Tuesday, September 18, 2012

andhere me

सांसो के फरेब में कब से पड़ गए ,
आज सच कहने से भी डर गए ,
किस लिए किसको छोड़ रहे हो ,
जिन्दा रहकर ही फिर मर गए ,
वो देखो रास्ता जिस पर चले थे ,
आज क्या हुआ जो कदम हिल गए ,
इतना किसको दिखाने की कोशिश,
जो आये थे यहा वो भी निकल गए ,
आलोक में जी लो एक पल को यहा,
अँधेरे में जाने कितनेयहा फिसल गए ..........................क्या आप सब इस देश को बचने के लिए पैदा हुए है या फिर अपने को सिर्फ मानव समझ कर यहा रहने वाला किरायेदार समझ कर जी रहे है ..आर जानवर से हटकर कुछ करने का जज्बा है तो कीजिये अपने देश के लिए एक आन्दोलन जो बना दे हम सबको एक मानव जो भारतीय कहलाया  ..............शुभ रात्रि www.internationalseminar.in  

Monday, September 17, 2012

aadmi to ban lo

हर मोड़ पर कौन मिलता है ,
सिर्फ पीछे वाला ही छिपता है ,
फिर पूछिये उनसे पता अपना ,
आँख वाले को कब दिखता है,
कभी हसकर कभी रोकर कहिये ,
दिल है तेरा मेरा फिर बिकता है
कपडे की तरह ही तो बदले  है ,
प्रेम अपनी रोज इबारत लिखता है,
आज हम सब को मिल कर यह समझना होगा कि भारत हमारा उतना ही है जितना संसद में बैठे लोगो का .............क्यों हम सब रोज उनका कहना मान के अपने को प्रजतान्त्रितिक गुलाम बनाते जा रहे है .................जीवन जब एक बार मिलता है तो क्यों आप ऐसे जीना चाहते है जैसे आप  के गली का अनजाना जानवर  ........क्या आपको मनुष्य बन कर जीना बिलकुल पसंद नही ........काश आप भी ................शुभ रात्रि www.internationalseminar.in .
 

Sunday, September 16, 2012

kal kisa hoga

मेरे दर्द में जो शरीक था ,
वही मेरा  बड़ा रकीब था,
जाने क्या उसको नाम दूँ ,
कितनो का वो हबीब था ,
जिन्दगी क्यों रोई फिर से ,
यह तो कभी से नसीब था ,
तन्हाई का मुझसे मिलना ,
जाने क्यों कुछ अजीब था ,
समय जो गुजरा मुझसे ,
न जाने कुछ बेतरतीब था ,
सवेरा होगा भी या नहीं ,
क्या वो इतना खुशनसीब था .....................पता नही हम आज सरकार के रुख को देखते हुए यह सोच सकते है कि एक सामान्य भारतीय कैसे अपना जीवन कटेगा क्योकि सरकार को अपने लिए महंगाई का एहसास है पर हमारे लिए वह एक कसाई से बेहतर नही है ...................आप जागिये वरना एक जानवर से ज्यादा कुछ नही इस देश में रह जायेंगे .शुभ रात्रि
 

Wednesday, September 12, 2012

maut ke pal me .......................

क्यों न खेंलू अपनी सांसो हर पल ,
कोई तो है जो सब सहता मुझको ,
तुम इल्जाम न लगाओ दिल का ,
धड़कन खुद दौड़ती रहती हर पल ,
मै तो सिर्फ अपनी जिन्दगी जिया ,
तुम खुद ही चली थी मेरे संग कल ,
अब जब बाँहों में समेटा आलोक मैंने,
जिन्दगी सिमट गयी मौत के पल में ............................जीवन के साथ साथ मौत चलती है पर एक बार मौत जब अपनी जिन्दगी जीने के लिए अंगड़ाई लेती है तो जिन्दगी खुद से ऊब जाती है ...............यानि जब भी आप से कोई ऊब जाये तो समझ लीजिये मौत और जिन्दगी का खेल शुरू हो गया ...............चाहे वह संबंधो का खेल हो या फिर सांसो का ................शुभ रात्रि

Monday, September 10, 2012

dekh lo khud se

हर कोई फरेब करता रहा यह खुद से ,
मुझसे उसने कर भी लिया तो खुद से ,
जान कर अंजान रहने की आदत उनकी ,
मौत मैंने ही बुला ली आज क्यों खुद से ,
उन्हें सिर्फ मुस्करा कर किसी का बनना ,
क्या करें जब आप मरना चाहे खुद से .................................. आदमी की तलाश में आप निकालिए तो सही ...हो सकता है पूरी उम्र हाथ खली ही रह जाये .....शुभ रात्रि

Thursday, September 6, 2012

ye unka parihas hai

माना की आज मन हताश है ,
पर बंजर में भी एक आस है ,
चला कर तो एक बार देख लो ,
अपाहिज में चलने की प्यास है ,
कह कर मुझे मरा क्यों हँसते,
यह भी लीला उसकी रास है ,
लौट कर आऊंगा या नही मैं ,
क्या पता किसको एहसास है ,
लेकिन ये सच कैसे झूठ कहूँ ,
मौत के पार ही कोई प्रकाश है ,
आओ बढ़ कर उंगली थाम लो ,
हार कर भी मुझमे उजास है ,
पागल मुझको कहकर खुद ही ,
देखो आज वो किसकी लाश है ,
आज कर लो जो मन में है कही ,
जाते हुए न कहना मन निराश है ,
सभी को नही मिलता आदमी यहा,
आज जानवरों का यही परिहास है ,....................आइये कुछ देर कही यह सोच कर देखे कि हम को सोने से पहले सुबह उठने की जितनी आशा है ..क्या जीवन में असफलता और हरने के बाद भी उतनी आशा है ............क्या ऐसे किसी अधिकार को आप लड़ रहे है जो आपसे दूर है तो आइये इस अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपनी बात सुनाइए  www.internationalseminar.in ........... शुभ रात्रि

Monday, September 3, 2012

beej kaun sa bo tum rhe ho

दर्द कुरेद कुरेद कर मेरा ,
बीज कौन सा बो तुम रहे हो ,
बहते आंसू  को नीर समझ ,
पाप कौन सा धो तुम रहे हो ,
पथराई आँखों में झाँको तुम ,
हीरा कोईअब खो तुम रहे हो ,
मै क्यों तम से भागूं अब तो ,
अंतस में दिल जी तो रहे हो ,
आलोक जो खोया तो क्या  ,
सपनो का यौवन जी तो रहे हो 
अब मन न दुनिया में रहता ,
जी जी कर तुम मर तो रहे हो ,
किसे सुनाऊ सौ बाते दर्द की ,
सब में खुद को ही देख रहे हो ,
आज मिले वो बनाने वाला जो ,
पूछूं खेल कौन सा खेल रहे हो ,
मै भी तो था कुछ पल धरा का ,
धर धर के क्यों कुचल रहे हो ,
तोड़ के मेरे हर एक सपने को ,
दिल को दर्पण सा छोड़ रहे हो ,
बटोर नही पाउँगा अब ये सब ,
हर टुकड़े क्यों फिर जोड़ रहे हो ,.................................किसी के साथ रहना और उसका साथ छोड़ देना सबसे आसन काम है ........पर आज मुझे वह हिरन का झुण्ड याद आ रहा है जिनको दूर से देखने पर एक बड़ा समूह सा लगता है ..पर एक शेर( दुःख या समस्या ) के आने पर हिरन के अकेले होने की कलई खुल जाती है , बहुत से लोग कहेंगे की आप तो लिख कर बता लेते है पर वो  क्या करे जो सिर्फ घुट घुट कर जी रहे है ........................

Sunday, September 2, 2012

chinti ki trah tumko bhi

बादल फटने पर कुछ लोग ही मरते है ,
पर आज तो दिल ही फट गया है मेरा ,
क्या कोई है जो गिन कर बता दे आलोक ,
कितने मरे जो कल तक जिया करते थे ,
आँखों में  पानी जरुरी कितना जनता हूँ ,
पर पानी बहा कर ही हस लिया करते है ,
कह कर निकल गए सब आबरू मेरी लूटी,
इज्जत वाले ही दाग समेट लिया करते है,
क्यों साथ दे तुम्हरा जिन्दगी मेरी अपनी है ,
बस रास्ता काट लेने को बात किया करते है ,
जब न पैदा न मरेंगे कभी भी साथ साथ कोई  ,
चीटी के एहसास में तुमको मसल दिया करते है ...............शुभ रात्रि

ham to sambhal gaye

आज लोग यह कहते मिल गए ,
क्यों मेरे जीवन के तार हिल गए ,
कल तक हमको एहसास था अपना ,
आज क्यों अंतस से विकल गए ,
आप अपने तो कब दिखयेंगे यूँ ही ,
हम तो पानी थे बस मचल गए ,
आपकी जिन्दगी खाक हो रही तो ,
हम मजा लेकर फिर सम्भल गए ...................................आज लगा सब झूठ है ....खास तौर पर रिश्ता सिर्फ रिस रहा है चारो तरफ .......................