Wednesday, November 8, 2023

फूलों की गलती ,,,,,,,,,कविता by alok chantia

 मिट्टी का साथ पाकर, 

एक पौधा कंक्रीट के, 

बने इमारत पर निकलने का,

 साहस तो कर बैठा ,

फूल भी खिला, पत्ती भी निकली, 

हरियाली के वह हर रंग देखने लगा,

 पर भला कब पैसों की इमारत से,

बड़ा फूल हो पाया है !

यह सच है वह किसी ,

नवयुवती के केश का श्रृंगार बना है, 

कहीं देवालय  पर, 

भगवान के साथ रहा है, 

लाशों का भी कभी-कभी ,

साथ ले लिया है कभी वीरों के, 

रास्तों का श्रृंगार बना है, 

लेकिन आज उसके हिस्से में, 

दर-दर की ठोकर और सड़क पर, 

उखाड़ कर फेंक देने का,

आलोक हिस्सा आया है, 

क्योंकि उसने गलत जगह पर,

गलत समय पर मिट्टी का साथ पाकर, 

इमारत पर उगने का ,

साहस कर लिया था ,

इसलिए हर गुण के बाद भी, 

आदमी ने उसे ,

उसके भ्रम की सजा दिया था,

उसे अपनी इमारत से उखाड़ दिया था, 

वह जान गया था गलत जगह, 

गलत समय गलत साथ का ,

क्या फल मिलता है ,

चाहे फूल हो या शूल हो, 

जरूरत पर गले लगाते सभी हैं,

 लेकिन सीमाओं को भूल जाने पर, उपेक्षा, 

अपमान की बिसात पर ,

एक फूल अक्सर सड़क पर ,

ऐसे ही कुचला हुआ मिलता है।

आलोक चांटिया

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