Wednesday, October 18, 2023

लोग मुर्दे पर पैसे चढ़ा गए , poem by Alok chantia

 लोग मुर्दे पर पैसे चढ़ा गए ,

कितना चाहते बता गए ,

दिल में दया भी है उनके ,

भिखारी को आज बता गए ,

भूख से बिलखते बच्चे को ,

जनसँख्या का दर्द बता गए ,

एक पल भी नही था पास में ,

बस पैसे से ही रिश्ता बता गए ,

खर्च तो करता हूँ सब कुछ ,

कितने खोखले है बता गए ,

एक अदद रोटी क्यों बनाये ,

लंगर में जाने को बता गए ,

आलोक को खरीदने का हौसला ,

असमान को जाने क्यों बता गए ,

मुट्ठी में बंद कौन कर पाया है ,

आलोक को बिकना बता गए ,

कितनी सिद्दत से सजाई दुनिया ,

दुकान का मतलब वो बता गए ,

रीता रीता सा रहा दिल आज फिर ,

खून बिकता है वो भी बता गए ,

आंसू भी बिकता है अब यहा पर,

सच को मेरे वो नाटक बता गए  ,

इतनी लम्बी जिन्दगी में कौन अपना ,

बिकती साँसों का राज बता गए ,

कोई खरीद कर जला दो मुझको ,

शमशान में लकड़ी मुझे दिखा गए ,

जाना है उनको  भी यहा से एक दिन ,

मुझको कफ़न खरीदना सीखा गए ...........................पता नही इस दुनिया में हम मनुष्य बन कर किस मनुष्य को ढूंढते है ..........................पर अब तो सब कुछ पैसा से तौला जा रहा है .................क्या हमें रुकना नही चाहिए .......शुभ रात्रि

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