Sunday, December 7, 2025

पैदल जाते हुए राहगीर को देखकर, एक रिक्शावाला अमीर समझ जाता है आलोक चांटिया "रजनीश"

 पैदल जाते हुए राहगीर को देखकर,

एक रिक्शावाला अमीर समझ जाता है ।

पर एक कार वाले को,

वह गरीबी नजर आता है।

पैदल चलने वाला अपनी,

 जेब को टटोल कर देखता है।

फिर अपने आप को ,

दिल ही दिल समझाता है, 

पैदल चलने के कितने,

ज्यादा फायदे होते हैं।

जो कारों पर चलते हैं वह,

पूरे उम्र अपने,

खराब स्वास्थ्य को रोते हैं।

इसीलिए वह धीरे-धीरे कई,

 किलोमीटर तक पैदल चला जाता है।

उसके पीछे-पीछे वह, 

रिक्शावाला भी चला जाता है।

जो यह सोचता है कि ,

कुछ देर चलने के बाद यह, 

निश्चित रूप से थक जाएगा।

और उसके हिस्से में भी आज ,

दो रोटी का निवाला आ जाएगा ।

पर पैदल चलने वाला इसी,

 गुणा भाग में अभी भी लगा रहता है।

कि अपनी पेट की आग को, 

बुझाने के लिए अगर कुछ देर,

वह और पैदल चल लेता !

तो नुक्कड़ पर खड़े,

चाय वाले को ₹1 दे देता!

और चाय पीकर अपनी भूख को,

थोड़ी देर और मिटा लेता!

खुश हो लेता कि,

आज वह अपनी यात्रा को भी,

पूरी कर आया ,

अपनी भूख भी मिटाया,

और अपनी जेब में,

कुछ पैसा भी बचा लाया ।

पर रिक्शा वाले के जीवन में,

 दूसरी कहानी चल रही होगी!

कि भगवान आज मैंने ऐसा,

क्या गलत काम किया है ?

जो तुमने मेरे सहारे को भी छीन लिया है ।

लोग पैदल चले जा रहे हैं,

पर मेरे रिक्शे पर बैठने नहीं आ रहे हैं ?

पर वह कार चलने वाला,

जो तेजी से दोनों को पार करके,

चला गया है ।

वह किसी समारोह में मंच पर,

बोल रहा होगा ।

कि अभी उसने रास्ते में ,

दो गरीब को देखा है ।

जिनके हाथों में नहीं अमीरी की रेखा है।

इस अमीरी गरीबी की लड़ाई में,

हर कोई यह सोच रहा है ।

कि कौन किस अमीर हो रहा है ?

कौन कितना गरीब हो रहा है?

कौन पेट भर के सो रहा है?

कौन खाली पेट ही रो रहा है?

सभी के अपने-अपने फसाने हैं,

बस यही को सुनना सुनाने,

जिंदगी कितने बहाने हैं। 

आलोक चांटिया "रजनीश"


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