Tuesday, October 3, 2023

जिन्दगी ले कर आया हूँ , by Alok chantia

 जिन्दगी ले कर आया हूँ ,

जिन्दगी देकर जा रहा हूँ ,

इस दुनिया से  क्या कहूँ ,

लाश बन कर जा रहा हूँ ,

लोग कह क्यों रहे स्वार्थी ,

हा अर्थी ही सजा रहा हूँ ,

क्या मैं साधू नही लगता ,

जब सब छोड़े जा रहा हूँ ,

आलोक देखते थक गया ,

अँधेरे से इश्क लड़ा रहा हूँ ,

किलकारी-बोलने का सफर ,

तेरी यादो में छिपा रहा हूँ ,

कल रास्तो का सन्नाटा देखो ,

मेरे निशान न ढूंढ़ना कभी ,

ये तो दुनिया का दस्तूर था ,

आना है किसी और को अभी .......

Alok chantia

No comments:

Post a Comment