है ,

क्यों नहीं कभी आलोक ,

आँगन में खिलता है ,

क्यों नही एक सच ,

सांसो को मिलता है ...............

जीवन में सभी के लिए एक जैसी स्थिति नही है , इस लिए जीवन को अपने तरह से जियो ( अखल भारतीय अधिकार संगठन )

मैं हर जगह व्याप्त हूँ .......BY ALOK CHANTIA

 

उसने रात से कुछ इतनी ........BY ALOK CHANTIA

 

Thursday, August 20, 2020

तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ

 तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ ,

 समंदर की लहरों सा विचिलित खुद को ही पाता हूँ ,

निरे शाम में डूबे शून्य को पश्चिम तक ले जाता हूँ ,

भोर की लाली पूरब की खातिर भी मैं  ले आता हूँ ,

पर जाने क्यों मन का आंगन सूना सूना नहाता है ,

पंखुडिया से सजे सेज तन मन  को कहा सुहाता है ,

तुम नीर भरी दुःख की बदरी मै बदरी ने नाता हूँ ,

तेरे जाने की बात को सुन  कफ़न बना मै जाता हूँ ,

एक दिन न जाने क्यों आने का मन फिर करेगा ,

पर क्या जाने भगवन मेरे दिल उसका कब हरेगा ,

मौत यही नाम है उसका आलोक के साथ मिली है ,

जिन्दगी की तन्हाई से अब तो साँसों का तार तरेगा ,................................जितना पशुओ का समूह एक साथ दिखाई देता है और जब कोई हिंसक पशु आक्रमण करता है तो सब अपनी जान बचने में लगे रहते है .वैसे ही आज के दौर में मनुष्य देखने में सबके साथ है पर अपनी जिन्दगी की हिंसक ( भूख , प्यास , महंगाई , बेरोजगारी , आतंकवाद ) स्थिति आने पर वह बिलकुल ही अकेला होता है ...................सच में मनुष्य एक सामजिक जानवर से ऊपर नही .....................

Sunday, August 16, 2020

सपने में तो कुछ लोग ..........BY ALOK CHANTIA

 

लिखने का मन नहीं आज ...........BY ALOK CHANTIA

 

या रब मुझे ..............BY ALOK CHANTIA

 

आओ हम सभी उस पार का ......BY ALOK CHANTIA

 

झिलमिलाते आसुओं के ..........BY ALOK CHANTIA

 

जो कभी कमरे के सन्नाटो को ......BY ALOK CHANTIA

 

समाज सेवा ..............BY ALOK CHANTIA

 

सोलह कलाओ के संगम हो तुम ....................BY ALOK CHANTIA

 

तेरा दौर सिर्फ इंदौर तक ..............BY ALOK CHANTIA

 

उजाला भी खो गया .......................BY ALOK CHANTIA

 

मेरे पास जिंदगी का .............BY ALOK CHANTIA

 

चलो आअज जिंदगी को ..............BY ALOK CHANTIA

 

Saturday, August 8, 2020

अपना क्या है .....................BY ALOK CHANTIA

 

मेहनतकश लोगो से सीखो .........BY ALOK CHANTIA

 

जो दूर दूर रहते हैं ...................BY ALOK CHANTIA

 

सच्चा हमसफ़र .........................BY ALOK CHANTIA

 

किसकी राह देखते हो ...............BY ALOK CHANTIA

 

एक सपना एक चाहत .................BY ALOK CHANTIA

 

अवसर को मत खोना

 

मेरी तरफ आते हुए .........................BY ALOK CHANTIA

 

मुझसे पहले मेरे अपने ...............BY ALOK CHANTIA

 

मुझ में सिर्फ यही .........................BY ALOK CHANTIA

 

Wednesday, August 5, 2020

ये जो मोहब्बत है ..........BY ALOK CHANTIA


कुछ नया सीखने के लिए ...............BY ALOK CHANTIA


श्री राम ने सिखाया .........BY ALOK CHANTIA


बातें नहीं करनी तो ...............BY ALOK CHANTIA


चाँद नगर में रहने वाले ........BY ALOK CHANTIA


छोटी पे पहुंच कर ......BY ALOK CHANTIA


चुपचाप गुजर जाना ..........BY ALOK CHANTIA


जो भी श्री राम का नहीं .......BY ALOK CHANTIA