जमीन के ऊपर जो एक,
हरा-हरा पौधा निकल पाया है,
वह जमीन के अंदर अंधेरों से,
लड़कर ही बाहर आया है ।
कोई भी दुनिया में अगर ,
जीने के लिए आया है ,
तो वह भी गर्भ के अंधेरे से,
दो चार होकर आया है ।
क्यों भागते हैं हम इस तरह ,
अंधेरों के रास्तों से बचकर,
बिना अंधेरे के कौन यहां पर,
सूरज का मतलब भी समझ पाया है।
अंधेरे को आत्मसात कर एक,
कोयला हीरा बन जाता है ,
संघर्ष के रास्तों से ही कोई ,
कोई महान बन पाया है ।
मुट्ठी में बंद अंधेरे को ही,
समझने के लिए यहां आते हैं ,
तभी तो जाता हुआ मृत व्यक्ति,
अपना खुला हाथ ही पाया है।
आलोक चांटिया
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