Thursday, February 13, 2025

अंधेरा जरूरी है -आलोक चांटिया


 जमीन के ऊपर जो एक,

 हरा-हरा पौधा निकल पाया है,

 वह जमीन के अंदर अंधेरों से,

लड़कर ही बाहर आया है ।

कोई भी दुनिया में अगर ,

जीने के लिए आया है ,

तो वह भी गर्भ के अंधेरे से,

 दो चार होकर आया है ।

क्यों भागते हैं हम इस तरह ,

अंधेरों के रास्तों से बचकर, 

बिना अंधेरे के कौन यहां पर,

 सूरज का मतलब भी समझ पाया है। 

अंधेरे को आत्मसात कर एक,

कोयला हीरा बन जाता है ,

संघर्ष के रास्तों से ही कोई ,

कोई महान बन पाया है ।

मुट्ठी में बंद अंधेरे को ही,

 समझने के लिए यहां आते हैं ,

तभी तो जाता हुआ मृत व्यक्ति, 

 अपना खुला हाथ ही पाया है।

आलोक चांटिया

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