पैदल जाते हुए राहगीर को देखकर,
एक रिक्शावाला अमीर समझ जाता है ।
पर एक कार वाले को,
वह गरीबी नजर आता है।
पैदल चलने वाला अपनी,
जेब को टटोल कर देखता है।
फिर अपने आप को ,
दिल ही दिल समझाता है,
पैदल चलने के कितने,
ज्यादा फायदे होते हैं।
जो कारों पर चलते हैं वह,
पूरे उम्र अपने,
खराब स्वास्थ्य को रोते हैं।
इसीलिए वह धीरे-धीरे कई,
किलोमीटर तक पैदल चला जाता है।
उसके पीछे-पीछे वह,
रिक्शावाला भी चला जाता है।
जो यह सोचता है कि ,
कुछ देर चलने के बाद यह,
निश्चित रूप से थक जाएगा।
और उसके हिस्से में भी आज ,
दो रोटी का निवाला आ जाएगा ।
पर पैदल चलने वाला इसी,
गुणा भाग में अभी भी लगा रहता है।
कि अपनी पेट की आग को,
बुझाने के लिए अगर कुछ देर,
वह और पैदल चल लेता !
तो नुक्कड़ पर खड़े,
चाय वाले को ₹1 दे देता!
और चाय पीकर अपनी भूख को,
थोड़ी देर और मिटा लेता!
खुश हो लेता कि,
आज वह अपनी यात्रा को भी,
पूरी कर आया ,
अपनी भूख भी मिटाया,
और अपनी जेब में,
कुछ पैसा भी बचा लाया ।
पर रिक्शा वाले के जीवन में,
दूसरी कहानी चल रही होगी!
कि भगवान आज मैंने ऐसा,
क्या गलत काम किया है ?
जो तुमने मेरे सहारे को भी छीन लिया है ।
लोग पैदल चले जा रहे हैं,
पर मेरे रिक्शे पर बैठने नहीं आ रहे हैं ?
पर वह कार चलने वाला,
जो तेजी से दोनों को पार करके,
चला गया है ।
वह किसी समारोह में मंच पर,
बोल रहा होगा ।
कि अभी उसने रास्ते में ,
दो गरीब को देखा है ।
जिनके हाथों में नहीं अमीरी की रेखा है।
इस अमीरी गरीबी की लड़ाई में,
हर कोई यह सोच रहा है ।
कि कौन किस अमीर हो रहा है ?
कौन कितना गरीब हो रहा है?
कौन पेट भर के सो रहा है?
कौन खाली पेट ही रो रहा है?
सभी के अपने-अपने फसाने हैं,
बस यही को सुनना सुनाने,
जिंदगी कितने बहाने हैं।
आलोक चांटिया "रजनीश"
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