Sunday, January 27, 2013

साँसों का भरोसा

लपेट कर सांसो को आज तक ,
बारिश , सर्दी गर्मी में अब तक ,
चल ही तो रहे थे कि सब मिटा ,
जीवन न जाने कहा अब सिमटा,
चाहा बहुत पर अब ऐतबार नहीं ,
समझा एक बार हर बार नहीं ,
मौत ही भली जो अंतहीन रही ,
छुप कर खेली पर अर्थहीन नहीं .............................. क्या आपको नहीं लगता कि मौत को हम सब रोज जीते है और जो जीते है वह है अपनी मौत का वो रास्ता जो हम सबको अनचाहे तरीके से चलना ही है ..................आप क्या जी रहे हैं ????????????????????जीवन ?????????? .शुभ रात्रि

Friday, January 25, 2013

Woman Dalit and Human Rights in India

Woman Dalit and Human Rights in India

आओ बाज़ार से झंडा ले आये ????????????????

झंडा बिकता है ,
पर किसको दिखता है ,
देश का गौरव तरसता है,
पैसे के बीच कसकता है ,
सैनिको के खून से रंग कर ,
बाज़ार में वो दरकता है ,
झंडा बिकता है ,
पर किसको दिखता है ...............................................आइये बाज़ार से एक झंडा खरीद लाये ..........................गणतंत्र क्या है सबको बताये

Monday, January 21, 2013

झंडा मुफ्त मांगिये

कितने बेबस दिखे वो वहा से ,
जब अपने खून को बिकते देखा ,
अपने हौसलों से रंगे तिरंगे को ,
बाज़ार में उतारते हुए देखा ,
हम सब भी खड़े हो गए वहा,
एक तमाशबीन की तरह ऐसे ,
जैसे खरीद दार की आदत सी हो ,
तिरंगे को खरीदना इबादत सी हो ............................आप सब एक सम्मानित भारतीय है और आपको जैसे मुफ्त में खाना , घर , शिक्षा बिजला, चाहिए वैसे मुफ्त में क्यों नहीं क्या झंडे से इतना भी लगाव नहीं हम पैदा कर पाए ..सोचिये और कहिये शुभ रात्रि ....अखिल भारतीय अधिकार संगठन के साथ मिल कर आवाज उठाइए .....झंडा मुफ्त मांगिये

Saturday, January 19, 2013

मैं पश्चिम का सूरज हूँ

मैं पश्चिम का सूरज हूँ ,
तुम पूरब के बन जाओ ,
मैं निस्तेज तिमिर का वाहक ,
तुम पथ के दीपक बन  जाओ ,
मैं और तुम दोनों ही रक्तिम ,
अंतर बस इतना पाता हूँ ,
तुम उगने का अर्थ लिए ,
मैं उगने की राह बनता हूँ ...................................उगता और डूबता सूरज दोनों लाल होते है पर दोनों का अर्थ अलग है ....समझिये और कहिये शुभ रात्रि

Friday, January 18, 2013

क्यों इतने हताश हो

कितने हताश दिखे तुम ,
आज रिश्तो के बाज़ार में ,
जो भी बिक रहा था वहा,
बस कुछ ही हज़ार में ,
कितना चाहा कोई मिले ,
बिना किसी मोल तोल का ,
पर दिखाई जो दिया कभी ,
पता नहीं किस  खोल का

Thursday, January 17, 2013

मौत है जीवन पाने के लिए

क्यों रोता है मन ,
किसको जीता है तन ,
मैं तो अकेला आया ,
फिर ये किसको पाया ,
मैं जाऊंगा भी अकेले ,
छूटेंगे  दुनिया के मेले ,
तो कौन साथ में हैं ,
आज फिर रात में हैं ,
दिख तो सन्नाटा रहा ,
दिल ने फिर क्या सहा,
धीरे से किसने कहा ,
सो जाओ सपने को ,
आज सजाने के लिए ,
मौत को पाने के लिए ,
यही सच है सबका ,
बस चक्र है जाने के लिए ...................................क्या जन्दगी को आप जानते है या फिर मौत तक पहुचने के रस्ते को जीवन कहते रहे


तुम थे ही यहाँ कहाँ ????????????

जिन्दा तो वो भी है ,
जो अब जिन्दा नहीं है ,
अक्सर वही तो रहते है ,
हमारी आपकी बातों में ,
आप को जनता ही कौन,
अगर वो साथ में नहीं ,
एक विरासत बनाते है ,
जैसे सपने रातों में ,
कभी मत कहना कि,
तुम मर गए हो कभी ,
क्योकि जिन्दा थे कहाँ ,
बात तुम्हारी बाकी अभी ........शुभ रात्रि

Wednesday, January 16, 2013

koi milta hai

दर्द में आँखों से जब मोम बहा ,
तब लगा हांड मांस भी जलता है ,
कुछ लोगो को लगा कि आँसू है ,
किसे बताऊँ कोई रोज मिलता है

किसके इंतज़ार में

क्यों जिन्दगी चलती है इस कदर ,
कि कुछ करके भी मौत ही पायी,
और मौत का सब्र भी देखिये जरा ,
पैदा होने के पहले से इंतज़ार में ...............................जिसने सब्र किया वही जीतता है मौत की तरह अंततः ....शुभ रात्रि

Tuesday, January 15, 2013

लिखूं या सहूँ

आओ मैं एक कविता लिखूं
और तुममे मैं फिर दिखूं ,
कितना अरसा हो गया अब ,
कोई सन्नाटा क्यों आज सहूँ ,
क्या मैं आस पास तुम्हारे रहूँ ,
पर ये सब कैसे उनसे कहूँ ,
जो सिर्फ लूटने घसोटने के लिए ,
भारत अब मैं किस पर हसूँ
खुद पर या उन पर जो लेकर ,
तन, मन धन बता मैं कहा बसूं...........................................शुभ रात्रि

Friday, January 11, 2013

अगर मैं रोता नहीं तो

रोकर दिखाता तो वो ,
मेरा दर्द जान जाते ,
मर कर दिखाता तो ,
वो सच मान जाते ,
शब्द कब से इतने ,
बेगाने होने लगे है ,
कि हर तरह हर जगह ,
बुत नजर आने लगे है ,
मैंने तो हर किसी पर ,
विश्वास करके ही ,
हाथ बढाया था कुछ ,
दूर तक चलने के लिए ,
पर यह क्या विश्वास ही,
रो दिया हर पल कि ,
अब वो कैसे यहाँ जिए ,
आलोक को भला कहाँ ,
पता बोलने का सलीका ,
गाली देकर देखना चाहे ,
किसने क्या कब सीखा,
आज चर्चा थी मेरी यहाँ ,
मेरे चले जाने के बाद ,
क्योकि मौत के बाद
देश होता रहा है आबाद ,
कितने मुंह कितनी बात ,
रावन का ये कैसा साथ ,
राम को कहा से लाऊ ,
क्या फिर  लंका जाऊ ,
आदमी समझ लो मुझको ,
अपनी तरह ही बस एक बार ,
क्यों बार बार तन और
मन जाता है यहाँ हार .................................
........................पता नहीं लोग ये क्यों समझाना चाहते है कि वो मूल्यों के कर्णधार है जबकि भराव पुत्र को परिस्थिति के कारण शुक्राचार्य बनना  पड़ा था .................हम ने विश्वास करना क्यों छोड़ दिया और विश्वास के साथ बलात्कार क्यों हो रहा है यहाँ पर रोज .............................आज मन दुखी है पर ???????????????? शुभरात्रि .

Thursday, January 10, 2013

जानवर तो ऐसा नहीं करते

लड़ ...........की
लड़ ...........के ,
की से के तक ,
लड़ लड़ कर ,
हम क्या कर रहे  है ,
क्या हम जी रहे है ,
या उसको शराब ,
की जगह पी रहे है ,
कितने दुखी दिखे ,
जब उसकी पदचाप ,
गर्भ में सुनी तुमने ,
फिर क्यों लूटा ,
सड़क,बस , शहर ,
हर कही तुमने ,
कैसे मनुष्य हो तुम ,
उस जानवर से बेहतर ,
जो कभी कही भी ,
मादा को नही भरमाता,
न तो माँ कहता ,
ना बहन , पत्नी और ,
प्रेमिका बता कर खुद ,
एक प्रश्न बन आता ,
एक बार तो सोच लो ,
औरत का क्या करना ,
तुमको अपने जीवन में ,
क्यों कि हांड मांस में ,
उसके हिस्से क्यों आती ,
मौतों के तरीके जीवन में .............................जीवन में हम अपने लिए जीवन के सुख तलाशते हा और औरत के लिए मौत के प्रकार ???? क्या ऐसा नहीं है तो फिर औरत प्राक्रतिक तरीके से इतर ज्यादा क्यों मर रही है ??????????????/वह किसी जंगल में रह रही है ????????????? शुभ रात्रि

Monday, January 7, 2013

मुझे वहां पंहुचा दो

क्या मुझको ,
कोई ले जायेगा ?
कोशिश कर भी लो ,
पर हाथ तेरे या ,
उनके कुछ न आएगा ,
एक गोश्त के कारण,
ही तो भेड़िये,
दौड़ आ जाते है ,
हम चिल्लाते है ,
रोते बिलखते है ,
पर उनके लिए मेरे ,
आंसू ख़ुशी का ,
सबब बन जाते है ,
हमारे आंचल में ,
अंततः ढूध के श्राप ,
और आँखों में दरिंदो ,
के सपने रह जाते है ,
काट कर बिकते गोश्त ,
की दुकानों की तरह ,
जिन्दा लेकर मैं ,
थक रही हूँ अब ,
अपने को लुटते देख ,
ख़ामोशी तेरी होती
मेरे ही सामने जब ,
अब मुझे वहा भेज दो ,
जहाँ से कोई नहीं आता ,
आत्मा बन कर रहूंगी ,
सामने ना सही पर ,
ख़ुशी तो होगी कि,
अब लड़की बन के ,
जमीं पे दुखी न रहूंगी ........................................ लड़की के लिए हम सब कब ऐसा सोचेंगे कि उनको ऐसा लगे कि वह जंगल में नहीं एक मानव की संस्कृति में रहती है जहाँ उनकी इच्छा और गरिमा का ख्याल किया जाता है .....शुभ रात्रि

मुझे वहा पंहुचा दो


Sunday, January 6, 2013

लड़की का नाम नहीं होता

देश का नाम ,
विदेश का नाम ,
शहर का नाम ,
जहर का नाम ,
गाँव का नाम ,
दांव का नाम ,
जाम का नाम ,
नाम का नाम ,
पर नाम नहीं ,
उसका क्योकि ,
वह सिर्फ लड़की है ,
हांड मांस की ,
सिर्फ हमारी ,
इज्जत के लिए ,
उसका शरीर सिर्फ .
बेइज्जत के लिए ,
जब चाहो नोचो ,
घसोटो, लूटो ,
मार भी दो पर ,
उसको नाम न ,
आने दो सामने ,
क्योकि नाम कहाँ होता है ,
एक लड़की की न जात ,
ना पात होती है ,
लड़की इज्जत है सिर्फ ,
पुरुष के लिए ,
वह जिए या मरे ,
उसका नाम नहीं
आना चाहिए ,
तभी तो वह तरे,
जिन्दा  पर दुर्दशा ,
और मरने पर ,
उसके नाम पर फसा,.....................क्या लड़की के नाम आने के बाद उसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी या घटेगी ......सोचिये और कहिये .....शुभ रात्रि

Friday, January 4, 2013

मौत में रहने लगे

मौत की ये ,
किस दुनिया में ,
रहने लगे ,
अपने में सिमट ,
कर आलोक ,
सब रहने लगे ,
मेरे मरने पर ,
कुछ तो कहेंगे ,
बुरा था या ,
अच्छा कहेंगे ,
पर आज मेरी ,
तन्हाई पर ,
न साथ रहेंगे ,
ना कुछ कहेंगे ,
दुनिया जिसे कहते ,
जादू का खिलौना ,
मिल जाये तो मिटटी ,
खो जाये तो सोना ,
कैसे चलेगा ये ,
एक बार इधर ,
आकर भी ना कोई ,
किसी के साथ चलेंगे ,
बस चार कंधो में ,
हमारे साथ रहेंगे ........................... दुनिया यानि सिर्फ अपने चेहरों की तलाश और अपने में जी जाना .......वही हाड मांस का आदमी कभी हिन्दू तो कभी मुसलमान बन जाता है कभी दलित तो कभी सवर्ण बन जाता है यानि मनुष्य कभी एक सूत्र में पिरो कर न देखा जायेगा ....शत शत अभिनन्दन मानव तुमको निश्चय ही तुम जानवरों से भिन्न हो भिन्न हो ................सुप्रभात

मौत में रहने लगे

मौत की ये ,
किस दुनिया में ,
रहने लगे ,
अपने में सिमट ,
कर आलोक ,
सब रहने लगे ,
मेरे मरने पर ,
कुछ तो कहेंगे ,
बुरा था या ,
अच्छा कहेंगे ,
पर आज मेरी ,
तन्हाई पर ,
न साथ रहेंगे ,
ना कुछ कहेंगे ,
दुनिया जिसे कहते ,
जादू का खिलौना ,
मिल जाये तो मिटटी ,
खो जाये तो सोना ,
कैसे चलेगा ये ,
एक बार इधर ,
आकर भी ना कोई ,
किसी के साथ चलेंगे ,
बस चार कंधो में ,
हमारे साथ रहेंगे ........................... दुनिया यानि सिर्फ अपने चेहरों की तलाश और अपने में जी जाना .......वही हाड मांस का आदमी कभी हिन्दू तो कभी मुसलमान बन जाता है कभी दलित तो कभी सवर्ण बन जाता है यानि मनुष्य कभी एक सूत्र में पिरो कर न देखा जायेगा ....शत शत अभिनन्दन मानव तुमको निश्चय ही तुम जानवरों से भिन्न हो भिन्न हो ................सुप्रभात

आस्तीन का सांप

मेरे दर्द ,
पर जब ,
कोई मुस्कराता है ,
शायद उसके ,
अंतस का आदमी ,
तभी जी पाता है |
मेरे अँधेरे पर ,
जलता दीपक ,
उनके घर में एक ,
सुकून दे जाता है |
ना जाने कैसी ,
फितरत पाल ली ,
आलोक दुनिया में ,
कोई क्यों आता है ?
जीते है जिसके साथ ,
वही आस्तीन ,
का सांप निकलेगा  ,
कौन जान पाता है ................................ हम अब इतना समय पा ही नहीं पा रहे कि किसी को समझ सके और उसी कारण हम अकसर धोखा कहते है किसी की इज्जत लूटी जाती है  और कोई किसी को प्रेम में सब कुछ लुटा कर दुनिया से चला जाता है ...............क्या आप को कोई नहीं मिला ..........शुभ रात्रि

Thursday, January 3, 2013

दर्द भी किलकारी के साथ है

सूरज के रास्ते में ,
चाँद भी आता है ,
हर सुबह का पथ ,
अंधकार भी पाता है ,
क्यों देखते हो जीवन ,
हर दर्द से दूर ,
कभी कभी दर्द ,
किलकारी के काम आता है .........................क्या आप अपने दर्द में दर्द थोडा  सयम नहीं रखना चाहिए .................हो सकता है कई सवेरा आपका इंतज़ार कर रहा हो ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन  आपके मंगल की कामना करता है ...सुप्रभात

बिखरा हूँ

रेत के ,
छोटे छोटे ,
कणों सा ,
बनकर बिखरा हूँ ,
मैं पत्थर ,
अपने जीवन ,
की दुर्दशा से ,
बहुत सिहरा हूँ ,.............रात गहरा रही है पर पता नहीं क्यों नींद कोसो दूर है , मौत का सच जनता हूँ पर यह नहीं जान पा रहा की इस दुनिया में किस मकसद से आया हूँ ..............क्या मैं सिर्फ खाना , शादी के लिए ही पैदा हुआ हूँ या कभी कुछ बेहतर कर पाउँगा ??????????????????////////

क्या कौन पाता है ?????????????

चिन्ताओ के ,
भंवर में फसकर ,
कौन कहाँ ,
जी पाता है ,
स्वप्निल दुनिया ,
के सपने लेकर ,
हर कोई यहाँ ,
पर आता है ,
मिल जाये सभी ,
कुछ तो अच्छा है ,
खो जाने पर ,
पछताता है ,
जो पाया है ,
कर्म के पथ पर ,
कण कण हर क्षण ,
जाने कब बिक जाता है ,
कब समझा मानव ,
दुसरो के दर्द  को ,
खुद के सुख में ,
हस नहीं  वो पाता है ,
धीरे धीरे सब ,
सपने को खोकर ,
पथराई आँखों से वो  ,
श्मशान तलक ही आता है ,
क्यों न समझा आलोक ,
ये छोटा सा मर्म यहाँ ,
अंधकार को सच समझ ,
उसका कैसा ये नाता है .......................क्या हम भूल रहे है है की हम जितने भी सुख के पीछे भाग ले और किसी कुचक्र से उसको पा भी ले पर जाना तो है ही .............हम सब अपने पूर्वज के नाम तक नहीं जानते तो आपके इस कार्यो के लिए कौन आपको याद करने जा रहे है ....अगर्ये सच है तो आइये थोडा भाई चारा और सुकून को जी ले ....................शुभ रात्रि


Wednesday, January 2, 2013

क्या करा पाओगे ?????????????

जो खुद ही ,
टूट गया हो ,
अपनों से ,
छूट गया हो ,
उस फूल से ,
क्या भगवान पाओगे ?
अपनी ही ,
कृति को बर्बाद देख ,
तुमसे ही उसकी ,
मौत को देख ,
क्या भगवान से ,
कुछ भी करा पाओगे ?....................हम मनुष्य भी भगवान के प्रतिनिधि है पर क्या उनको तोड़ कर हम उस भगवान तक पहुच पाएंगे ???????????? अगर नहीं तो बदलिए अपने चारो तरफ .................शुभ रात्रि