Sunday, April 30, 2023

रोने का अपना अलग द्वंद है

 रात जैसे  जैसे गहराती गई ,

तारो सी जिन्दगी आती गई ,

सुबह तक सूरज सा चमका ,

सांस  अँधेरे में समाती गई |,

पूरी रात जिसकी बाहों में रहा ,

वही समय अब न जाने कहाँ ,

ढूंढता भी रहा फिर पूरब में ,

वो उम्र का लम्हा फिर  वहां|

मौत की बात करने से डरे ,

फिर भी एक दिन हम मरे ,

सच से भागने  की ये आदत ,

इस झूठ  का हम क्या करें |

रिश्तो के बाज़ार में अकेला ,

फिर भी उसी का हर मेला ,

कोई  क्यों बढ़ कर मिला ,

कोई क्यों भावना से खेला |

जिन्दा रहने पर एक भी नही ,

मरने पर चार कंधे का सहारा ,

कोई भी न बैठा मेरे साथ कभी ,

पर आज था सारा जहाँ हमारा |

एक बूंद में छिपी नदी की कहानी ,

एक आंसू में थी बूंद की जवानी ,

कितना बहूँ की समंदर मिल जाये ,

रास्ते की कसक न होती सुहानी |

आलोक को पाकर चाँद भी चमका ,

तारो का भी कुछ संसार था दमका ,

क्यों फिर भी रहा सफ़र अँधेरे में ,

सपनो में जीकर दिल क्यों छमका |

रेत सा जीवन मुट्ठी में बंद है ,

 जीने के चार दिन भी चंद है ,

हस लो तुम जितना भी चाहो ,

रोने का अपना अलग ही द्वन्द है |Alok chantia

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