Sunday, August 30, 2020
Saturday, August 29, 2020
न जाने कितनी आँखे रोती रही...........by alok chantia
न जाने कितनी आँखे रोती रही ,
और मौत मेरे संग सोती रही ,
कब पसंद आई मोहब्बत उनको ,
तन्हाई कमरे में अब होती रही ,
कितने बेदर्दी से निकाला घर से ,
सांस न जाने कहाँ खोती रही ,
मेरी प्रेम कहानी का अंत देखो ,
मौत जल कर जिन्दगी ढोती रही ,
मेरी राख को भी नदी में बहा कर ,
मिटटी में कोई बीज फिर बोती रही,
ये क्या आलोक को सिला मिला उनसे ,
मौत को देख उनकी मौत होती रही
मैंने अपनी आंखें................by alok chantia
मैंने अपनी आंखें
क्या बंद कर ली
लोग मुझे फिर से
उस मिट्टी में समाई हुई
असीमित ऊर्जा सर्जन की
शक्ति से मिलाने चल दिए
देखिए तो सही कैसे
अपने चार कंधों पर लिए
मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा
फिर भी सच मानो
लौट कर आऊंगा क्योंकि
यह मिट्टी ही मेरे तन को
बनाती है बिगड़ती है
मिलाती है जलाती है
इसीलिए कैसे कहूं तुम
आज मुझे फिर से
वही ले जा रहे हो
जिसके कारण से मिलने के
बाद मेरे इस नश्वर शरीर को
इस दुनिया में पा रहे हो
कितना खुश नसीब हूं मैं
आज मैं फिर उस मिट्टी से
मिल पा रहा हूं
ए दुनिया वालों अब मैं
फिर अपनी सच्ची मोहब्बत के
पास आलोक जा रहा हूं
आलोक चांटिया
कितनी शिद्दत से इंतज़ार किया तूने मेरा
कितनी शिद्दत से इंतज़ार किया तूने मेरा ,
देख तेरी खातिर जिन्दगी को छोड़ आया ,
बंद आँखों में है भी तो सिर्फ तस्सवुर तेरा ,
मौत हर शख्स को सुकून तुझमे ही आया ,
अब तो खुश हो जा मै किसी को न देखता ,
हर किसी से दूर सिर्फ तेरा गुलाम बना गया ,
कमरे में मेरी जगह रहती अब खाली खाली ,
सच मान मैं शमशान में तेरे ही लिए बस गया ....
आंसू .........
आंसू .........
आंसुओ को सिर्फ ,
दर्द हम कैसे कहे ,
कल तक जो अंदर रहे ,
वही आज दुनिया में बहे ,
सूखी सी जिंदगी से निकल ,
किसी सूखी जमी को ,
गीला कर गए ,
मन भारी भी होता रहा,
पर नमी पाकर ,
किसी में नयी कहानी ,
बसने लगी आकर ,
कोपल फूटी ,
किसी को छाया मिली ,
किसी बेज़ार जिंदगी में,
एक ठंडी हवा सी चली ,
दर्द का सबब ही नहीं ,
मेरे आंसू आलोक ,
इस पानी में भी जिंदगी ,
लेती है किसी को रोक .........
आंसू कही दर्द तो किसी के लिए सहानुभूति बन कर आते है और फिर शुरू होती जिंदगी की एक नयी कहानी आलोक चांटिया
Sunday, August 23, 2020
जीने के लिए ये भी BY ALOK CHANTIA
जीने के लिए ये भी पैदा हुए है क्या इनके लिए देश नहीं है ???????????????
मेरा भी रोने को ,
मन करता है
मेरा भी सोने को ,
मन करता है ,
पर हर कंधे ,
गीले होते है ,
हर चादर मैले ,
ही होते है ,
मेरा भी जीने का ,
मन करता है ,
मेरा भी पीने को ,
मन करता है ,
पर जिन्दा लाशों ,
का काफिला मिलता है ,
पानी की जगह बस,
खून ही मिलता है |
मुझे क्यों अँधेरा ,
ही मिलता है ,
मुझमे क्यों सपना ,
एक चलता है ,
क्यों नहीं कभी आलोक ,
आँगन में खिलता है ,
क्यों नही एक सच ,
सांसो को मिलता है ...............
जीवन में सभी के लिए एक जैसी स्थिति नही है , इस लिए जीवन को अपने तरह से जियो ( अखल भारतीय अधिकार संगठन )
Friday, August 21, 2020
Thursday, August 20, 2020
तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ
तन्हाई से निकल कभी जब शोर का आंचल पाता हूँ ,
समंदर की लहरों सा विचिलित खुद को ही पाता हूँ ,
निरे शाम में डूबे शून्य को पश्चिम तक ले जाता हूँ ,
भोर की लाली पूरब की खातिर भी मैं ले आता हूँ ,
पर जाने क्यों मन का आंगन सूना सूना नहाता है ,
पंखुडिया से सजे सेज तन मन को कहा सुहाता है ,
तुम नीर भरी दुःख की बदरी मै बदरी ने नाता हूँ ,
तेरे जाने की बात को सुन कफ़न बना मै जाता हूँ ,
एक दिन न जाने क्यों आने का मन फिर करेगा ,
पर क्या जाने भगवन मेरे दिल उसका कब हरेगा ,
मौत यही नाम है उसका आलोक के साथ मिली है ,
जिन्दगी की तन्हाई से अब तो साँसों का तार तरेगा ,................................जितना पशुओ का समूह एक साथ दिखाई देता है और जब कोई हिंसक पशु आक्रमण करता है तो सब अपनी जान बचने में लगे रहते है .वैसे ही आज के दौर में मनुष्य देखने में सबके साथ है पर अपनी जिन्दगी की हिंसक ( भूख , प्यास , महंगाई , बेरोजगारी , आतंकवाद ) स्थिति आने पर वह बिलकुल ही अकेला होता है ...................सच में मनुष्य एक सामजिक जानवर से ऊपर नही .....................