Wednesday, February 1, 2012

subah ka suraj

ढलती शाम के नशे  में ,
रात की तन्हाई का आलम था ,
फकत एक पूरब ही ऐसा था ,
जिस पे ऐतबार कर मै सोया ,
किया उसने भी न फरेब ,
एक कतरा आलोक वो ले आया ,
इस दुनिया में किसे कहे अपना ,
तुम्हे या उस आफताब को ,
जो जर्रे जर्रे को जगा आया ,............सोते हम सभी इसी ख्वाब को लेकर है कि सुबह हमारे हिस्से में भी होगी पर ऐसा जरुरी नही है ...और जब आपको ऊपर वाले ने आज की सुबह में फिर यह नियामत बख्शी है .तो आइये खुश खास हो जाये ....आदाब और अखिल अखिल भारतीय अधिकार संगठन की तरफ से सलाम आप सभी को

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