जो भी पाया था ,
उसके जाने का ,
वक्त आ रहा है ।
संजो भी ना सका ,
अब तो लुटने का ,
दृश्य आ रहा है ।
जिंदगी आलोक में है ,
रास्ते अंधेरो में ,
गुजर रहे है ।
साँसे तो चल रही है ,
खुद हर किसी में पर,
मौत जी रहे है ।
ये कैसा सिला मिला ,
किसी से मिलने का ,
फिर बिछड़ने का ।
अवसर भी मिला तो ,
चार कंधो पर ,
आज संवरने का।
ये वर्ष जो जा रहा है ,
वो वर्ष जो आ रहा है ,
सोचो क्या दे जा रहा है।
कोई मुझको पा रहा है ,
कोई मुझसे जा रहा है ,
समय यही किए जा रहा है।
जीना इसी का नाम है ,
कभी सोच कर देख लेना
चलना इसका ही काम है।
बधाई हो आज का कल
आलोक जी भर के लो
कल इसकी आखिरी शाम है ...
आइये सोचे कितने आजीब है हम जो यह नहीं समझ पाते कि हम सिर्फ किसी की तलाश में इस दुनिया में नहीं आये बल्कि दुनिया हमको तलाश रही है ......कुछ करने के लिए कुछ कहने के लिए ...अखिल भारतीय अधिकार संगठन
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